छत्तीसगढ़: मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार पंकज कुमार झा का पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नाम खुला पत्र

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Caption: Lokswar

सम्माननीय भूपेश बघेलजी,
सादर नमस्कार, जय जोहार।

आपको ‘जनादेश दिवस’ की विलंबित बधाई। आशा है अब आप सानंद होंगे। उम्मीद है अब आपका गुस्सा भी थोड़ा ठंडा हुआ होगा। आपके अहं को ठेस पहुचाने के लिए मैं जरा भी शर्मिंदा तो नहीं हूं, पर आपको हुई तकलीफ के लिए थोड़ा बुरा महसूस कर रहा हूं। दुःख इस बात का हुआ है कि ‘जनादेश दिवस’ की पूर्व संध्या पर आपको एक ‘वेतन पर पलने वाले’ के विरुद्ध प्रेस वार्ता आयोजित करनी पड़ी।

साल भर पहले तक अजीमो शान शहंशाह स्वयं को समझ लेने वाले व्यक्ति की अगर यह दुर्गति हो गयी कि उसे मेरे जैसे वेतनभोगी के मूंह लगना पड़ जाय, तो पराजय की बरसी के अवसर पर यह आपके लिए दुगना पीड़ा का विषय है। आपके स्वस्थ और सुदीर्घ जीवन की कामना करता हूं। महतारी वंदन की किश्त जारी हो चुकी है। आशा है विधायक के रूप में मिलने वाला आपका वेतन भी आपके खाते में पहुंच गया होगा। सलाहकार वाला वेतन मेरा भी आ ही गया है, जिस पर मुझे अगले माह तक ‘पलना’ होगा। बहरहाल।

जानते हैं भूपेशजी? हम भारत के (निम्न मध्यवर्गीय) लोग निस्संदेह वेतन पर पलते हैं। हमारे जैसे करोड़ों लोगों को इसलिए वेतन पर पलना होता है, क्योंकि हम किसी गायकवाड़ या महराज दरभंगा के वंशज नहीं होते हैं। जितना आपके बारे में रिसर्च करना पड़ा है हमें, उसके अनुसार आप भी किसी अकबर या निजाम हैदराबाद की विरासत के उत्तराधिकारी रहे हों, ऐसा नहीं है। तो ऐसे में आपके पास भी या तो वेतन पर, या कमीशन पर पलने का ही विकल्प होगा, विशेषकर अगर अलग कोई व्यवसाय नहीं हो तो। हमने वेतन वाला विकल्प चुना हुआ है। आपने क्या-क्या विकल्प चुना है ‘पलने के लिए’ इसके बारे में कयास लगाने का कोई मतलब नहीं है। सम्बंधित एजेंसियां बकायदा यह जांच कर ही रही होगी। लेकिन यह तय है कि भाजपा की पुरानी सरकार द्वारा धान खरीदी की, की गयी पुख्ता व्यवस्था से पहले वेतन-कमीशन के अलावा आपके पास भी पलने का कोई और माध्यम नहीं रहा होगा। अतः आग्रह है कि वेतन पर पलने वालों को इस तरह हिकारत से कृपया नहीं देखें। यह छत्तीसगढ़ के लाखों शासकीय-अशासकीय कर्मचारियों समेत भारत के करोड़ों वेतनभोगियों का अपमान है। देश-प्रदेश के तमाम वेतनभोगी ‘पक्के में’ काम करते हैं और ये समुंह सबसे अधिक आयकर चुकाकर देश की प्रगति में अपना योगदान देते हैं। सो, मुझे जो कहना हो कहिए, वेतनभोगी जमात आपसे अधिक सम्मान का अधिकारी है। आशा है आगे आप इसका ध्यान रखेंगे।

