बांग्लादेश में जब तख्ता पलट हुआ था, अब ऐसा लग रहा है कि उस समय मीडिया संस्थानों ने ठीक ही लिखा था कि इसके पीछे चीन का हाथ हो सकता है। बांग्लादेश की जनता ने मोहम्मद यूनुस को कार्यवाहक प्रधानमंत्री स्वीकार करके अपनी तबाही के मसौदे पर ही मानों हस्ताक्षर कर दिया था। अब बांग्लादेश में लोकतंत्र बहाल होते होते सबकुछ लूट चुका होगा।
तिब्बत में इस समय दुनिया का सबसे बड़ा हाइड्रोपावर बांध तैयार हो रहा है। इससे चीन सिर्फ भारत को नुकसान पहुंचा रहा है, ऐसा नहीं है। इससे बांगलदेश भी प्रभावित होगा। बांग्लादेश छोटा देश है तो उस पड़ी चीन की हल्की मार भी, उसे भारी पड़ने वाली है।
बांग्लादेश को यह बात कौन समझाए कि उसके देश में एक ऐसा कठपुतली शासक चीन ने बैठा दिया है। जो बांग्लदेश से अधिक चीन के हितों की चिंता कर रहा है।
भारत में बाबा साहब को मानने वाले अम्बेडकरवादी नव बौद्धों के बीच भी तिब्बत को लेकर कभी कोई चर्चा नहीं सुनी। चीन जिस तरह से बांध के नाम पर बौद्ध विहारों को तबाह कर रहा है। नव बौद्धों को इसे लेकर किसी मंच पर तो आवाज उठानी चाहिए थी। इस समय चीन तिब्बत की पूरी पारिस्थितिकी के साथ खिलवाड़ कर रहा है। यह चिंता की बात है। एक अनुमान के अनुसार लगभग 15 लाख तिब्बतियों को विस्थापित करने की तैयारी चीन कर चुका है। 23 मई 1951 को चीन ने तिब्बत पर कब्जा किया था। बौद्धों के सबसे बड़े गुरु दलाई लामा को अपने देश से विस्थापित होने को उसने मजबूर किया। क्या बाबा साहब में यकिन रखने का दावा करने वाले किसी एक्टिविस्ट को इस मुद्दे पर कभी बात करते हुए सुना है आपने? तिब्बत को लेकर भारत के नव बौद्धों के बीच कभी कोई चर्चा होते मैने तो नहीं सुनी।
पूरा तिब्बत बौद्धों का है। जिसे उन्हें चीन से वापस लेना है। इस गंभीर मुद्दे पर चर्चा किसी अम्बेडकरवादी बौद्ध सम्मेलन में सुनने को नहीं मिलती।
इस साल के प्रारंभ में एक अन्य हाइड्रोपावर परियोजना का विरोध कर रहे सैकड़ों तिब्बतियों को चीन ने बुरी तरह पीटवाया और उनकी गिरफ्तारी भी करवाई। यह सब पढ़कर यही समझ आता है कि तिब्बतियों की स्थिति चीन में उईगर मुसलमानों से बेहतर नहीं है। लेकिन इस मुद्दे पर ना कभी भारतीय मुसलमान चिन्तित दिखते हैं और ना नव-बौद्ध!