प्रो. अरुण कुमार भगत के सम्पादित आपातकाल विषय पर तीन पुस्तकों का हुआ लोकार्पण
महात्मा गांधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय, मोतिहारी के मीडिया अध्ययन विभाग के डीन एवं विभागाध्यक्ष प्रो. अरुण कुमार भगत द्वारा संपादित आपातकाल विषयक तीन पुस्तकों का साहित्य अकादेमी में लोकार्पण किया गया. ये पुस्तकें हैं, “आपातकाल के काव्यकार”, “आपातकाल के संस्मरण” और “डॉ. देवेन्द्र दीपक का आपातकालीन साहित्य : दृष्टि और मूल्यांकन”. आर्यावर्त साहित्य-संस्कृति-संस्थान, नई दिल्ली द्वारा आयोजित भव्य कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय संपर्क प्रमुख प्रो. अनिरुद्ध देशपांडे, गुजरात के पूर्व राज्यपाल प्रो. ओमप्रकाश कोहली, मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी, भोपाल के पूर्व निदेशक डॉ. देवेन्द्र दीपक, महात्मा गांधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय, मोतिहारी के कुलपति प्रो. संजीव कुमार शर्मा ने इन पुस्तकों का लोकार्पण किया.
कार्यक्रम का शुभारम्भ दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ. इसके बाद अतिथियों का पुस्तक, शाल और स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया. दर्शन पाण्डेय ने सभी अतिथियों का स्वागत भाषण दिया और मंच पर उपस्थित सभी गणमान्य अतिथियों का परिचय कराया. इसके बाद सभी मंचस्थ अतिथियों ने तीनों पुस्तकों का लोकार्पण किया. मंच संचालन डॉ. अशोक कुमार ज्योति ने किया.
इस मौके पर प्रो. अरुण कुमार भगत ने कहा कि अपनों के बीच आपातकाल पर तीन सम्पादित पुस्तकों का विमोचन हुआ है. इस विषय पर करीब चौबीस वर्षों के कार्य कर रहा हूँ. आपातकाल को भारतीय लोकतंत्र का काले अध्याय के रूप में देखा जा रहा है. उस दौर में एक लाख चौबीस हजार लोग गिरफ्तार हुए थे. केवल उनीस महीने के उस कालखंड में भारतीय साहित्यकारों ने अपनी रचना से साहित्य को समृद्ध किया. वामपंथ और कांग्रेस के गठबंधन ने आपातकाल विषय पर विश्वविद्यालयों में शोध नहीं होने दिया और इस कारण अकादमिक कार्य नहीं हुए. अत्याचार पर सत्याचार के विजय के प्रतीक के रूप में हर वर्ष दशहरा मनाते हैं, उसी तरह आपातकाल को हर वर्ष याद किया जाना आवश्यक है.
मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी के पूर्व निदेशक और वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. देवेन्द्र दीपक ने कहा कि आज के युग में साहित्य प्रेमी हैं और राष्ट्र के बारे में विचार करते हैं. आपातकाल पर बहुत लिखा गया लेकिन बहुत कुछ सामने नहीं आया. अभी तक संस्थान उनके हाथ में था जो आपातकाल के समर्थक थे. उन्होंने आपातकाल के संस्मरण के अलावा अपनी काव्य और नाटक रचनात्मकता को लेकर अपनी बात रखी और कहा कि प्रो. अरुण कुमार भगत का शोध कार्य काफी व्यापक है और वे लगातार कार्य कर रहे हैं.
गुजरात के पूर्व राज्यपाल एवं वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. ओमप्रकाश कोहली ने आपातकाल के अनुभव को साझा किया. आज अधिकार लोग ऐसे हैं जिन्हें बस पता है कि आपातकाल लगा था, इस कारण उन्हें आपातकाल के बारे में पढना चाहिए. आपातकाल के दौर में उन्नीस महीने का सन्नाटा था और सत्ता के लोगों ने शायद ही सोचा था कि इस सन्नाटे का विरोध होगा. आपातकाल का विरोध लिखने के द्वारा, सड़क पर उतर कर, सत्यग्रह के द्वारा और भूमिगत होकर हुआ. जिनका उस समय का अनुभव है, उन्हें आज की पीढ़ियों से साझा करना चाहिए. प्रो. अरूण कुमार भगत का कार्य सराहनीय है.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय संपर्क प्रमुख प्रो. अनिरुद्ध देशपांडे ने कहा कि सत्ता के प्रेमी ने आपातकाल का समर्थन किया. अभी तक किसी भी कोर्स में आपातकाल विषय नहीं लाया गया है. छात्रों को आपातकाल के बारे में पढाना चाहिये. उन्होंने कहा कि प्रो. अरुंक कुमार भगत को आपातकाल की राजनीति को भी पुस्तकों को सामने लाना चाहिए. मेरे अनुसार आपातकाल की लड़ाई भारतीय इतिहास के स्वतंत्रता की दूसरी लड़ाई थी, जो स्वतंत्रता के बाद लड़ी गई. आपातकाल ने भारतीय समाज को जगाने का कार्य किया. सत्तापिपासु लोगों ने आपातकाल का समर्थन किया और लोगों को सताया गया.
महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, मोतिहारी के कुलपति संजीव कुमार शर्मा ने कहा कि हमारे लिए गौरव की बात है कि हमारे विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर अरुण कुमार भगत की पुस्तकों का लोकार्पण हुआ है. आपातकाल ने हमें दृष्टि दी कि भारतीय समाज अपने लोकतंत्र से कितना प्यार और विश्वास किया है. विश्व में हमारे लोकतंत्र में कैसी छवि बन रही है, इस पर और इसे आपत्काल के सन्दर्भ में देखना आवश्यक है.
इस अवसर पर साहित्यकार डॉ. रामशरण गौड़, डॉ. वेद व्यथित, डॉ. मालती, विनोद बब्बर, हर्षवर्धन, डॉ. सारिका कालरा, डॉ. अशोक कुमार ज्योति, आशीष कंधवे, संजीव सिन्हा, गुंजन अग्रवाल, डॉ. लहरी राम मीना को विभिन्न सम्मानों से सम्मानित भी किया गया. कार्यक्रम का धन्यवाद ज्ञापन दिया.