आपके प्रेस वार्ता का वीडियो बार-बार देखा। आपके कष्ट को समझने की कोशिश की कि आखिर आपकी आपत्ति किन बातों से है? मैंने यही पाया कि स्वयं विरोधाभासी बयान देते हुए आप इस प्रेस वार्ता में बुरी तरह कनफ्यूज नजर आए। जिस विषय पर आप यह कह रहे कि वर्तमान मुख्यमंत्री जी के पक्ष में बोलने वाला कोई नहीं है, उसी मूंह से वहीं आप उसी विषय पर, उसी प्रेस वार्ता में लोकप्रिय सांसद और आपको लोकसभा में पटखनी देने वाले श्री संतोष पांडेय जी के बयान का जवाब भी दे रहे हैं। उसी ‘जोगी-2.0’ विषय पर हमारे उप-मुख्यमंत्री श्री अरुण साव जी, जिन्होंने प्रदेश अध्यक्ष रहते आपकी सरकार को पिछले वर्ष इसी दिन धूल छटा दी थी, उनका भी बयान आया, उसका भी जवाब दिया आपने। तो आपको यह किसने बता दिया था कि केवल ‘वेतन पर पलने वाला’ बोल रहा है, और शेष सभी खामोश हैं। सबने कहा, बार-बार कहा, अनेक बार कहा, लेकिन मुझे आश्चर्य है कि हमारे सभी कद्दावर नेताओं के बयानों से अधिक आपको एक वेतनभोगी का ‘एक्स पोस्ट’ चुभ गया।

एक्स सीएम साहब, आपको क्या स्मरण भी नहीं है कि, आपने भी ‘वजीर ए आला’ बनते ही सलाहकार के रूप में आपके शब्दों में ही कहे तो चार-चार ‘तनख़्वाह पर पलने वाले’ इकट्ठा किए थे। वे राजनीतिक बयानबाजी में पारंगत थे। बाहर के प्रदेशों में घूम-घूम कर वे चुनावी राजनीति में भी व्यस्त रहते थे। यादाश्त कमजोर हो गयी हो तो स्मरण कराता हूं कि आपके एक सलाहकार महोदय ने मात्र 15 महीने के राजनीतिक जीवन में इतना अनुभव बटोर लिया था कि 15 वर्ष मुख्यमंत्री रहे डा. रमन सिंह जी को पत्र लिख कर उन्होंने भाषा ठीक रखने की नसीहत दे डाली थी। तब आपको बड़ा आनंद आया था कि आपके द्वारा नियुक्त वेतनभोगी आपके ‘दुश्मन’ को अपमानित कर रहे थे। है न? हालांकि तब भी इस वेतन पर पलने वाले ने अपनी पार्टी के नेता के बचाव में पत्र का जवाब पत्र से ही देकर लंबा पत्र लिखा था।

इसी तरह पत्र लेखन के बाद वे सलाहकार सीधे ‘शाहीन बाग’ पहुंच गए थे, रायपुर में भी उन्होंने ‘शाहीन बाग’ तामीर करा दिया था अपनी उपस्थिति से। लेकिन तब आपको उनकी राजनीति करना, राजनीतिक बयानबाजी, भाषणबाजी बिलकुल आपत्तिजनक नहीं लगी थी, जबकि आपकी पार्टी में सदस्य के रूप में उनकी उम्र महज कुछ महीने की ही थी। दशकों तक ‘कांग्रेस मीडिया विभाग’ में जी-जान लगा कर काम करने वाले मित्रों की उपेक्षा कर, कांग्रेस कार्यकर्ताओं का हक छीनते हुए राजनीतिक बयानबाजी के लिए आपने यह नियुक्ति की थी? दुःख की बात यह भी थी कि कांग्रेस में मीडिया प्रबंधन का सुदीर्घ अनुभव रखने वाले आपके किसी कार्यकर्ता को आपने भरोसे लायक़ तब नहीं समझा था। इसी तरह आपकी ही भाषा में कहें तो एक दूसरे ‘वेतन पर पलने वाले सलाहकार’ को आपने पूरी ठसक के साथ अपने राष्ट्रीय संगठन में सचिव आदि बनवा दिया था, तीसरे ‘वेतनभोगी’ तुरत-फ़ुरत निकले ही थे अश्लील नकली सीडी आदि बना कर जैसा कि आरोप है, और आप स्वयं उसके वितरण के आरोप में अपने ‘वेतनभोगी’ रहे सलाहकार के साथ जमानत पर हैं। तो आपके वेतनभोगी लोग राजनेता हो गए, और भाजपा सरकार के ‘वेतनभोगी’ आपके चपरासी हैं कि कुछ भी लिखने-कहने से पहले आपसे अनापत्ति प्रमाण पत्र लेंगे? ऐसे कैसे होगा दाऊ? खेल का नियम एक ही रखिए न कृपया, तब खेलने में आनंद आएगा न? है कि नहीं?

