26 जनवरी भारत में पूर्ण स्वराज आरंभ होने का ऐतिहासिक दिन है । इसी दिन भारतीय संविधान लागू हुआ था । इससे पहले 15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र तो हो गया था पर राजकाज का संचालन ब्रिटिश कालीन “भारत अधिनियम 1935” से हो रहा था । भारतीय संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ और इसके साथ 26 जनवरी भारत का “पूर्ण स्वराज्य दिवस” की तिथि बनी ।
भारत के दो राष्ट्रीय पर्व हैं। एक स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त और दूसरा 26 जनवरी का गणतंत्र दिवस । 15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ था एवं 26 1950 को स्वतंत्र भारत का संविधान लागू हुआ था । इसलिये पूरे देश में ये दोनों तिथियों पर आयोजनों की धूम होती है । भारत के प्रत्येक गांव, प्रत्येक नगर प्रत्येक विद्यालय और प्रत्येक बस्ती में ये दोनों उत्सव मनाये जाते हैं । इन दोनों उत्सवों के मुख्य आयोजन राजधानी दिल्ली में होते हैं। स्वतंत्रता दिवस आयोजन दिल्ली के लाल किला प्रांगण में और गणतंत्र दिवस आयोजन प्रगति मैदान में होता है । प्रगति मैदान से परेड लाल किले तक जाती है । गणतंत्र दिवस आयोजन में भारतीय सेना के तीनों अंगो की परेड होती है। भारतीय जवान अपने शौर्य का प्रदर्शन भी करते हैं। इसके साथ विभिन्न राज्यों की स्थानीय लोक जीवन एवं प्रगति पर आधारित शोभा यात्रा निकाली जाती है । देशवासी एक ओर भारत की विविधता से परिचित होते हैं और दूसरी ओर भारत की प्रगति से भी अवगत होते हैं। परेड की सलामी राष्ट्रपति लेते हैं। कार्यक्रम का शुभारंभ प्रधानमंत्री द्वारा इंडिया गेट पर अमर जवान ज्योति पर पुष्पांजलि अर्पित करने से होती है । यह पुष्पांजलि देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान देने वाले सैन्य जवानों को स्मरण करने केलिये होती है। इसके बाद निकलने वाली परेड की सलामी राष्ट्रपति लेते हैं जबकि राज्यों में राज्य स्तरीय आयोजन में उस प्रदेश के राज्यपाल सैन्य सलामी लेते हैं। गणतंत्र दिवस के आयोजन में विशिष्ट सेवाओं और उपलब्धियों के लिये सशस्त्र बलों के जवानों को पदक और नागरिकों को पुरस्कार दिए जाते हैं। सशस्त्र बलों के हेलीकॉप्टर आसमान से परेड क्षेत्र पर पुष्प वर्षा करते हैं। बाल, किशोर और युवा बच्चे नाचते-गाते और देशभक्ति के गीत गाते हुए परेड में भाग लेते हैं। इन्हें बहुत तैयारी के साथ विभिन्न प्रदेशों से चयन करके आमंत्रित किया जाता है । सशस्त्र बलों के जवान मोटरसाइकिल पर विशिष्ट करतव के दिखाते हुये चलते हैं। परेड का समापन भारतीय वायु सेना द्वारा “फ्लाई पास्ट” के साथ होता है, जिसमें लड़ाकू विमान मंच के पास से गुज़रते हैं, जो प्रतीकात्मक रूप से राष्ट्रपति को सलामी देते हैं। ये भारतीय ध्वज के रंगों में धुएँ के निशान छोड़ते हैं।
इस राष्ट्रीय आयोजन के साथ भारत के सभी प्राँतों की राजधानियों और स्थानीय स्तर पर आयोजन होते हैं। इसमें शासकीय स्तर के साथ विभिन्न संगठनों, विद्यालयों एवं निजी संस्थानों में तिरंगा फहराकर गणतंत्र दिवस का आयोजन होता हैं । इसमें प्रबुद्ध जनों की उपस्थिति और राष्ट्र आधारित साँस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किये जाते हैं।
