मैं हूँ और मेरा सुख है
मैं हूँ और मेरा दुख है
मैं हूँ और मैं ही मैं हूँ
और
घर घर यही कहानी है ,
अम्मा पानी पानी है ।
पिछवाड़े की खाट है वो ,
वो खंडहर की रानी है ।
अनिल जोशी ने लोकार्पण के अवसर पर अपनी कविताओं , भटका हुआ भविष्य ‘ नींद कहाँ हैं ‘ बाल मजदूर , क्या तुमने उसको देखा है के अंश पढ़े और प्रसिद्ध कविता ‘सीता को सोने का मृग चाहिए ‘ कविता का पाठ किया । पुस्तक मेले में एक लघु कवि सम्मेलन हो गया ।
प्रसिद्ध ललित निबंध लेखक श्री नर्मदा प्रसाद उपाध्याय ने अपने विचार साझा करते हुए कहा कि श्री अनिल जोशी की कविताओं से मेरा परिचय पिछले बीस बाईस वर्षों से है।श्री जोशी जीवनानुभव के कवि हैं।उनकी कविता वह दर्पण है जिसमें अपने समय के यथार्थ की इबारतें उल्टी नहीं सीधी दिखाई देती हैं।इन कविताओं की प्रासंगिकता इसी तथ्य से सिद्ध है कि इन कविताओं का दूसरा संस्करण निकला है।
इस अवसर पर बोलते हुए वरिष्ठ कवि और दोहाकार नरेश शांडिल्य ने उनके साथ के लेखन के अनुभवों को साझा करते हुए उनकी कविताओं के संबंध में कहा कि अनिल जी की ये कविताएँ उनके ब्रिटेन प्रवास के दौरान लिखी गई कविताएँ हैं। उनके पहले कविता संग्रह ‘मोर्चे पर’ की ताक़तवर विचार-कविताओं से इतर एक नए अनुभव की कविताएँ हैं। इन कविताओं की लोकप्रियता अनन्य है, जिसे मैंने ख़ुद अपनी आँखों के सामने घटित होते देखा है। अनिल जोशी सही मायने में एक असाधारण कवि हैं।
प्रसिद्ध लेखिका अलका सिन्हा ने अपने वक्तव्य में कहा कि सुप्रसिद्ध कवि अनिल जोशी कई विधाओं में लेखन करते हैं किंतु व्यंग्य की उपस्थिति स्थायी भाव की तरह उनकी रचनाओं में देखी जा सकती है। इस संग्रह की कविताएं भारत और ब्रिटेन के बीच भाषा, संस्कृति और जीवन मूल्यों की टकराहट से उपजती हैं और इनके भीतर छुपा व्यंग्य कहीं चुभन पैदा करता है तो कहीं मर्माहत भी करता है। जीवन के प्रति आसक्ति जगाता है तो कहीं निर्विकार भाव से आत्मावलोकन भी करता है। विवेकानंद के दर्शन की पड़ताल करने के साथ-साथ सोने के हिरन के माध्यम से सांसारिक भौतिकता पर प्रश्न चिह्न भी अंकित करता है। उन्होंने कहा कि ‘ धरती और बादल ‘ कविता प्रेम कविता नहीं है , अपितु यह वर्तमान समय में नारी – पुरूष संबंधों के जटिल स्वरूप को रेखांकित करती है ।
जीवन मूल्यों की पक्षधरता करती ये कविताएँ पाठकों का वैचारिक परिमार्जन करती हैं।