जहां तक इस ‘वेतन पर पलने वाले’ का सवाल है, तो वह आज से 25 वर्ष पहले तब के एशिया के एकमात्र पत्रकारिता विश्वविद्यालय रहे संस्थान से तब की पत्रकारिता की सबसे बड़ी डिग्री लेकर राजनीतिक-सामाजिक लेखन में जुटा है। पूर्णकालिक राजनीतिक कार्यकर्ता के रूप में ही हमने अपना जीवन गुजरा है। राजनीतिक समीक्षक के तौर पर भी आपकी वजन से अधिक केवल देश भर के अखबारों में लिख चुका है। जिस सोश्यल मीडिया पोस्ट पर आप इतने अधिक आहत हुए, अपने लोगों से पूछिएगा, वे बतायेंगे आपको कि इस ‘सिटिजन मीडिया’ पर तबसे सक्रिय रहा हूं, जब आपकी पार्टी ने किसी टेसू मीडिया या आइटी सेल का नाम भी नहीं सुना था। एक्स, ट्विटर, फ़ेसबुक, ओरकुट, माइक्रो ब्लॉग के जमाने से पहले ब्लॉग आदि और उससे पहले भी हम अपना डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म बना कर उस जमाने में भी देश-विदेश के भारतवंशियों के बीच पढ़े जाते थे। न केवल पढ़े जाते थे, बल्कि गर्व है इसका कि राष्ट्रवादी विचारधारा को हम मित्रों ने मिलकर सैकड़ों युवा लेखक तैयार कराए हैं, जो आज देश भर में भगवा पताका लहरा रहे हैं।

जिस तरह आपके ‘वेतन पर पलने वालों’ ने अपनी अभिव्यक्ति की आजादी का दुरुपयोग किया, वैसा करने का तो अपन सोच भी नहीं सकते, लेकिन मुझे सोश्यल मीडिया पर लिखने और संविधान के अनुछेद ‘19 (1) क’ के द्वारा प्रदत्त ‘वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ को कोई भी राजनीतिक दायित्व छीन नहीं सकता, उसका सदुपयोग जम कर करते रहे हैं, उसका उपयोग जम कर करेंगे भी। मैं सलाहकार हूं इसलिए नहीं लिख रहा अपितु लिखता रहा हूं, इसलिए सलाहकार हूं। मेरे इस मौलिक अधिकार को छीन ले, ऐसे किसी दायित्व को हम चिमटे से भी छूना नहीं चाहेंगे। जब आपके शासन में, महज बिजली कटौती का पोस्ट फेसबुक पर करने के कारण राजद्रोह का मुकदमा लगा दिया जाता था, जब महज असहमति दर्ज कराने पर आप सौ-सौ मुकदमा दर्ज करा देते थे, तब लिखना नहीं छोड़ा, तो अब क्यों छोड़ेंगे कका? अटलजी के शब्दों में कहें तो – कभी थे अकेले, हुए आज इतने, नहीं तब डरे तो भला अब डरेंगे…. गगन पर लहरता है भगवा हमारा, गगन पर लहरता है भगवा हमारा। इसी तिरंगा और भगवा की शान का बखान करते-करते यही भगवा ओढ़ कर एक दिन छत्तीसगढ़ महतारी के कोरा में ही अंतिम सांस ले लेंगे। क्या हुआ यहां जन्म नहीं लिया तो, मर तो सकते ही हैं यहां! जानते हैं बघेल जी? हम जैसे करोड़ों भारतीयों के लिए एक देवकी माता होती है जिसने जन्म दिया होता है, और एक यशोदा माता होती है, जो पालन करती हैं। इसी भावना से हम काम करते हैं – जहां बसहु तंह सुंदर देसू, जोई प्रतिपालहि सोई नरेशू। उसी संविधान को जिसे आपकी पार्टी ने महज ‘लाल किताब’ में बदल देने का अभियान चलाया हुआ है, के ‘अनुछेद 19 (1) ई’ जो अधिकार भारत के हर नागरिक को देता है, उसे आप मुझसे छीन थोड़े लेंगे भला?

