सिर्फ इमारतें ही नहीं, क्रांति, साहित्य और स्वतंत्रता संग्राम का गढ़ रहा है आगरा

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लखनऊ: आगरा को अक्सर ताजमहल की मोहब्बत की निशानी और मुगलों की विरासत के रूप में देखा जाता है, लेकिन यह शहर केवल संगमरमर की खूबसूरती तक सीमित नहीं है। समूचा ब्रज क्षेत्र साहित्य, पत्रकारिता और स्वतंत्रता संग्राम की प्रचंड अग्नि में भी तपा है।

हिंदी और उर्दू साहित्य के प्रख्यात रचनाकारों ने इस शहर को अपनी कलम से नवाजा और क्रांति की ज्वाला को प्रज्वलित किया। आज़ादी की लड़ाई में यहाँ के पत्रकारों, कवियों और क्रांतिकारियों ने जो भूमिका निभाई, वह इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है।

ब्रिटिश हुकूमत के दौरान आगरा क्रांतिकारी गतिविधियों का प्रमुख केंद्र था। 1857 की पहली जंगे-आज़ादी की चिंगारी में आगरा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह शहर क्रांतिकारी विचारों का केंद्र बना, जहाँ से आज़ादी की ज्वाला फैली। नाना साहब, अज़ीमुल्ला खां और मौलवी अहमदुल्ला शाह जैसे बड़े क्रांतिकारी आगरा आए और विद्रोह की रणनीति बनाई। ठाकुर हीरा सिंह, ठाकुर गोविंद सिंह, चाँद बाबा और ठाकुर पृथ्वी सिंह ने अदम्य साहस के साथ ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ संघर्ष किया।

1857 की क्रांति में आगरा के ग्रामीण क्षेत्रों से भी व्यापक समर्थन मिला। हजारों हिंदू और मुसलमान सैनिकों और किसानों ने विद्रोह में हिस्सा लिया। उनकी गतिविधियों ने ब्रिटिश शासन को इतना हिला दिया कि उन्हें आगरा में मार्शल लॉ लागू करना पड़ा। आगरा कॉलेज और गोकुलपुरा जैसे स्थान असंतोष और क्रांतिकारी गतिविधियों के केंद्र बन गए।

रेलवे के आगमन के बाद आगरा पूर्वी भारत से आने वाले क्रांतिकारियों के लिए एक महत्वपूर्ण पारगमन स्थल बन गया। 1862 में टूंडला रेलवे स्टेशन बनने के बाद यहाँ क्रांतिकारी गतिविधियाँ और भी तेज़ हो गईं।

बीसवीं सदी के स्वतंत्रता संग्राम में भी आगरा अग्रणी रहा। 1920 और 1929 में महात्मा गांधी के आगरा दौरे ने युवाओं में जागरूकता फैलाई। बाल गंगाधर तिलक और लाला लाजपत राय जैसे नेताओं ने भी इस शहर को अपने आंदोलनों का केंद्र बनाया।

भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, राजगुरु और सुखदेव ने भी आगरा में शरण ली थी। नूरी दरवाजा क्षेत्र में क्रांतिकारी बम बनाए जाते थे। हार्डी बम केस, शीतला गली विस्फोट, मोती कटरा और बारह भाई की गली में होने वाले धमाकों ने ब्रिटिश प्रशासन को हिला कर रख दिया था। आगरा में 110 से अधिक हिंसक घटनाएँ दर्ज हुईं, जिनमें पोस्टल रॉबरी केस, रेलवे स्टेशन पर बम विस्फोट और ब्रिटिश अधिकारियों की हत्याएँ शामिल थीं।

आगरा के पंडित श्री राम शर्मा, महेंद्र जैन, देवेंद्र शर्मा, गोवर्धन दास, गणपति केला और हरिशंकर शर्मा जैसे पत्रकारों ने क्रांति की अलख जगाई। प्रसिद्ध क्रांतिकारी रामचंद्र बिस्मिल ने भी अपने लेखन से युवाओं में जोश भरा। उनकी कालजयी पंक्तियाँ—
“शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले,
वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा।”
आज भी लोगों के दिलों में गूँजती हैं।