गणतंत्र दिवस आयोजन की दो विशेषताएँ और होती हैं। प्रतिवर्ष इस उत्सव पर मुख्य अतिथि के रूप में कोई विदेशी राज प्रमुख आते हैं। दूसरी विशेषता यह है कि प्रतिवर्ष गणतंत्र दिवस उत्सव की एक थीम होती है । इस वर्ष मुख्य अतिथि के रूप में इंडोनेशिया के राष्ट्रपति महामहिम प्रबोवो सुबिआंतो भारत आ रहे हैं। उन्होने प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी का निमंत्रण स्वीकार कर लिया है और वे 25 जनवरी 2025 को नई दिल्ली पहुँच जायेंगे। यह भी संभावना है कि प्रधानमंत्री श्रीनरेंद्र मोदी की उनसे द्विपक्षीय वार्ता होगी और कोई महत्वपूर्ण समझौता भी हो सकता है । गणतंत्र दिवस के उत्सव में सूत्र के रूप थीम घोषित करने का उद्देश्य राष्ट्र निर्माण में जन जागरण का वातावरण बनाना है । इस वर्ष की थीम “स्वर्णिम भारत-विकास के साथ विरासत” है । प्रधानमंत्री श्रीनरेंद्र मोदी ने भारत को विश्व में सर्वश्रेष्ठ राष्ट्र बनाने का संकल्प व्यक्त किया है । वे भारत के विकास को पंख तो लगाना चाहते हैं लेकिन अपनी विरासत को सहेजते हुये । भारत यदि विश्व में प्रतिष्ठित रहा है तो अपनी गौरवशाली संस्कृति के आधार पर ही । इसलिये प्रधानमंत्री श्रीनरेंद्र मोदी ने “विकास के साथ विरासत” का नारा दिया है । उन्होंने “विकास के साथ विरासत” का यह आव्हान भारत के संविधान निर्माताओं की भावना के अनुरूप किया है । भारत के संविधान के प्रावधानों के अतिरिक्त संविधान में जो चित्र अंकित किये गये हैं वे सभी भारत की गौरवशाली विरासत का संदेश देते हैं। भारत के संविधान में ऐसे कुल बाईस चित्र हैं। इनमें वैदिक काल के गुरुकुल, भागीरथ की तपस्या, लंका पर रामजी की विजय, नटराज, हनुमानजी, गीता का उपदेश देते भगवान श्रीकृष्ण, मोहन जोदड़ो के चित्र, भगवान बुद्ध, महावीर स्वामी के अतिरिक्त मौर्य एवं गुप्त काल की गरिमाचित्र, विक्रमादित्य का दरबार, नालंदा विश्वविद्यालय, उड़िया मूर्तिकला, मुगलकाल में अकबर का दरबार, शिवाजी और गुरु गोविंद सिंह, टीपू सुल्तान, रानी लक्ष्मीबाई, गांधीजी की दांडी यात्रा आदि चित्र हैं। ये चित्र संविधान की सजावट के लिये नहीं जोड़े गये हैं अपितु भारतीय समाज जीवन को विशिष्ट संदेश देते हैं। अपने कर्म कर्तव्य की प्रेरणा देते हैं। संविधान में चित्रित इन विभूतियों, अथवा दर्शाए गई घटनाओं के चित्र भारतीय विरासत का गौरव हैं। चित्रों से स्पष्ट है कि संविधान निर्माता स्वतंत्र भारत की विकास यात्रा का आधार विरासत को बनाना चाहते थे । इसी भावना को ध्यान में रखकर संविधान में इन चित्रों का चयन किया गया है । इसी संदेश को ध्यान में रखकर मोदी जी ने अपनी विकास यात्रा विरासत से जोड़ी है ।
संविधान सभा का गठन
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद भारत स्वतंत्रता की ओर बढ़ने लगा था । अंग्रेजों ने भारत की स्वतंत्रता और विभाजन का संकेत दे दिया था। इसकी तैयारी होने लगी थी । इसी तैयारी में भविष्य में स्वतंत्र होने वाले भारत की सत्ता संचालन केलिये संविधान सभा का गठन हुआ । इसमें सभी राजनैतिक दलों प्रमुख सामाजिक संगठनों, विषय विशेषज्ञों तथा सरकार के मनोनीत प्रतिनिधियों को लेकर संविधान सभा का गठन हुआ । संविधानसभा के गठन की यह प्रक्रिया सितम्बर 1946 से आरंभ हुई और नवम्बर 1946 में पूरी हुई । 6 दिसंबर 1946 को संविधान सभा की विधिवत घोषणा हुई । संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसंबर 1946 को हुई । यह संविधान सभा जब पहली बार अस्तित्व में आई तब इसके कुल सदस्य 389 थे। लेकिन संविधान निर्माण की प्रक्रिया चलते अगस्त 1947 में भारत विभाजन और स्वतंत्रता की तिथि निश्चित हो गई। 