समस्या यही है श्रीमान, कि आप छत्तीसगढ़ से वेतन लेकर लालू जैसे एक घोषित सजायाफ़्ता अपराधी के पक्ष में चुनाव सम्हालने बिहार जा सकते हैं, बिहार के ही दूसरे बाहुबली राजेश रंजन की पत्नी को, जिसने छत्तीसगढ़ शायद देखा भी नहीं हुआ होता है, उसे छत्तीसगढ़ के लोगों का, कांग्रेस के कार्यकर्ताओं का हक छीन कर राज्यसभा से ‘वेतन पर पलने वाला’ बना सकते हैं, तब उसे बिहार से सरकार चलाना नहीं कहा जाएगा, लेकिन कोई व्यक्ति एक ट्वीट आपके विरुद्ध कर दे, तो वह सरकार चलाना हो जाता है? आप उत्तर प्रदेश के लखीमपुर जाकर कथित किसानों को 50-50 लाख देने की घोषणा कर सकते हैं, जबकि अपने प्रदेश में किसानों की आत्महत्या का नोटिस तक नहीं लेते, आप असम जा कर तब वहां से अपने बस्तर के सांसद के साथ रात्रि भोज का फोटो पोस्ट करते हुए खिलखिलाते रहते हैं, जबकि उसी रात उसी बस्तर में नक्सलियों ने दर्जनों जवानों को शहीद कर दिया होता है।

आप झारखंड के नेताओं की कोरोना के दौरान यहां शराब पार्टी करा सकते हैं। आप ब्रिटिश द्वारा स्थापित पार्टी, इटली में पैदा हुई व्यक्ति की सरपरस्ती स्वीकार करते हुए एटीएम लुटा देंगे, जैसा हमेशा आप पर विपक्ष आरोप लगाता रहा है, आप पंजाब के के. टी. एस. तुलसी को राज्यसभा भेजे देंगे, उन्हें जीत का प्रमाण पत्र तक अपने कैबिनेट मंत्री के माध्यम से उनके घर दिल्ली या पंजाब भिजवायेंगे, वे अपना प्रमाण पत्र तक लेने रायपुर आने की जहमत नहीं उठायेंगे। प्रदेश का इतना अपमान कराएंगे आप? आप उत्तर प्रदेश के किसी राजीव शुक्ला को अकारण यहां के लोगों का हक छीन कर राज्यसभा से वेतन दिलवा कर ‘पलने वाला’ बना देंगे, वे सभी वेतन पर पलने वाले नहीं हुए, लेकिन एक व्यक्ति अगर अपनी विचारधारा के लिए काम करते हुए केवल एक्स पोस्ट लिख देता है, तो वह आपको गवारा नहीं? उसे आप उसके जन्म क्षेत्र के आधार पर जज करेंगे। कोई तो कसौटी रखिए सर। इतना दोहरा आचरण लेकर आप कैसे सरवाइव कर लेते हैं? 

श्रीमान जी, अपन यह समझने की कोशिश कर रहे हैं, कि रायपुर में बैठ कर एक्स पर महज एक पोस्ट लिख देना ‘बिहार से सरकार चलाना’ कैसे हो गया भला? क्या एक्स पोस्ट से सरकार चलती है? अत्यधिक माथापच्ची के बाद अंततः मैं इस नतीजे पर पहुंच पाया कि आपने शायद अपना ही अनुभव व्यक्त किया है जब आप केवल सोश्यल मीडिया पर लिखवा कर या थोक में केंद्रीय नेताओं के नाम पत्र लिखवा कर सरकार चला रहे थे, उसे ही सरकार चलाना शायद समझ लिया था आपने। भाजपा में ऐसा नहीं होता महाशय। यहां परिश्रम की पराकाष्ठा करनी होती है। एक-एक मिनट का हिसाब तय रहता है। यह नहीं कि पत्र लिख दिया कि ‘पीएम गरीब कल्याण चावल योजना’ द्वारा चावल वितरण को तीन महीने आगे बढ़ाया जाय, जब केंद्र ने सीधे पांच वर्ष बढ़ा दिया तो अपने लोगों से कहलवाया जाय कि देखो कितनी गरीबी है कि पांच किलो चावल देना पड़ रहा है सरकार को। यह नहीं कि एथेनोल बनाने का पत्र लिखा जाय, और बात जब आगे बढ़ती दिखे तो अपने राष्ट्रीय नेता से कहला दिया जाय कि एथेनोल बनाने का निर्णय खाद्य संकट पैदा करेगा। तब के विपक्ष का सवाल आए कि शराब घोटाला क्यों हो रहा है, तो एक्स (तब ट्विटर) पर जवाब आए कि सावरकर कायर थे, माफ़ीवीर थे, कि नाथूराम मुर्दाबाद बोलना पड़ेगा।

