शिक्षाविद् ठाकुर लालसिंह का संदिग्ध दुर्घटना में निधन, भोपाल विलीनीकरण आँदोलन का अंतिम उद्घोष इन्हीं ने किया था

0521_shahid_smarak.jpg

सल्तनत और अंग्रेजीकाल के घोर अंधकार के बीच भी यदि भारतीय संस्कृति और परंपराएँ आज पुनर्प्रतिठित हो रहीं हैं तो इसके पीछे कुछ ऐसी विभूतियाँ के जीवन का समर्पण हैं, जो अपने लिये नहीं अपितु संपूर्ण समाज के लिये जिये, उनके जीवन का प्रत्येक पल राष्ट्र,संस्कृति और परंपराओं की पुनर्स्थापना के समर्पण में रहा । ऐसे ही जीवनदानी थे ठाकुर लालसिंह । स्वतंत्रता से पहले भोपाल रियासत काल में वे नागरिक अधिकार एवं समानता के संघर्ष में जेल गये और स्वतंत्रता के बाद भोपाल रियासत के भारतीय गणतंत्र व्यवस्था के अंतर्गत मध्यभारत में विलीनीकरण केलिये भी जेल यात्रा की।
ऐसे जीवन बलिदानी ठाकुर लालसिंह का परिवार मूलतः राजस्थान में भरतपुर क्षेत्र अंतर्गत सिनसिनी गांव का रहने वाला था । इस क्षेत्र के मूल निवासी जाट क्षत्रिय सिनसिनवार गोत्र के कहे जाते है । भरतपुर के इतिहास प्रसिद्ध शासक सूरजमल जाट इसी “सिनसिनवार” गोत्र से थे । अठारहवीं शताब्दी भरतपुर क्षेत्र केलिये बहुत उथल पुथल से भरी हुई थी। पहले औरंगजेब के हमले, और फिर अंग्रेजों के। लगातार हमलों के बीच सिनसिनी से एक शाखा मालवा आई । आगे चलकर इनमें से एक परिवार भोपाल रियासत में आया। यह परिवार पहले इछावर और फिर बैरसिया आया । इसी परिवार में ठाकुर लालसिंह का जन्म हुआ । जन्मवर्ष 1889 माना जाता है । पिता हीरा सिंह आर्य समाज से जुड़े थे । आर्यसमाज के ये संस्कार ठाकुर लालसिंह जी में जीवन भर रहे । पढ़ने केलिये इंदौर भेजा गया । इंदौर के क्रिश्चियन कालेज से उन्होंने बीए किया और 1913 में भोपाल के अलेक्जेंडर कॉलेज में शिक्षक हो गये ।

शिक्षक के रूप में जब ठाकुर लालसिंह भोपाल लौटे तब भोपाल रियासत में नबाब बेगम सुल्तान जहाँ का शासन था । नबाब बेगम यद्यपि सुधारवादी और प्रगतिशील थीं लेकिन अपने धर्म के प्रति बहुत कट्टर। इसके चलते पूरी रियासत के सामाजिक वातावरण में असहजता बढ़ रही थी । पंजाब उत्तर प्रदेश आदि स्थानों से मुस्लिम परिवारों का भोपाल आने का क्रम तेज हो गया था । इन मुस्लिम परिवारों को नबाब प्रशासन द्वारा राजकीय पद अथवा जमीन जायदाद देकर बसाया जा रहा था। इसके साथ बाहर से आये इन तत्वों द्वारा असामाजिक गतिविधियाँ भी की जा रहीं थीं। जिससे हिन्दु समाज में भय और असुरक्षा का भाव बढ़ने लगा । हिन्दु समाज में एक तो कुछ आंतरिक विषमताएं, दूसरे इन घटनाओं का तनाव बढ़ने लगा था। इस सामाजिक वातावरण से ठाकुर लालसिंह बहुत व्यथित हुये । इन्ही दिनों नबाब बेगम ने एक ईशनिंदा कानून बनाया जिसके अंतर्गत इस्लाम की आलोचना करने पर गैर जमानती गिरफ्तारी का प्रावधान था । इस कानून की विशेषता थी इसमें आरोप लगाने वाले को अपना आरोप साबित नहीं करना होता था बल्कि आरोपी को अपने आपको निर्दोष होना प्रमाणित करना होता था । इन सभी परिस्थियों में ठाकुर लालसिंह को लगा कि वाह्य समस्याओं का सामना करने से पहले समाज को अपनी आंतरिक विसंगितियों से मुक्त होना होगा । उन्होंने पहले इसी दिशा में अपना काम आरंभ किया। पारिवारिक पृष्ठभूमि के चलते वे आर्यसमाज के संपर्क में थे । उन्होंने अपने समाज के सुधार और समाज सशक्तीकरण उद्देश्य की पूर्ति के लिये आर्यसमाज का ही मार्ग अपनाया । वे विभिन्न सेवा बस्तियों में गये सबको एकजुटता और भय रहित जीवन तथा शिक्षा से जुड़ने का संदेश दिया । यही संदेश उन्होंने अपने विद्यालय के छात्रों को भी दिया और सामाजिक एकजुटता के लिये सक्रिय किया । उन्ही दिनों गांधीजी ने अंग्रेजों से मुक्ति केलिये असहयोग आँदोलन का आव्हान किया । भोपाल में अंग्रेजों का सीधा शासन नहीं था । इसलिये भोपाल रियासत के बुद्धिजीवियों ने जन जाग्रति केलिये केवल प्रभात फेरी निकालने का निर्णय लिया । भोपाल नगर में बच्चों की जो प्रभात फेरी निकाली गई, उसमें प्रत्यक्ष रूप से किशोरवय उद्धवदास मेहता थे लेकिन परदे के पीछे ठाकुर लालसिंह की भूमिका महत्वपूर्ण थी । चूँकि अधिकांश बच्चे अलेक्जेंडर कॉलेज के ही थे । 1922 में आर्य समाज ने लड़कियों की शिक्षा केलिये जो विद्यालय आरंभ किया उसमें भी ठाकुर लालसिंह की भूमिका महत्वपूर्ण थी ।

