पूरा विश्व आश्चर्यचकित है, ये कैसी श्रद्धा है

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अनीश श्रीवास्तव लाल

कैसा विश्वास है
कैसी परंपरा है,
कैसा ज्ञान है
कैसा संस्कार है
कैसी संस्कृति है

प्रयाग। माँ गंगा की गोद में बैठने को सभी आतुर हैं। माँ की शुद्ध व पवित्र आंचल में गोद में बैठकर स्नान कर पापों से मुक्ति व मोक्ष प्राप्त करने की इच्छा विश्व के समस्त व्यक्तियों को महाकुंभ की दिशा में जो विशेष योग व नक्षत्रों के कारण 144 वर्ष बाद आता है, की ओर बढ़ने को प्रेरित कर रही है और आज की भागमभाग भरी जीवनशैली के बावजूद लोग बच्चों व बुजुर्गों सहित

पूरे परिवार सहित खींचा हुआ सा बढ़ता जा रहा है। लगता है मानो कोई अदृश्य उर्जा, सभी को चाहे वा सनातनी हो या अन्य धर्म व पंथ को लोग, महाकुंभ की ओर खींच रही हो और सब कुछ शुद्ध, शांत व पवित्र कर देना चाहती हो, सबको उर्जामय कर देना चाहती हो, लोग बरबस ही जाने-अंजाने में प्रयागराज की ओर खिंचे चले जा रहे हैं।

प्रयागराज जैसे सीमित भूभाग पर भी 40-50 करोड़ लोगों का आकर स्नान करना अपने आपमें दैवीय चमत्कार से कम नहीं है लोगों का आने का प्रवाह अभी थमा नहीं है अनवरत जारी है जैसे प्रतियोगिता चल रही हो कि कि तुम्हारी ही नहीं, मेरी भी माँ वही है, तुम्हारा ही नहीं मेरा भी अधिकार है कि माँ की गोद में बैठकर कुछ समय बिताऊँ। अपने पूर्वजों को भी तृप्त कर देने की चाहत लोगों में बलवती है ऐसे कि जैसे प्रयागराज मानव कल्याण का नाभि क्षेत्र हो, तीव्र उर्जा का स्रोत हो, सभी स्त्री-पुरुष, बच्चे-बूढ़ों मे एक ही भूख कि बस इस उर्जा क्षेत्र में एक बार मैं डुबकी लगा लूँ और मेरे साथ मेरे मातृगण व पुतृगण सभी तृप्त हो जायें।

आधुनिक विश्व व विज्ञान को ही सब कुछ मानने वाले इससे भी परेशान व आश्चर्य से भरे है कि लोगों ने ना कोई मास्क पहना हैं, ना ही कोई सावधानियाँ हैं, बिना हाइजीन व सैनिटाइजर्स के कैसे करोड़ो लोग बिना बीमारी महामारी की चिंता किये बग़ैर एक ही नदी में सीमित जगह पर स्नान कर रहे हैं। ना ही जाति-पांत का, ना ही ग़रीबी-अमीरी का, ना ही ऊंच-नींच का भेदभाव है ना शिक्षित-अशिक्षित का ना ही देशी-विदेशी का ना ही गोरे-काले का अंतर, गौर से ध्यान से मनन व मंथन करें तो पता चलेगा कि यही वास्तविक भारत है, यही भारतवर्ष है, यही भारत की विशिष्टता व पहचान है, यही भारत की परंपरा व संस्कृति है, जहाँ ना कोई छोटा बड़ा है ना ही सवर्ण व शूद्र है ना ही ज्ञानी या अज्ञानी है बल्कि सभी धर्मों व जातियों के लोग बिना भेदभाव के एक ही मां की संतान हैं और एक ही ध्यान व आस्था से बँधे हुए भाई बंधु हैं।

श्रद्धा आस्था के इस सैलाब/सुनामी व नक्षत्रों के योग ने जैसे विज्ञान व इससे जुड़े पहलुओं को जैसे बहा दिया हो और पूरा विश्व निरुत्तर हो गया हो जैसे अर्जुन ने कृष्ण जी को भगवान योगेश्वर के रूप को देख लिया हो जिसके मुख में पूरा ब्रह्मांड व लाखों करोड़ों मंदाकिनियों को देख लिया हो।
सभी भक्तिभाव से भरे हुए हैं, उन्हें ना ही किसी ज्ञान से मतलब ना ही किसी विज्ञान व प्रौद्योगिकी से मतलब है।

हम सबको पुनः अपने अंदर झांकना चाहिए यही सही समय है जब भारत भूमि में बवंडर रूप में मौजूद दैवीय उर्जा का अत्यधिक उपयोग कर लिया जाये और हर परंपरा, संस्कार व संस्कृति पर अनुचित प्रश्नचिह्न लगाये बिना उन्हें आधुनिक विश्व के अनुकूल आवश्यकतानुसार परिष्कृत व परिमार्जित करते हुए आत्मसात् करें और अखंड भारतवर्ष के भविष्य निर्माण के लिए परिवार जैसी संस्था के माध्यम से अखिल विश्व के कल्याण के लिए मूल्यों व चरित्रनिर्माण पर विशेष ध्यान दें।

आज आस्था ही विज्ञान है, आस्था ही पहचान है,
आस्था ही हमें उचित मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है और
आस्था ही हमको आपको संस्कारित व संवर्धित करता है।

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