ऐसे-ऐसे उटपटांग पत्र लिखने, सड़े हुए नैरेटिव गढ़ते रहने को ‘सरकार चलाना’ समझते रहने के कारण ही शायद आज भी आपको इस बात का भ्रम हो गया होगा कि किसी ने एक ‘एक्स पोस्ट’ लिख दिया तो वह सरकार चला रहा है। सरकार ऐसे नहीं चलती पूर्व मुख्यमंत्री जी। सरकार चलाने के लिए मनुष्यता, समरूपता, समग्र सोच, सम-विधान वाली दृष्टि विकसित करनी होती है। मुख्यमंत्री बन जाना और ऐन-केन-प्रकारेण अगले ‘ढाई वर्ष’ भी बने रह जाने से बात नहीं बनती। मुख्यमंत्री तो राबड़ी देवी जी भी बन गयी थी जिन्होंने शपथ के बाद हस्ताक्षर करना सीखा, मुख्यमंत्री तो अकेले सदस्य वाले निर्दलीय मधु कोड़ा भी बन गए थे। मुख्यमंत्री होने और उसका औचित्य निरूपण करते रहने के लिए विष्णुदेव साय जी जैसा सौम्य होना होता है, डा. रमन सिंह जी जैसा आदमकद होना होता है। सीएम पद रूपी चादर को ऐसे ओढ़ना होता है कि जब दायित्व पूर्ण हो तब बकौल कबीर साहब, उसे ‘जस की तस रख दीनी चदरिया’ व्याख्यायित किया जा सके। ये नहीं कि ‘पूर्व’ होने पर भी अहंकार इतना अधिक बढ़ जाय कि असहमति का जरा सा स्वर सुना नहीं कि एक छोटे से राजनीतिक कार्यकर्ता को उसके जन्म क्षेत्र, जाति या पेशे के आधार पर अपमानित करते रहा जाय और धृतराष्ट्र की सभा जैसा शेष सभासदों को विद्रूप हँसी हँसने को उकसाया जाय। पद पर रहते हुए भी ऐसा नहीं हुआ जाय कि भरी सभा में हजारों की भीड़ के बीच, अपनी ही प्रदेश की प्रार्थी बिटिया को कहा जाय कि –ऐ लड़की, राजनीति मत कर। गोया राजनीति करने का अकेला टेंडर खुद के नाम से ही निकाल लिया हो आपने। अन्य कोई ‘राजनीति’ करे ही नहीं।

अब बात जरा तनख़्वाह से सम्बंधित भी हो जाय। श्रीमान आपको पता तो होगा कि वेतन की व्यवस्था महान भारत गणराज्य के राष्ट्रपति तक के लिए भी होती है। विधायक के रूप में आज आप वेतन लेते हैं, तो ऐसा ही तमाम जन-प्रतिनिधियों के लिए भी है। हां, सामाजिक जीवन में तय यह करना होता है कि आपको वेतन पर पलना है या कमीशन पर? राजनीति के क्षेत्र के कुछ पूर्णकालिक कार्यकर्ताओं के लिए भी ऐसी ही व्यवस्था होती है। अगर आपको अपनी ही पार्टी का इतिहास पता होता, या आपके वामपंथी सलाहकारों ने कम्युनिस्टों के यहां की ही वेतन व्यवस्था भी आपको बतायी होती, तो आप शायद ‘तनख़्वाह पर पलने’ को ऐसे हिकारत से नहीं देखते। वेतन कभी भी अपमान या उपहास की चीज नहीं हुआ करती है वैतनिक महोदय। कम्युनिस्टों में तो ऐसी व्यवस्था रही है कि वहां के मुख्यमंत्री भी अपना वेतन पार्टी कार्यालय में जमा कर फिर पार्टी से पूर्णकालिक कार्यकर्ता के रूप में नियत वेतन वापस लेते रहे हैं। मुख्यमंत्री रहे बुद्धदेव भट्टाचार्य जी का इतिहास निकाल कर कहिएगा अपने पूर्व सलाहकारों को देने के लिए। वे बता देंगे आपको अगर सच में थोड़ी पढ़ने-समझने की रुचि हो तो।