1932 में उन्होंने शिक्षक पद से त्यागपत्र दिया और खुलकर समाज सेवा में आ आये । वे हिन्दू समाज की कुरीतियों के निवारण केलिये भोपाल में गठित हिन्दू सेवा संघ और सीहोर में गठित यंग मैन एसोसिएशन के संस्थापक सदस्यों में से एक थे । हिन्दूसेवा संघ ने हिन्दू समाज की समस्याओं के निराकरण केलिये एक ज्ञापन नबाब प्रशासन को सौंपा तथा विभिन्न स्थानों पर जाग्रति के लिये सम्मेलन किये । इसी अभियान के अंतर्गत उनकी पहली गिरफ्तारी 1932 में हुई ।

समाज जागरण केलिये भोपाल के शाहजहाँनाबाद में हुये सम्मेलन में सुप्रसिद्ध समाज सुधारक ठक्कर बाबा भी आये थे ।

भोपाल रियासत में हिन्दू महासभा की इकाई गठित करने में भी ठाकुर लालसिंह की भूमिका महत्वपूर्ण थी । उन्होंने लाहौर और नासिक,पुणे सम्मेलनों में भाग लिया और वे हिन्दु महासभा की भोपाल इकाई के पहले अध्यक्ष बने । 1934 में भाई उद्धवदास मेहता के साथ मिलकर एक समाचार पत्र “प्रजा पुकार” का प्रकाशन आरंभ किया । डा लालसिंह इसके संपादक बने। बाद में उनके मार्ग दर्शन में 2-3और हिंदी समाचारपत्र निकले गए जिनमे प्रजा मित्र और किसान प्रमुख है ।1937 में जन आंदोलन के चलते वे दूसरी बार गिरफ्तार हुये । इस बार उन्हें छै माह की सजा हुई । जेल से लौटकर पुनः अपने अभियान में लगे । इसी वर्ष आर्यसमाज ने हैदराबाद आँदोलन आरंभ किया । इसमें भाग लेने केलिये हिन्दु महा सभा ने भोपाल से जत्थे भेजे । निजाम हैदराबाद के संकेत पर भोपाल नबाब ने जत्थों की रवानगी पर प्रतिबंध लगा दिया । ठाकुर लालसिंह को जत्थे रवानगी की तैयारी में गिरफ्तार किया उन्हें पन्द्रह दिन जेल में रखा गया ।

