विद्यार्थियों की ‘मुछों वाली माँ’ गिजुभाई बधे के शैक्षणिक चिंतन द्वारा आत्मनिर्भरता के नवाचार प्रयोग

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समीर कौशिक

गिजुभाई बधे (1885-1938) भारतीय शिक्षा के एक महान सुधारक और शैक्षिक विचारक थे। वे बच्चों की शिक्षा और उनके मानसिक विकास को समझने में अग्रणी विद्वान थे । गिजुभाई का मानना था कि शिक्षा का उद्देश्य केवल ज्ञान देना नहीं, बल्कि बच्चों की प्राकृतिक क्षमताओं का विकास करना है, ताकि वे जीवन में खुश और सफल बन सकें। उनका शिक्षा के प्रति दृष्टिकोण आज भी शिक्षकों और शिक्षा नीतियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

गिजुभाई का जन्म 1885 में गुजरात राज्य के एक छोटे से गांव में हुआ था। उनका पूरा नाम गिजुभाई बधे था। गिजुभाई ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने गांव में प्राप्त की और फिर उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड गए। वहाँ उन्होंने वेस्ले कॉलेज और बाद में सेंट्रल स्कूल ऑफ एजुकेशन से शिक्षा ली। शिक्षा में गिजुभाई की रुचि ने उन्हें भारतीय शिक्षा प्रणाली में सुधार की दिशा में काम करने के लिए प्रेरित किया।

गिजुभाई ने भारतीय शिक्षा व्यवस्था को एक नई दिशा देने हेतु नूतन प्रयास किये । उनका मानना था कि शिक्षा केवल पुस्तक ज्ञान तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि बच्चों की मानसिक और भावनात्मक विकास की दिशा में भी काम किया जाना चाहिए। उन्होंने कई ऐसे महत्वपूर्ण पक्षों पर ध्यान केंद्रित किया, जो उस समय के पारंपरिक शिक्षा ढांचे में नजरअंदाज किए जाते थे।

बच्चों की स्वाभाविक प्रवृत्तियों को समझने हेतु गिजुभाई का कहना था कि बच्चों के विकास में उनकी स्वाभाविक और मानसिक स्थिति महत्वपूर्ण होती है। इसलिए बच्चों के लिए एक अनुकूल वातावरण तैयार किया जाना चाहिए, जहाँ वे अपनी रुचियों और क्षमताओं को पहचान सकें। बच्चों से अत्यधिक वात्सल्यता एवं ममत्व के चलते उन्हें मुछों वाली माँ के नाम से भी जाना जाता है ।

शिक्षा में रचनात्मकता और आनंद ही उनका उद्देश्य रहा है, गिजुभाई ने शिक्षा को केवल बोझ नहीं, बल्कि एक आनंदमयी अनुभव बनाने पर जोर दिया। उनका मानना था कि बच्चों को खेल, कला, संगीत और रचनात्मक कार्यों के माध्यम से शिक्षा दी जानी चाहिए।

गाँधी जी के साथ शिक्षा के सुधार की दिशा में कार्य किया गिजुभाई का गहरा संबंध महात्मा गांधी से था। उन्होंने गांधीजी के शिक्षा के सिद्धांतों को अपना आधार बनाया, जिसमें ‘नैतिक शिक्षा’, ‘सार्वजनिक कार्यों में भागीदारी’ और ‘स्वदेशी शिक्षा’ की बात की जाती थी।

गिजुभाई द्वारा स्थापित “नवजीवन विद्यालय” की स्थापना उन्होंने ने अहमदाबाद में की । यहाँ पर बच्चों को केवल किताबों से नहीं, बल्कि जीवन के वास्तविक अनुभवों प्रयोगों एवं नवाचारों से शिक्षा दी जाती थी। यह विद्यालय भारतीय शिक्षा प्रणाली में एक क्रांतिकारी कदम था।

इस हेतु उन्होंने अपने शैक्षिक जीवन अनुभव नवाचारों को पुस्तकें और लेख के रूप में संग्रहित भी किया, जो शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण माने जाते हैं जिनमे कुछ की चर्चा तत्व रूप में हम करेंगे ।

अपने लेख एवं पुस्तकों के माध्यम से गिजुभाई ने बच्चों के साथ संवाद करने के विभिन्न तरीकों पर प्रकाश डाला और उन्हें समझने की दिशा में मार्गदर्शन किया। साथ ही मानसिक और नैतिक विकास के विषय मे बात की और उनकी शिक्षा में सुधार के तरीकों और बच्चों के साथ सही व्यवहार पर जोर दिया है उनकी मुख्य कृति ‘दिवास्वप्न’, “प्राथमिक विद्यालय की शिक्षा पद्धतियां” , “धर्मात्माओं नाँ चरित्र चित्रण”, आदि शिक्षण क्षेत्र में उच्चतम स्थान पर ग्रँथ स्वरूप सम्मानित हैं ।

उन्होंने बच्चों की शिक्षा को जीवन के उद्देश्य से जोड़ा, और शिक्षा को केवल अकादमिक ज्ञान तक सीमित रखने की बजाय इसे एक समग्र अनुभव बनाने का प्रयास किया। उनके विचार और कार्य आज भी भारतीय शिक्षा के सुधार में मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।

गिजुभाई की शिक्षा की परिभाषा ने न केवल भारत में, बल्कि अखिल विश्व में शिक्षा के प्रति एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। वे हमेशा यह मानते थे कि शिक्षा का उद्देश्य केवल बच्चों को पढ़ाना नहीं, बल्कि उन्हें जीवन जीने की कला सिखाना है। गिजुभाई बधे का जीवन और उनका शैक्षिक कार्य भारतीय शिक्षा के इतिहास में मील का पत्थर है। उनके दृष्टिकोण ने बच्चों के लिए एक ऐसे शैक्षिक वातावरण की स्थापना की, जो उनकी रचनात्मकता, मानसिकता और भावनाओं का सम्मान करता था। उनकी शिक्षाएँ और विचार आज भी बच्चों के विकास और शिक्षा के सुधार की दिशा में महत्वपूर्ण मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।