लेखक व व्यंग्यकार डॉ राजेश कुमार ने अपनी बात रखते हुए कहा कि अनिल जोशी ऐसे कवि हैं, जिनकी कविताएँ सहज रूप से प्रवाहित होती हैं. वे ऐसे शब्द-शिल्पी हैं, जिन्हें गहन को आकार देने की क्षमता प्राप्त है। उनकी कविताएँ सूक्ष्म भावनाओं, जटिल विचारों और सार्वभौमिक विषयों के तंतुओं से बुनी टेपेस्ट्री हैं, जिनमें से प्रत्येक को सबसे जटिल विषयों में भी जीवन फूंकने के लिए सावधानीपूर्वक चुना गया है। उनके भावों में सहज लय है, आंतरिक लय जो दिल की धड़कन की तरह धड़कती है, स्थिर और सच्ची। उनके शब्द अलंकृत नहीं हैं, अनावश्यक अलंकरण के भार से मुक्त हैं, फिर भी वे संयमित लालित्य के साथ दमकते हैं, उनके भीतर सच्ची काव्यात्मक कलात्मकता का सार है। कल्पना की सीमाओं पर विचार करने वाले मस्तिष्क और बिना किसी सीमा को जानने वाली रचनात्मकता के साथ, जोशी काव्यात्मक चमत्कारों को जन्म देते हैं, जो अंतिम पंक्ति पढ़े जाने के बाद भी लंबे समय तक बने रहते हैं। प्रत्येक कविता दुनिया को आश्चर्य के लेंस के माध्यम से देखने और उस दृष्टि को ऐसी भाषा में प्रस्तुत करने की उनकी क्षमता का प्रमाण है, जो आत्मा के साथ गहराई से जुड़ती है। उनकी कविताएँ सिर्फ़ पढ़ी नहीं जातीं; उन्हें महसूस किया जाता है, अपने साथ ले जाया जाता है। उनमें दिल के सबसे शांत कोनों को झकझोरने, सुप्त भावनाओं को जगाने और पाठकों को भावुक और रूपांतरित करने की शक्ति होती है। अनिल जोशी के हाथों में कविता शब्दों से कहीं बढ़कर हो जाती है – यह एक अनुभव, एक यात्रा, एक रहस्योद्घाटन बन जाती है।
रूमानिया व अरेमेनिया में शिक्षिका रह चुकी डॉ अनिता वर्मा ने कहा कि अनिल जी की कविताओं की भाषा सहज, सरल व पाठकों से आत्मसात् करती हैं। विदेश में अपने शिक्षण के दौरान भारतीय दूतावास में मुझे उनकी पुस्तक मिली तो हमने उनकी कविताओं पर कक्षाओं में चर्चा की। माँ के हाथ का खाना का पाठ भी हुआ और सबको बहुत पसंद भी आई। कविताओं का कैनवास बहुत विस्तृत है और सरल होते हुए भी बहुत बड़े विषय उठाती हैं। पाठकों से सीधे संवाद करती हैं। जीवन के यथार्थ का खुरदरापन और स्नेह, आदर , सम्मान सभी रंग इन कविताओं में समाहित हैं।
प्रसिद्ध विद्वान डॉ जवाहर कर्नावट ने उनकी कविताओं के जनता तक पहुँचने की शक्ति की बात की व विशेष रूप से उनकी कविता ‘ भटका हुआ भविष्य ‘ का उल्लेख किया ।
धन्यवाद ज्ञापन करते हुए हिंद बुक सेंटर के श्री अनिल वर्मा ने सभी अतिथियों का आभार किया ।इस अवसर पर उनके पिता श्री अमरनाथ जी के साहित्यिक जगत में योगदान का स्मरण किया ।
कार्यक्रम का सरस – सफल संचालन श्रीमती सुनीता पाहूजा ने किया और संग्रह के महत्वपूर्ण तत्वों का बीच बीच में उल्लेख किया ।
इस अवसर पर प्रसिद्ध लेखक राजेन्द्र दानी , श्री इन्द्रजीत , अमेरीका , श्री रितेश ब्रिटेन , श्री अतुल प्रभाकर , श्री मनोज मोक्षेन्द्र आदि विद्वान उपस्थित थे । कार्यक्रम की सुंदर और प्रासांगिक फोटो सरोज शर्मा जी के सौजन्य से उपलब्ध हुई ।
डॉ मनीष ने कार्यक्रम का संयोजन किया । डॉ अर्पणा ने सहयोग दिया ।