अक्टूबर 1938 में प्रजा मंडल की भोपाल इकाई गठित हुई। ठाकुर लालसिंह इसके पहले अध्यक्ष बने । प्रजा मंडल वस्तुतःपंडित मदन मोहन द्वारा स्थापित राजनैतिक इकाई थी । भारत के जिन क्षेत्रों में अंग्रेजों का सीधा शासन था वहाँ काँग्रेस थी । लेकिन जहाँ अंग्रेजों के आधीन रियासतों का शासन था वहाँ प्रजा मंडल काम करता था । ठाकुर लालसिंह को लगा था अंग्रेजों और अंग्रेज नियंत्रित नबाब के अत्याचारों से मुक्ति के लिये हिन्दुओं और मुसलमानों को मिलकर साथ आना चाहिए। इसलिए वे प्रजा मंडल के संस्थापक बने । पर यह ठाकुर लालसिंह के व्यक्तित्व और उनके द्वारा किये गये समाज जागरण के कार्यों का प्रभाव था कि हिन्दु महासभा ने उन्हें यह सुविधा दी थी कि ठाकुर लालसिंह प्रजा मंडल के साथ हिन्दु महासभा के सदस्य भी रह सकते हैं। 1942 में आरंभ हुआ भारत छोड़ो आँदोलन केलिये ठाकुर लालसिंह ने पूरी रियासत की यात्रा की ।

1947 में भारत स्वतंत्र हुआ लेकिन भोपाल में स्वतंत्रता न आ सकी । भोपाल में स्वतंत्रता आँदोलन आरंभ करने के लिये 1947 में सीहोर में एक सर्वदलीय बैठक बुलाई गई। इस बैठक की अध्यक्षता ठाकुर लालसिंह जी ने की ।

इसी बीच भोपाल नबाब ने एक चाल चली । उत्तरदायी शासन के लिये प्रजा मंडल से चर्चा की और एक अंतरिम मंत्रीमंडल बनाकर प्रशासन चलाने का सुझाव रखा नबाब ने आश्वस्त किया कि सभी नागरिकों को समान अधिकार होंगे। ठाकुर लालसिंह इससे सहमत हो गये और एक सर्वदलीय मंत्रीमंडल बन गया । लेकिन भारत विभाजन के समय आसपास से मुस्लिम परिवार भोपाल रियासत आने लगे । ठाकुर लालसिंह को यह स्थिति असहज लगी फिर भोपाल नबाब यात्रा पर चले गये इसलिए कोई समाधान न निकल सका । नवम्बर 1947 में इस संबंधी समाचार टाइम्स ऑफ इंडिया में छपा । इसके अनुसार लगभग दस लाख मुस्लिम शरणार्थी भोपाल में आ गये थे । उन्हें वापस भेजने के लिये वीपी मेनन और सरदार वल्लभभाई पटेल की भोपाल नबाब से भी चर्चा हुई । इन्हीं तनावो के बीच दिल्ली में गाँधी जी की हत्या हुई। भोपाल नबाब को अवसर मिला । हिन्दु महासभा सहित वे तमाम नेता गिरफ्तार कर लिये गये जो नबाब विरोधी थे । इससे भोपाल रियासत को भारतीय गणतंत्र में विलीन करने का अभियान ठंडा पड़ा। लेकिन नबाब की कूटनीति को ठाकुर लालसिंह ने समझा और प्रजा मंडल के सदस्यों से मंत्रीमंडल छोड़ने को कहा । उन दिनों मौलाना तरजी मशरीकी प्रजा मंडल के अध्यक्ष थे । वे सहमत नहीं हुये । जून 1948 आते आते प्रजा मंडल में विभाजन जैसी स्थिति बनी । अंत में ठाकुर लालसिंह ने हिन्दु महा सभा तथा अन्य सामाजिक संगठनों के सदस्यों से चर्चा की और अक्टूबर 1948 में इछावर से विलीनीकरण आँदोलन का उद्घोष कर दिया । पुलिस ने लाठीचार्ज किया, सभा को तितर वितर किया । ठाकुर लालसिंह द्वारा विलीनीकरण आँदोलन की घोषणा कर देने से प्रजा मंडल में नबाब समर्थक कुछ सदस्य नाराज हुये और अध्यक्ष तरजी मशरीकी ने ठाकुर लालसिंह जी के इस कार्य को अनुशासनहीनता माना और उन्हें प्रजा मंडल से निलंबित कर दिया । पर ठाकुर लालसिंह ने इसकी परवाह नहीं की और पूरी रियासत की यात्रा की । उनके अभियान का हिन्दु महासभा और अनेक सामाजिक संगठनों ने सहयोग किया । अक्टूबर 1948 को ठाकुर लालसिंह द्वारा इछावर में किया गया विलीनीकरण आँदोलन का यह उद्घोष पूरी रियासत में फैला । दिसंबर 1948 तक आँदोलन पूरे राज्य में फैल गया था । कोई गांव, कोई कस्बा ऐसा नहीं जहाँ नौजवान विलीनीकरण केलिये उठकर खड़े न हुये हों। ठाकुर लालसिंह अलेक्जेंडर कॉलेज में शिक्षक रहे थे । यह भोपाल रियासत का एक मात्र कॉलेज था । रियासत के अधिकांश शिक्षित लोग इसी कॉलेज के थे। इसलिये जब ठाकुर लालसिंह ने विलीनीकरण आँदोलन का आव्हान किया तो युवा शक्ति उठ खड़ी हुई । इनमें सबसे प्रमुख भाई रतन कुमार भी थे जो उनके छात्र रहे थे जिनके समाचारपत्र “नई राह” ने चिन्गारी को ज्वाला में बदला । सीहोर बरेली उदयपुरा आदि अनेक स्थानों में गोलियाँ भी चलीं बलिदान हुये । अंत में 1 जून 1949 को भोपाल रियासत भारतीय गणतंत्र का अंग बनी ।

