धर्म प्रचार और समाज प्रबोधन का केंद्र बने मंदिर

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Caption: क्रांतिदूत

– मिलिंद परांडे, (केंद्रीय संगठन महामंत्री- विहिप)

हमारे मंदिर पहले की तरह समजाभिमुख बनकर शिक्षा, चिकित्सा, सेवा, आस्था, प्रेरणा, शक्ति, धर्म प्रचार और समाज प्रबोधन का केंद्र बने, यह आज की आवश्यकता है। यह वक्तव्य मिलिंद परांडे ने ‘मंदिर राष्ट्र के ऊर्जा केंद्र’ ग्रंथ के विमोचन कार्यक्रम के दौरान प्रमुख वक्ता के तौर पर दिया।

मंदिर के विविध पहलुओं को हिंदी विवेक प्रकाशित “मंदिर : राष्ट्र के ऊर्जा केंद्र” ग्रंथ में रेखांकित किया गया है। अतः निश्चित रूप से मंदिर ग्रंथ मार्गदर्शक सिद्ध होगा, ऐसा मुझे पूर्ण विश्वास है। हिंदी विवेक के इस सराहनीय कार्य के लिए मैं उनका अभिनंदन करता हूं।

मुंबई के दादर पूर्व स्थित स्वामी नारायण मंदिर के सभागृह में हिंदी विवेक पत्रिका द्वारा प्रकाशित ‘मंदिर: राष्ट्र के ऊर्जा केंद्र’ ग्रंथ का विमोचन समारोह हर्षोल्लास के साथ सम्पन्न हुआ। इसी के साथ विहिप के दिनदर्शिका का भी विमोचन किया गया। मंच पर विराजमान विहिप के केंद्रीय संगठन महामंत्री मिलिंद परांडे जी, मंदिर स्थापत्य व मूर्ति विशेषज्ञ डॉ. गो. बं. देगलूरकर, झा कंस्ट्रक्शन प्रा. लि. के चेयरमैन व एमडी रामसुंदर झा एवं उनकी धर्म पत्नी मनोरमा झा, विहिप कोंकण प्रांत मंत्री मोहन सालेकर, हिंदुस्थान प्रकाशन संस्था के अध्यक्ष पद्मश्री रमेश पतंगे, हिंदी विवेक के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमोल पेडणेकर एवं हिंदी विवेक की कार्यकारी सम्पादक श्रीमती पल्लवी अनवेकर आदि मान्यवर उपस्थित थे।

हिंदी विवेक के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमोल पेडणेकर ने अपनी प्रस्तावना में हिंदी विवेक पत्रिका के १५ वर्षों की उल्लेखनीय सफल यात्रा पर संक्षेप में प्रकाश डाला और विशेष तौर पर मंदिर राष्ट्र व समाज जागरण के प्रमुख केंद्र रहे है इसलिए हमारी मंदिर की परंपरा से ही भारत विश्वगुरु की भूमिका में आएगा। लोकरंजन के साथ लोकमंगल के उद्देश्य से पत्रकारिता क्षेत्र में कार्य करने वाले हिंदी विवेक पत्रिका द्वारा ‘मंदिर: राष्ट्र के ऊर्जा केंद्र’ ग्रंथ को प्रकाशित किया गया है।

इसके बाद हिंदुस्थान प्रकाशन संस्था के अध्यक्ष पद्मश्री रमेश पतंगे ने अपने भाषण में कहा कि सरदार पटेल को ऐसा क्यों लगा कि सोमनाथ का मंदिर खड़ा होना चाहिए? के.एन. मुंशी और राजेंद्र प्रसाद को क्यों लगा कि मंदिर खड़ा होना चाहिए? वो तो विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ता नहीं थे। परंतु वो इस बात को जानते थे कि भारत स्वतंत्र हो रहा है और स्वतंत्रता का प्रतीक क्या है तो वह हमारा मंदिर है। यदि मंदिर खड़ा होता है और भारत स्वतंत्र होता है तो दुनिया में एक सकारात्मक संदेश जाएगा।

मंदिर स्थापत्य व मूर्ति विशेषज्ञ डॉ. गो. ब. देगलूरकर जी ने अपने वक्तव्य में कहा कि मंदिर के स्थापत्य कला के शिल्पकारों को हमने भुला दिया। जिन्होंने भव्य दिव्य मंदिर बनाए। मंदिर एक सामाजिक संस्था है जिसमें समाज के सभी वर्गों की सहभागिता होती है।

इस दौरान झा कंस्ट्रक्शन प्रा. लि. के चेयरमैन व एमडी तथा डायरेक्टर रामसुंदर झा एवं उनकी धर्मपत्नी मनोरमा झा, गोवर्धन इको विलेज के निदेशक गौरंगदास प्रभुजी, टेम्पल कनेक्ट के संस्थापक गिरीष वासुदेव कुलकर्णी एवं हिंदी विवेक के प्रतिनिधि दत्तात्रेय ताम्हणकर एवं महेश जुन्नरकर को मंच पर उपस्थित मान्यवरों के हाथों पुरस्कार, पुस्तक, शाल देकर विशेष तौर पर सम्मानित किया गया।

कार्यक्रम का सफल संचालन हिंदी विवेक की कार्यकारी सम्पादक श्रीमती पल्लवी अनवेकर ने किया और सभी का आभार माना। अंत में श्रीमती मानसी राजे द्वारा पसायदान के उपरांत कार्यक्रम का समापन किया गया।

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