आपके अहंकार को ठेस इसलिए पहुंच गयी क्योंकि मेरे जैसा छोटा आदमी कैसे आप जैसे ‘महान व्यक्ति’ पर सवाल उठा सकता है। तो दाऊ, इसका भी जवाब यही है कि आप जैसा करते हैं न, प्रकृति आपको वही लौटाती है। 25 वर्ष राजनीतिक-सामाजिक जीवन में गुजारने के बाद भी हमारी औकात आपके बारे में बात करने की नहीं हुई है, लेकिन आपने अपनी हैसियत यह समझ ली थी कि आप इतिहास पुरुष, परम तपस्वी, दो-दो बार आजीवन कारावास की सजा पाए हुतात्मा वीर सावरकार जी तक पर कीचड़ उछाल देंगे। ऐसे हुतात्मा पर कीचड़, जो भाजपा की कौन कहे, कभी भारतीय जनसंघ, संघ से भी संबंधित नहीं रहे। और न ही वे आपके कीचड़ को धोने आते अब। आज आपको यह भी कष्ट हो रहा है, इस कष्ट में आप मीडिया पर भी आक्रमण करने से खुद को रोक नहीं पाए कि कोई छाप कैसे सकता है मेरे जैसे ‘तनख्वाह पर पलने वाले’ के पोस्ट को। जबकि अपने तमाम उल-जुलूल पत्रों, एक्स पोस्टों को आपकी सरकार किस तरह हेडलाइन बना देने का दबाव डालती रही थी, वह प्रदेश के प्रेस जगत के मित्र भूले नहीं हैं। हालांकि आपके लोगों द्वारा फैलाए वैसे ही कीचड़ पर फिर से कमल खिला है, और ‘जनादेश दिवस’ के दिन जब यह पंक्ति लिख रहा हूं, तब ‘कमल’ खिलखिला भी रहा है।

आप विश्व के सार्वाधिक लोकप्रिय नेता, हमारे यशस्वी प्रधानमंत्रीजी के बारे में अनाप-शनाप बोल सकते हैं, वह आपका राजनीतिक अधिकार है, लेकिन मैं एक ‘वेतन पर पलने वाला’ हो गया, जो एक साधारण ट्वीट भी नहीं कर सकता? क्या आप मुसोलिनी के अवतार हैं या इटली से इतना अधिक प्रभावित हैं? स्मरण कीजिए आप कि आपकी पार्टी और आप 15 वर्ष तक मुख्यमंत्री रहे व्यक्तित्व के बयानों पर कैसी प्रतिक्रिया देते थे, किस तरह जानबूझ कर अपने जिला स्तर के कार्यकर्ता का बयान पूर्व सीएम के विरुद्ध छपाते थे ताकि वे अधिक से अधिक वे अपमानित महसूस करें। याद कीजिए अपने उस अपराध को, जब वर्तमान मुख्यमंत्री और सहज-सरल, सौम्य नेता, तब के प्रदेश भाजपा अध्यक्ष श्री विष्णुदेव साय जी के खिलाफ आप किस तरह के बयान देते थे? याद दिलायें आपको? आपने अपनी तुनकमिज़ाजी और पद के अहंकार में हमारे तब के प्रदेश अध्यक्ष सायजी को कहा था कि उनके दिमाग में गोबर भरा है, जिससे आपको बिजली बनाना है। एक राष्ट्रीय आदिवासी नेता जो अनेक बार सांसद, विधायक, केंद्रीय मंत्री, प्रदेश अध्यक्ष रहे हों, उनके ख़िलाफ क्या बिना वेतन पर पलते हुए ही आपने ऐसा असंसदीय विषवमन किया था क्या? आप सदन तक में ‘दो-गला’ जैसा अमर्यादित शब्द उच्चारित करते थे। अगर आपको याद हो, तो आपके और कांग्रेसियों के ऐसे सौ अपशब्दों की हमने सूची जारी की थी। वे सारे बयान क्या बिना ‘तनख्वाह पर पलते हुए ही’ दिया जा रहा था क्या?

निस्संदेह राजनीतिक बयानों के लिए हमारे बड़े नेतागण हैं, वे बयान देते भी हैं। देंगे भी। जैसा इस ‘जोगी 2.0’ मामले में दिया भी है। आपके राजनीतिक कवायद के कयास को तब और बल मिला जब लम्बे समय तक आपके साथ जुड़ी रही, कांग्रेस की राष्ट्रीय टीम की सदस्य रही नेत्री ने भी आलोच्य पोस्ट को ‘कोट रि-पोस्ट’ किया। अपने कांग्रेस के अनुभवों की बिनाह पर उन्होंने भी वही अनुमान लगाया जो अपन ने पोस्ट किया था। निस्संदेह भाजपा में प्रखर और मुखर प्रवक्ताओं की एक फौज है। उस टीम पर हमें गर्व है। सभी लिखने-पढ़ने, सोचने-समझने वाले तेजस्वी युवती और युवा हैं। अनुभवी वरिष्ठ भी हैं। वे लगातार तथ्यों पर आधारित जवाब आपको देते भी रहते हैं, वे ही देंगे भी। मेरा काम पार्टी प्रतिनिधि के तौर पर राजनीतिक बयान देना बिल्कुल नहीं है। इस मर्यादा का हम हमेशा पालन करते हैं। लेकिन मुझसे मेरा ‘की-बोर्ड’ या ‘आइफोन’आप नहीं छीन सकते हैं। यह स्वतंत्रता मुझे उसी संविधान ने दिया है जिसे ‘लाल किताब’ बना कर आपके राहुल गांधी उछालते रहते हैं। 