भोपाल रियासत एक स्वतंत्र राज्य के रूप में अस्तित्व में आ गई । समझौते के अंतर्गत पुलिस सहित नबाब का पूरा प्रशासनिक अमला यथावत रहा । अक्टूबर 1951 में चुनाव प्रक्रिया आरंभ हुई । ठाकुर लालसिंह भावी नेतृत्व के लिये एक स्वाभाविक चेहरा थे । लेकिन भोपाल नबाब और नबाब समर्थक लाॅवी उन्हें कतई पसंद नहीं करती थी । वे 4 दिसंबर 1951 को चुनाव केलिये जीप से अपना नामांकन भरने सीहोर के लिये रवाना हुये । वे जैसे ही रायल मार्केट पार करके आगे बढ़े कि अगले चौराहे पर जीप दुर्घटना ग्रस्त हो गई और इस दुर्घटना ठाकुर लालसिंह न बच सके । उन दिनों भोपाल में ट्रैफिक भी न था, उस रास्ते भीड़ भी न रहती थी । जीप की स्पीड भी न थी फिर भी ऐसी दुर्घटना ? यह रहस्य आज भी बना हुआ है कि वह दुर्घटना कैसे इतनी भीषण हुई कि ठाकुर लालसिंह न बच सके ।

इतिहास के पन्नों में ठाकुर लालसिंह को उतना स्थान नहीं मिला जैसी उन्होंने समाज की सेवा की । उनका पूरा जीवन सामाजिक, सांस्कृतिक, सनातन परंपराओं और मानवीय मूल्यों की स्थापना के लिये समर्पित था । भोपाल में पहली कन्या शाला और पहला अनाथालय आरंभ करने वाले ठाकुर लालसिंह ही थे। छुआछूत के विरुद्ध सामाजिक जाग्रति और मतान्तरण करने वालों की घर वापसी और मंदिर में प्रवेश कराने में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण थी । दंगों में अपहृत कुछ बालिकाओं को मुक्त करा कर उनका कन्यादान उन्होंने स्वयम् किया था । बैरसिया में उनके द्वारा बनवायी गयी एक कन्या शाला,और एक बालक विद्यालय, भोपाल में उनकी स्मृति में एक पार्क, एक हास्पिटल और एक विद्यालय आज भी है। यह जन मन में ठाकुर लालसिंह का सम्मान और लोकप्रियता थी कि जब उनके असामयिक निधन का समाचार आया तब न केवल पूरे भोपाल रियासत के क्षेत्र अपितु विदिशा से धार तक स्वप्रेरणा से बाजार बंद हो गये थे । कहीं कहीं तो शोक में तीन दिन तक दुकानें नहीं खुलीं थीं।

Share this post

रमेश शर्मा

रमेश शर्मा

श्री शर्मा का पत्रकारिता अनुभव लगभग 52 वर्षों का है। प्रिंट और इलेक्ट्रानिक दोनों माध्यमों में उन्होंने काम किया है। दैनिक जागरण भोपाल, राष्ट्रीय सहारा दिल्ली सहारा न्यूज चैनल एवं वाँच न्यूज मध्यप्रदेश छत्तीसगढ प्रभारी रहे। वर्तमान में समाचार पत्रों में नियमित लेखन कर रहे हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

scroll to top