आगरा ने हिंदी और उर्दू पत्रकारिता में भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। 1925 में श्रीकृष्ण दत्त पालीवाल ने ‘सैनिक’ अख़बार शुरू किया, जिसने ब्रिटिश हुकूमत की नाक में दम कर दिया। बाद में यह अख़बार दैनिक के रूप में प्रकाशित हुआ और स्वतंत्रता संग्राम में प्रमुख भूमिका निभाई। अज्ञेय समेत कई प्रतिष्ठित पत्रकार इस दैनिक से जुड़े रहे।

‘सैनिक’ की सफलता ने अन्य अख़बारों को प्रेरित किया। ‘ताजा तार’, ‘प्रकाश’, ‘स्वदेश बांधव’, ‘प्रजा हितैषी’ और ‘उजाला’ जैसे समाचार पत्र स्वतंत्रता संग्राम के समर्थक बने। उर्दू अख़बार ‘अख़बार-ए-आगरा’ और अंग्रेज़ी सिखाने के उद्देश्य से निकाला गया ‘अंग्रेजी शिक्षक’ भी इसी दौर में प्रकाशित हुआ।

1942 में डोरीलाल अग्रवाल ‘उजाला’ से जुड़े और 1948 में उन्होंने ‘अमर उजाला’ की नींव रखी। आगरा में प्रकाशित इन समाचार पत्रों ने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध जनमत तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

आगरा के स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं की भी सक्रिय भागीदारी रही। सरोज गौरिहार, पार्वती देवी, भगवती देवी पालीवाल, सुख देवी, दमयंती देवी चतुर्वेदी, सत्यवती, अंगूरी देवी जैन, शिवा दीक्षित, चंद्रकांता मिश्रा और हीरा बहन जैसी महिलाओं ने आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। आज़ाद हिंद फौज (आईएनए) की हेमराज बेटई भी इस आंदोलन की प्रमुख नायिकाओं में थीं। मोतीलाल नेहरू के नेतृत्व में विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार आंदोलन ने आगरा में जबरदस्त सफलता हासिल की।

आगरा ने स्वतंत्रता आंदोलन में कई महान सेनानी दिए, जिनके नाम इतिहास के पन्नों में धुंधले पड़ गए हैं। ठाकुर राम सिंह, जिन्हें ‘काला पानी के हीरो’ के रूप में जाना जाता है, और प्रोफेसर सिद्धेश्वर नाथ श्रीवास्तव, दोनों ने आज़ादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।I
अंग्रेजों ने आगरा के कई क्रांतिकारियों को जेल में डाला, सैकड़ों को फाँसी दी और हजारों को यातनाएँ दीं। आगरा के लगभग 400 से अधिक स्वतंत्रता सेनानी विभिन्न कालखंडों में गिरफ्तार किए गए।

आगरा का स्वतंत्रता संग्राम में योगदान महत्वपूर्ण होते हुए भी पहचान का मोहताज है।

आगरा विश्वविद्यालय और अन्य शोध संस्थानों को चाहिए कि वे इस विषय पर गहन शोध करें और आगरा के वीर सपूतों और पत्रकारों के योगदान को उजागर करें। आज़ादी की लड़ाई में आगरा की भूमिका को इतिहास के स्वर्णिम पन्नों में फिर से स्थान मिलना चाहिए, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ इस गौरवशाली इतिहास से प्रेरणा ले सकें।

आगरा सिर्फ ताजमहल की नगरी नहीं, यह क्रांति और संघर्ष की भूमि भी है। यह वह धरती है, जहाँ कलम भी तलवार बनी और विचार भी आंदोलन।

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Brij Khandelwal

Brij Khandelwal

Brij Khandelwal of Agra is a well known journalist and environmentalist. Khandelwal became a journalist after his course from the Indian Institute of Mass Communication in New Delhi in 1972. He has worked for various newspapers and agencies including the Times of India. He has also worked with UNI, NPA, Gemini News London, India Abroad, Everyman's Weekly (Indian Express), and India Today. Khandelwal edited Jan Saptahik of Lohia Trust, reporter of George Fernandes's Pratipaksh, correspondent in Agra for Swatantra Bharat, Pioneer, Hindustan Times, and Dainik Bhaskar until 2004). He wrote mostly on developmental subjects and environment and edited Samiksha Bharti, and Newspress Weekly. He has worked in many parts of India.

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