“नवजीवन विद्यालय” की स्थापना और गिजुभाई का शैक्षिक दृष्टिकोण भारतीय शिक्षा प्रणाली में एक क्रांतिकारी बदलाव का संकेत था। जिसने भारतीय शिक्षा को एक नई दिशा दी और बच्चों को अधिक सृजनात्मकता और समग्र शिक्षा की ओर अग्रसर किया।

गिजुभाई के जीवन की मुख्य शैक्षिक घटना थी उनके द्वारा ‘नवजीवन विद्यालय’ की स्थापना 1920 में अहमदाबाद में की और उस विद्यालय में उन्होंने जो शिक्षा के नये दृष्टिकोण को लागू किया , यह घटना गिजुभाई के शैक्षिक दृष्टिकोण का सबसे बड़ा उदाहरण है और उनकी जीवन यात्रा में एक महत्वपूर्ण साबित हुई।

नवजीवन विद्यालय की स्थापना का उद्देश्य पारंपरिक शिक्षा प्रणाली से हटकर बच्चों को एक नया और जीवन से जुड़ा हुआ शिक्षा अनुभव देना था। यहाँ पर बच्चों को केवल पाठ्यक्रम से नहीं, बल्कि उनके जीवन के अनुभवों, कला, खेल, संगीत और रचनात्मकता के माध्यम से शिक्षा दी जाती थी।

इस विद्यालय में गिजुभाई ने बच्चों के मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक विकास को एकीकृत रूप से देखा। उनका मानना था कि शिक्षा केवल जानकारी तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि यह बच्चों की स्वाभाविक क्षमताओं को भी प्रोत्साहित करनी चाहिए।

शिक्षा के प्रति गिजुभाई के अपने दृष्टिकोण से शिक्षा में बच्चों की स्वतंत्रता और उनकी रुचियों का सम्मान करते हुए, उन्हें आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा दी। “नवजीवन विद्यालय” ने यह सिद्ध किया कि अगर बच्चों को एक अनुकूल और उत्साहवर्धक वातावरण मिलता है, तो वे अपनी क्षमताओं को पूरी तरह से पहचान सकते हैं और अपने ज्ञान को जीवन में लागू कर सकते हैं।

इस विद्यालय में गिजुभाई का योगदान यह था कि उन्होंने बच्चों को एक आत्ममूल्य और आत्मनिर्भरता का अनुभव कराया, जो भारतीय शिक्षा के पारंपरिक दृष्टिकोण से पूरी तरह भिन्न था।

गिजुभाई बालकेंद्रीक शिक्षा के प्रणेता थे। उन्होंने शिक्षा में नवाचारों को लागू करने के साथ ही बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए आत्मनिर्भरता पर जोर दिया। गिजुभाई वैसे तो नवाचारों के समुन्द्र हैं परन्तु उनके आत्मनिर्भरता के कुछ प्रमुख नवाचार प्रयोग हम सांकेतिक रूप से समझने का प्रयास करेंगे ।
गिजुभाई ने बच्चों को आत्मनिर्भर बनने के लिए स्वतंत्र कार्यों की ओर प्रोत्साहित किया। उन्होंने विद्यार्थियों को अपने कार्यों और समस्याओं का समाधान स्वयं करने के लिए प्रेरित किया, जिससे उनके आत्मविश्वास और निर्णय लेने की क्षमता में वृद्धि हो।

उन्होंने बच्चों को प्राकृतिक साधनों और संसाधनों का उपयोग करके शिक्षा में नवाचार करने के लिए प्रेरित किया। उदाहरण स्वरूप, उन्होंने विद्यालयों में कागज, लकड़ी, मिट्टी, और अन्य साधारण सामग्री से बच्चों के लिए गतिविधियाँ विकसित की, जो उनके रचनात्मक कौशल को बढ़ावा देती थीं। आत्मनिर्भरता के लिए गिजुभाई ने कला और शिल्प कार्यों को शिक्षा का हिस्सा बनाया, ताकि बच्चें अपने हाथों से कुछ निर्माण कर सकें और आत्मनिर्भरता का अनुभव कर सकें। यह बच्चों को आत्मविश्वास और सृजनात्मकता के साथ-साथ जीवन में उपयोगी कौशल भी सिखाता था। भाषा शिक्षा से नवाचार हेतु गिजुभाई ने बच्चों को अपनी भाषा में संवाद करने का अवसर दिया। उन्होंने बच्चों को अपनी बात को स्पष्ट और आत्मविश्वास से व्यक्त करने की प्रक्रिया सिखाई, जो विद्यार्थियों में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने वाला है । समाज में योगदान एवं सामाजिक सहभागिता समरसता हेतु गिजुभाई का मानना था कि शिक्षा का उद्देश्य केवल व्यक्तिगत विकास नहीं, बल्कि समाज के प्रति उत्तरदायित्व को भी समझाना है। इसलिए, उन्होंने बच्चों को समाज के प्रति जागरूक किया और यह सिखाया कि वे समाज में किस प्रकार योगदान दे सकते हैं।

गिजुभाई के ये कुछ मुख्य नवाचार, शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कदम थे जो बच्चों को आत्मनिर्भर बनने की दिशा में मार्गदर्शन प्रदान करते रहे हैं और आज भी वर्तमान पीढ़ी के शिक्षकों विद्यार्थियों एवं समाज के किसी भी वर्ग हेतु प्रेरणा पुंज हैं ।

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