आ.विधायक जी,आपने अवसर दिया है, तो अत्यधिक संकोच और पूरी विनम्रता के साथ अपने बारे में भी कुछ बताना चाहूंगा आपको। आप नहीं जानते मुझे यह आपकी समस्या है, मेरी नहीं। आपकी पार्टी में जो भी थोड़ा-बहुत पढ़ने-लिखने वाले हों, उनसे परिचय है अपना। न भी हो तो कोई बात नहीं। मेरी पार्टी मुझे जानती है, मेरे ‘पलने’ के लिए इतना बहुत है। अत्यधिक विनम्रता के साथ बताना आवश्यक है कि लगभग 20 वर्ष अपनी पार्टी के प्रदेश कार्यसमिति का सदस्य रहा हूं। भाजपा में एक ‘पार्टी पत्रिकायें एवं प्रकाशन विभाग’ होता है, जिसके दायित्ववान के रूप में भी इतने ही समय से जुड़ा हूं। पार्टी के मुखपत्र, जिसकी प्रसार संख्या भारत के 10 सबसे अधिक प्रसार संख्या वाली पत्रिकाओं में आता है, का संपादक हूं। आपके लिए भले पार्टी मुखपत्र का मतलब ‘नेशनल हेराल्ड जमीन हथियाओ’ अभियान, ‘यंग इंडिया घोटाला करो’ अखबार होता हो, जिसके आरोप में आपका शीर्ष नेतृत्व भी अभी जमानत पर है। लेकिन भाजपा के लिए उसके मुखपत्रों का संवैधानिक महत्व है। पार्टी के संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त और संरक्षित है हमारी पत्रिका।

इसी तरह पार्टी के मीडिया, सोश्यल मीडिया, पुस्तकालय, पॉलिसी रिसर्च समेत ऐसे दर्जनों घोषित-अघोषित दायित्वों से अलग-अलग समय पर दशकों से जुड़ा रहते हुए भी आप नहीं जानते हैं मुझे, तो इससे बड़ी सफलता मेरे लिए और कुछ नहीं हो सकती। यह दिखाता है कि मर्यादा में रह कर पर्दे के पीछे काम कैसे किया जाता है। किस तरह स्वयं को पीछे रह कर अपनी विचारधारा के लिए काम किया जाता है। किस तरह राजनीतिक बयानबाजी से, सुर्ख़ियों में रहने के स्वाभाविक लोभ का संवरण कर काम किया जाता है। अपनी हैसियत समझते हुए माटीपुत्रों को किस तरह ‘मैं नहीं तू’ की भावना से सम्मान देकर सम्पूर्ण शालीनता के साथ अपना गिलहरी योगदान दिया जाता है।

आप अगर सच में इतना लंबा पढ़ चुके हों तो आश्चर्य ही लग रहा होगा आपको कि किसी राजनीतिक दल में ऐसा भी होता है क्या? अचंभित आप इसलिए होते होंगे क्योंकि अपनी पार्टी में आपने अक्सर गाली-गलौज, जूतमपैजार ही होते देखा है जिसके वीडियो आदि मीडिया में भी आते रहते हैं, जैसा अभी हाल में बिलासपुर में भी हुआ है। जैसा कुछ समय पहले आपकी पार्टी के दफ़्तर में ही हुआ था। अगर इसी चुनाव की बात करें तो जिस ‘मोदी गारंटी’ ने आपके झूठे कथित जन घोषणा पत्र की पोल खोल कर जनता के सामने रख दी, उस ‘भाजपा घोषणा पत्र समिति’ का यह ‘वेतन पर पलने वाला’ न केवल सदस्य-सचिव था, उसके प्रारूप समिति का अध्यक्ष था, बल्कि अपने आदरणीय नेता विजय बघेल जी के संयोजकत्व में बनी उस समिति के अनेक उप-समितियों का भी संयोजक था। आदरणीय विजय बघेल जी को तो जानते ही होंगे आप?