14 अगस्त 1947 को विभाजन हुआ और पाकिस्तान अस्तित्व में आ गया । विभाजन के बाद संविधान सभा के कुछ सदस्य पाकिस्तान चले गये । तब भारतीय संविधान सभा के सदस्यों की संख्या घटकर 299 रह गई । संविधान सभा में महिला सदस्य 15, अनुसूचित जाति के 26 और अनुसूचित जनजाति के 33 सदस्य थे । डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा संविधान सभा के अस्थायी अध्यक्ष बने । बाद में डॉ. राजेंद्र प्रसाद संविधान सभा के स्थाई अध्यक्ष चुने गए । संविधान के प्रावधान निश्चित हो जाने के बाद प्रारूप समिति बनी । डॉ. भीमराव अंबेडकर संविधान सभा की प्रारूप समिति के अध्यक्ष बने । इस समिति में कुल सात सदस्य थे । 26 नवम्बर 1949 को अंतिम रूप से संविधान स्वीकार किया गया और 26 जनवरी 2950 से लागू हुआ । संविधान सभा के गठन से संविधान लागू होने तक कुल 2 वर्ष 11 महीने और 18 दिन लगे । संविधान लागू होने के साथ भारत को पूर्ण स्वराज्य घोषित किया गया ।
भारतीय संविधान की विशेषताएँ
भारतीय संविधान संसार का सबसे विशिष्ट संविधान माना जाता है । भारत की संविधान सभा ने दुनिया के सभी संविधानों का अध्ययन किया और हर संविधान के विशिष्ट प्रावधानों को अपने संविधान में शामिल किया। नागरिक स्वतंत्रता के जितने अधिकार भारतीय संविधान में हैं उतने दुनिया के किसी अन्य संविधान में नहीं। भारतीय संविधान की दूसरी विशेषता संविधान की विशालता है । इतना विस्तृत संविधान दुनियाँ में कोई नहीं। यह सबसे व्यापक लिखित संविधान है । भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्षता का प्रावधान तो है लेकिन इसमें प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्मानुसार आचरण करने की पूरी स्वतंत्रता है । इसमें नागरिकों के अधिकार और कर्तव्य की स्पष्ट विवेचना है । इसमें संघात्मकता भी है और एकात्मकता भी है। भारतीय संविधान में सत्ता चयन केलिये संसदीय प्रणाली को सुनिश्चित किया है तथा संचालन केलिये विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका जैसे तीन अंग सुनिश्चित किये । तीनों के बीच कार्यों, अधिकार और दायित्व का स्पष्ट निर्धारण किया । संविधान में इन तीनों संस्थाओं का प्रमुख होने का अधिकार भारत के राष्ट्रपति को दिये गये हैं । भारतीय संविधान में केंद्र और राज्य सरकार के बीच विषयों और कार्यों का स्पष्ट विभाजन है। केन्द्र सरकार को कुछ आपात अधिकार भी दिये गये हैं जिससे वह केन्द्र राज्य में हस्तक्षेप कर सकता है ।
गणतंत्र दिवस उत्सव आयोजन परंपरा
26 जनवरी 1950 को संविधान लागू होने के साथ गणतंत्र दिवस उत्सव मनाने की परंपरा भी आरंभ हुई । 26 जनवरी 1950 को पहले गणतंत्र दिवस पर भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने 21 तोपों की सलामी के साथ ध्वजारोहण किया था। ध्वजारोहण के साथ राष्ट्रगान “जन गण मन…” का गायन हुआ और डा राजेन्द्र प्रसाद जी ने राष्ट्र को संबोधित करते हुये भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों एवं अन्य वीर सपूतों का स्मरण किया। उन्होंने भारत को पूर्ण गणतंत्र राष्ट्र घोषित करते हुये 26 जनवरी को राष्ट्रीय पर्व भी घोषित किया गया। इस आयोजन में देशाक्ति गीत, राज्यों की चित्रकला एवं अन्य क्षेत्रीय विशेषताओं की झाँकी तथा सेना के तीनों की परेड हुई । यह एक ऐतिहासिक पल था । इस पहले गणतंत्र दिवस आयोजन में मुख्य अतिथि के रूप में इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्णो भारत आये थे। उसी आयोजन भारत के प्रत्येक गणतंत्र दिवस पर विदेशी राज प्रमुख को आमंत्रित करने की परंपरा आरंभ हुई जो आज भी यथावत है।