इन दिनों सामाजिक न्याय की बात सभी राजनीतिक दल कर रहे हैं। यह सामाजिक न्याय वास्तव में है क्या? सामाजिक न्याय का अर्थ है, सभी नागरिकों के बीच सामाजिक, भौतिक और राजनीतिक संसाधनों का न्यायसंगत वितरण होना। सामाजिक न्याय के अन्तर्गत सभी तरह के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक असमानताओं और भेदभाव को दूर करने का सरकार द्वारा प्रयास किया जाता है और इसके तहत सामाजिक मामलों और आर्थिक गतिविधियों में सभी पुरुषों और महिलाओं को समान अवसर प्रदान किए जाने की दिशा में सरकार सक्रिय नजर आती है।
क्या आज कोई भी सरकार इस दिशा में काम करती हुई नजर आ रही है? समाज के बीच से इस गैर बराबरी को खत्म करने की दिशा में, क्या वह गंभीर है?
दुर्भाग्य की बात है कि समाज से जुड़े जिन मुद्दों को मीडिया में स्थान बनाना चाहिए था। सरकार को पर जिस मीडिया को चौकस नजर रखनी चाहिए थी। वह भी अब धीरे धीरे व्यवस्था का हिस्सा बना हुआ दिखाई देता है। देश का आम आदमी देखे किसकी तरफ जब मुख्य धारा की मीडिया से कथित बगावत करके निकले वैकल्पिक मीडिया खड़ा करके उम्मीद जगाने वाले रवीश कुमार, अजीत अंजुम, पूण्य प्रसून वाजपेयी, अभिसार शर्मा, साक्षी जोशी जैसे दर्जनों पत्रकार यू ट्यूबर बन गए और कांग्रेस की चाटुकारिता को पत्रकारिता कहकर प्रचारित करने लगे। अब जब सभी तरह के पत्रकार कांग्रेस—बीजेपी के खेल में ही कथित तौर पर शामिल हैं, फिर पत्रकारिता की परवाह कौन करेगा?
आप खबर की बात करेंगे और जिससे बात कर रहे होंगे, वह आपकी विचारधारा को तौल समझ रहा होगा। आप बड़ी से बड़ी खबर सामने ले आएंगे, उसे थोड़ी ही देर में सामने वाले दल का आईटी सेल प्रोपेगेंडा साबित कर दिया जाएगा।
हो सकता है कि अब जो मैं लिखने जा रहा हूं, वह देश की बड़ी आबादी के लिए कोई खबर ना हो लेकिन जिनका विश्वास सामाजिक न्याय में कायम है। जो गैर बराबरी के खिलाफ किसी भी तरह की लड़ाई का समर्थक रहा है। वह इस खबर को समझेगा। यह खबर लिखी ही उनके लिए जा रही है, जो समाज में किसी भी तरह के भेदभाव के खिलाफ खड़े हैं।
हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी प्रदेश के अन्य पिछड़ा वर्ग के एक महत्वपूर्ण नेता हैं। संभव है कि यह बात उनके सज्ञान में आई नहीं होगी। वर्ना दिल्ली के कॉपरनिकस मार्ग पर स्थित हरियाणा भवन के मुख्य द्वार पर दो तरह का रजिस्टर क्यों रखा जाता? एक कार वालों के लिए और दूसरा रजिस्टर है बे—कार (बिना कार वालो) लोगों के लिए। कार वालों की एंट्री दरवाजे पर खड़े सुरक्षाकर्मी बिना उन्हें कोई तकलीफ दिए स्वयं करते हैं। जबकि जो कार से नहीं आया है, उसे दूसरा रजिस्टर दिया जाता है। एंट्री करने के लिए। कुछ लोग इसे सुरक्षाकर्मियों की कामचोरी कह सकते है। जबकि ऐसा नहीं है।
हरियाणा भवन के एक सुरक्षाकर्मी के अनुसार, ऐसा आदेश उन्हें ऊपर से मिला हुआ है। इसलिए दरवाजे पर दो तरह का रजिस्टर रखा हुआ है। एक जिसमें चार पहिया वाहन से आए लोगों का गाड़ी नंबर दर्ज होता है। यह काम दरवाजे पर सुरक्षा में तैनात कोई कोई सिपाही करता है। जबकि चार पहिया वाहनों की अच्छे से जांच होनी चाहिए थी और नियम सबके लिए बराबर होना चाहिए। यदि हरियाणा भवन में आने वालों को रजिस्टर में एंट्री करनी है तो कार से हों या बेकार हों, सभी के लिए एक नियम होना चाहिए।
यदि मोटरसायकिल से आने वाला अपनी मोटरसायकिल को लगाकर, वापस आकर एंट्री कर सकता है तो फिर कोई यदि कार से है तो यह बात उनको भी कही जा सकती है कि आप कार पार्क करके वापस आएं और यहां अपनी एंट्री खुद करके जाइए।
यदि हरियाणा के मुख्यमंत्री सामाजिक न्याय में विश्वास रखते हैं तो विश्वास किया जा सकता है कि दिल्ली स्थित हरियाणा भवन के दरवाजे पर चल रहे इस भेदभाव को गंभीरता से लेंगे।
(यदि इस समाचार के संबंध में हरियाणा सरकार की तरफ से कोई भी प्रतिक्रिया प्राप्त होगी तो उसे आप सभी के साथ शेयर किया जाएगा। ई मेल mediascandelhi@gmail.com पर मीडिया स्कैन से संपर्क किया जा सकता है)