स्वाधीनता संग्राम में अनेक विभूतियाँ ऐसी थीं जिन्होंने भारत की मुक्ति के लिये अंग्रेजों से तो कठोर संघर्ष किया ही, वहीं भारत राष्ट्र के सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति जन जागरण अभियान भी चलाया । सुप्रसिद्ध पत्रकार और विचारक लाला देशबंधु गुप्ता ऐसे ही स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे । जिन्होंने बहुआयामी संघर्ष किया ।
देशबंधु जी सत्रह वर्ष की आयु में स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हुये और 19 वर्ष की आयु में जेल गये । उनका मूल नाम रतिराम गुप्ता था । उन्हें स्वामी श्रृद्धानंद ने “देशबंधु” की उपाधि दी । इसकी सराहना गाँधीजी ने भी की । और वे “देशबंधु गुप्ता” नाम से जाने गये । असहयोग आँदोलन के साथ खिलाफत आँदोलन को जोड़ने पर स्वामी श्रृद्धानंद जी के गाँधी जी और काँग्रेस से मतभेद हुये पर देशबंधु जी काँग्रेस के साथ ही रहे । भारत विभाजन एवं रियासतों के विलीनीकरण में वे सरदार वल्लभभाई पटेल के समर्थक थे फिर भी प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से उनके व्यक्तिगत संबंध बहुत मधुर थे । गाँधी जी की हत्या में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नाम आने पर देशबंधु जी ने अपने लेख में उच्च स्तरीय जांच की आवश्यकता बताई तथा भारत विभाजन से पीड़ितों की सेवा में संघ की भूमिका की प्रशंसा की । ऐसी विलक्षण प्रतिभा के धनी देशबंधु गुप्ता जी का जन्म 14 जून 1901 को पानीपत में हुआ था । परिवार ने उनका नाम रतिराम गुप्ता रखा । उनके पिता विवाहराम जी वैदिक विद्वान और लेखक थे । वे आर्यसमाज से जुड़े थे और वैदिक आर्य विचारों की पत्रिका का संपादन करते थे । पिता हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत और उर्दू भाषा के जानकार थे । बालक रतिराम को यह सब ज्ञान विरासत में मिला । उन्होंने हिन्दी और संस्कृत घर में सीखी । प्रारंभिक शिक्षा करनाल के एक मदरसे में प्रवेश लिया । उच्च शिक्षा के लिये सेंट स्टीफंस कॉलेज दिल्ली आये ।
कॉलेज में अपनी पढ़ाई के साथ एक कारखाने का में काम करके अपनी पढ़ाई का व्यय स्वयं निकाला । यह कारखाना सुप्रसिद्ध व्यवसायी और राष्ट्रसेवी जमनालाल बजाज का था । देशबंधु जी ने उनके सहायक के रूप में काम किया। इसी दौरान उनका संपर्क देश के प्रमुख स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों से बना । इन्हीं दिनों जलियांवाला बाग के दिल दहला देने वाले नरसंहार का समाचार आया । पूरा देश उस समाचार से विचलित हुआ । स्टीफन कालेज में छात्रों की सभा हुई । और घटना पर रोष प्रकट किया गया । इस में युवा रतिराम गुप्ता का ओजस्वी वक्तव्य बहुत चर्चा में आया । महाविद्यालय प्रबंधन ने उन्हे चेतावनी दी । पर उस चेतावनी का उन पर कोई प्रभाव न पड़ा । राष्ट्रसेवा में जो कदम उन्होंने बढ़ाया था वह फिर न रुका। उसी वर्ष गाँधीजी दिल्ली आये । सभा हुई । युवा रतिराम गुप्ता युवकों की टोली के साथ सभा सुनने पहुँचे, गाँधीजी से भेंट हुई और वे सीधे स्वाधीनता संघर्ष से जुड़ गये । गाँधीजी के आव्हान पर असहयोग आँदोलन आरंभ हुआ । रतिराम जी ने युवाओं को इस आँदोलन से जोड़ने के लिये विभिन्न शिक्षण संस्थाओं में सभाएँ लीं । वे अच्छे वक्ता और अच्छे लेखक थे । उन्हे लाला लाजपत राय जी ने अपने समाचार पत्र “वंदेमातरम” के संपादकीय विभाग से जोड़ा। इसी वर्ष 1920 में उनका विवाह सोना देवी से हुआ । विवाह के समय रतिराम जी की आयु 19 वर्ष और सोना देवी 17 वर्ष थी । परिवार की परंपरा के अनुसार जब रतिराम सात वर्ष और सोनादेवी पाँच वर्ष की थीं तब ही इस विवाह का निश्चय तब ही हो गया था । विवाह को अभी कुछ माह बाद ही 22 अक्टूबर 1920 को असहयोग आँदोलन में हिस्सा लेते हुये गिरफ्तार हो गये । एक वर्ष के कठोर कारावास की सजा हुई । रिहाई के बाद वे पुनः सामाजिक जागरण में जुट गये । उन्होंने पंजाब और पश्चिम उत्तर प्रदेश की यात्राएँ कीं और सभा तथा बैठकों में स्वाधीनता और स्वदेशी के प्रति जन जागरण किया ।