जिस ‘हमने बनाया हम ही सवारेंगे’ नारे का आप अब बौखलाहट में मजाक उड़ाते हैं, उस नारे को गढ़ने, और ऐसे कंटेंट बनाने वाली ‘कंटेंट क्रियेशन टीम’ के संयोजक का दायित्व भी अपना था। हमारे नेताओं ने आपके तमाम झूठों की बखिया उधेर कर रख दी थी, उस भाषण समिति का भी घोषित संयोजक अपन थे। ये तमाम घोषित दायित्व थे, बावजूद इसके अगर आप नहीं जानते हैं, तो इस से यह समझा जा सकता है कि मेरी पार्टी के कार्यकर्ता किस तरह प्रसिद्धि से परे होकर कार्य करते हैं। क्या-क्या कहें। जब यह लिख रहा हूं, तब ‘जनादेश दिवस’ मना रही है भाजपा सरकार। आपको पिछली बार मिले ऐतिहासिक समर्थन के बावजूद अपने अहंकार के कारण आपने अपना क्या हाल बना लिया, उसे बताने के लिए इस दिन से बेहतर और क्या हो सकता है भला?

चुनाव में हार-जीत लगी रहती है। भाजपा कभी जबरन ईवीएम पर ठीकरा भी नहीं फोड़ती। अगर कभी पराजित भी होती है तो स्वीकार करती है बड़े मन से। अगर जीतती है तो विनम्रता से उसे ‘दायित्व’ समझते हुए काम पर लग जाती है। इस महत्वपूर्ण दिवस पर आपसे ‘हाथ’ जोड़कर यही निवेदन करता हूं कि अगर सच में स्वयं को बड़ी हस्ती समझते हों, तो कृपया बड़प्पन लाइए स्वयं में। बड़प्पन लाने का अर्थ यह होता है कि आलोचनाओं को सहा जाय। इस ‘वेतन पर पलने वाले सलाहकार’ की आपको यही सलाह होगी कि – निंदक नियरे राखिए। किसी छोटे कार्यकर्ता की, चाहे वे विपक्षी दल का ही क्यों न हो, उसका अपमान नहीं किया जाय, उसकी खिल्ली नहीं उड़ायी जाय, किसी के पेशे, क्षेत्र, जाति, वेतन, आदि के आधार पर ‘पलने वाला’ जैसा शब्द उपयोग नहीं किया जाय।

महाशय, हर व्यक्ति अपने प्रारब्ध का पाता-खाता-पलता है। काहु न कोई सुख-दुःख कर दाता, निज कृत करम भोग सब भ्राता। कृपया अपने अहंकार से मुक्त होईए। भाजपा या हमारे नेताओं, प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री जी की चिंता में आपको दुबले होनी की जरूरत नहीं है। आप अपनी और अपने बचे-खुचे कुनबे की चिंता कीजिए। स्वयं में शालीनता और सौजन्य लाइए। दर्पण देखिए। कृपया बड़े बन जाइए। हमारे प्रदेश अध्यक्ष किरण देव जी से शालीनता सीख सकते हैं। हमारे संगठन मंत्रियों के जीवन ये यह सीखा जा सकता है कि किस तरह संगठन शिल्प को विनम्रता और सादगी के साथ गढ़ा जाता है। हमारे विचार परिवार के प्रातः स्मरणीय प्रचारकों के जीवन से संदेश लिया जा सकता है। असली गांधी को पढ़ कर उनके आचरण का रंच मात्र भी जीवन में उतारने की कोशिश होनी चाहिए। नेता होने, बड़ा या महान होने के लाइ ही नहीं बल्कि अच्छा मनुष्य होने के लिए भी यह अंगीकार करना चाहिए। इस ‘वेतन पर पलने वाले सलाहकार’ की आपको आख़िरी यही सलाह होगी कि – ज्ञान गरीबी हरि भजन, कोमल वचन अदोष, तुलसी कबहु न छोड़िए, क्षमा, शील, संतोष।

ईश्वर आपको कम से कम उतनी आलोचना सहने की शक्ति अवश्य प्रदान करें, जितनी बेजा आलोचना आप और आपका कुनबा हुतात्मा वीर सावरकर जी से लेकर नरेंद्र दामोदरदास मोदीजी तक की करता है। अपना ध्यान रखिए।

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