परिवार की पृष्ठभूमि आर्यसमाज से थी । स्वामी श्रृद्धानंद जी का पारिवार में आना जाना था । स्वामी जी ने उनकी सक्रियता और उनके लेखन एवं उद्बोधन की प्रशंसा की और “देशबंधु” नाम से संबोधित किया यह 1923 की घटना है । और वे फिर आगे इसी नाम से प्रसिद्ध हुये । गाँधीजी ने भी उनकी सक्रियता और लेखन की प्रशंसा की । और इसके साथ ही उनकी गिरफ्तारी और रिहाई का सिलसिला भीआरंभ हो गया जो 1942 के भारत छोड़ो आँदोलन तक जारी रहा । स्वाधीनता आँदोलन में उनकी सहभागिता असहयोग आँदोलन से आरंभ हुई थी उन्होंने असहयोग आँदोलन के साथ विदेशी बस्तुओं के बहिष्कार, स्वभाषा के प्रयोग और स्व परंपराओं के अनुरुप जीवन शैली अपनाने का भी अभियान छेड़ा। स्वामी श्रृद्धानंद जी उन्हें समाचार पत्र तेज” के संपादन कर दायित्व सौंपा। यह समाचार पत्र उर्दू में था । स्वामीजी ने यह समाचार पत्र देशबंधु जी से चर्चा के बाद ही आरंभ किया था । इस समाचार पत्र के हर अंक में जन सामान्य से सक्रिय होने का आव्हान होता । उनकी पत्नि सोना देवी भी संपादन में सहयोग करने लगीं। 8 अक्टूबर 1923 को इस समाचार पत्र पर छापा पड़ा। देशबंधु जी गिरफ्तार हुये और जेल भेज दिये गये । उनकी पत्नी सोनादेवी भी गिरफ्तार हुईं। स्वामी श्रृद्धानंद जी के बलिदान के बाद देशबंधु जी ने ही”तेज” का प्रबधन संभाला । इसी के साथ वे लाला लाजपत राय के समाचार पत्र “वंदेमातरम” के संपादक बने । संपादन के साथ सार्वजनिक आँदोलन में सहभागिता यथावत रही । जब साइमन कमीशन दिल्ली आया तो इसका विरोध हुआ और वे पुनः गिरफ्तार करके जेल भेज दिये गए। 1942 के भारत छोड़ो आँदोलन में गिरफ्तार हुये और जेल गये ।
अभी स्वाधीनता संघर्ष चल ही रहा था कि अंग्रेजों और मुस्लिम लीग की मिलीभगत से भारत विभाजन का वातावरण बनने लगा । अगस्त 1946 में मुस्लिम लीग के डायरेक्ट एक्शन के बाद पंजाब के अनेक क्षेत्रों से शरणार्थी दिल्ली आने लगे । लालाजी उनकी सहायता में जुट गये । समय के साथ भारत की स्वतंत्रता सुनिश्चित हुई और संविधान सभा का गठन हुआ । लालाजी संविधान सभा के विशिष्ट सदस्य बनाए गए। समय की जरूरत को देखकर उन्होंने अंग्रेजी समाचार पत्र निकालने की योजना बनाई । इसके लिये गोयनका जी से संपर्क किया । गोयनका जी सहमत हो गये । उनके सहयोग से “इंडियन न्यूज क्रॉनिकल” समाचार पत्र का प्रकाशन आरंभ हुआ । मीरा गोयनका इस प्रकाशन की अध्यक्ष बनीं और सह अध्यक्ष का दायित्व देशबंधु जी ने संभाला । सह अध्यक्ष के साथ संपादन का दायित्व भी देशबंधु जी के पास था । 1950 में वे अखिल भारतीय समाचार पत्र संपादक सम्मेलन के अध्यक्ष भी रहे ।
21 नवम्बर 1951 को देशबन्धु जी को कलकत्ता एक सम्मेलन में भाग लेने जाना था। वे विमान से रवाना हुये । विमान कलकत्ता हवाई अड्डेके पास दुर्घटनाग्रस्त हो गया और विमान में सवार किसी भी यात्री के प्राण न बचे । देशबंधु जी भी इस दुर्घटना का शिकार बने । उनके अंतिम संस्कार में प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू भी शामिल हुये ।
देशबंधु गुप्ता जी विलक्षण प्रतिभा के धनी थे । जितने अच्छे लेखक उतने अच्छे वक्ता और मौलिक विचारक थे । देशबन्धु जी के निधन के बाद गोयनका जी ने इस समाचार पत्र का नाम “द इंडियन एक्सप्रेस” रखा । आज देशबंधु जी भले नहीं हैं पर उनके द्वारा जिन समाचार पत्रों की नींव रखी गई थी । वे आज भी प्रकाशित हो रहे हैं। हाँ समय के प्रवाह में उनके नाम अवश्य बदल गये हैं।