संजय स्वामी
दीपावली आई खुशियों की सौगात बांट अगले वर्ष 14 नवंबर को आने के लिए कह कर चली गई परंतु अपने पीछे समाचार-वाचकों, सूत्रधारों तथा विषय- विशेषज्ञों को चरचियाने (चर्चा) के लिए छोड़ गई। दीपावली व्यापार, धन-धान्य समृद्धि, सौभाग्य के साथ-साथ स्वच्छता का त्यौहार भी है।पूरे वर्ष भर का कचरा हम घर से बाहर निकालते हैं, घर को रंगाई पुताई कर स्वच्छ बनाते हैं, घी- तेल के दीए जला दिवाली मनाते हैं। बाजारों में दीपावली के अवसर पर विशेष सजावट व रौनक होती है। परंतु क्या हम विचार करते हैं कि कितना नया कचरा हमने उत्सर्जित किया? वर्ष भर जो हमने घर दुकान में कचरा इकट्ठा किया उससे कितने टन कचरा हमारे शहर का बढा?उस कचरे के निस्तारण का क्या हम भी कभी विचार करते हैं?
क्या हम इस वर्ष यह संकल्प ले सकते हैं कि अगले वर्ष दीपावली तक हम उस कचरे को जमा करने में कुछ न्यूनता लाएंगे? शायद सच्ची दिवाली यही होगी। लोकतंत्र में सभी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है परंतु प्रदूषण प्रदूषण चिल्लाने से प्रदूषण कम नहीं होने वाला हमारी आदतों में सुधार से ही इस प्रकृति तथा पृथ्वी का भला होने वाला है। पृथ्वी के अस्तित्व से ही हमारे सहित सभी जीवों का अस्तित्व है।दीपावली पर सभी बाजारों में खूब खरीददारी हुई। छोटी-बड़ी कंपनियों ने अपने अपने ढंग से प्रचार किए वस्तुओं के क्रय- विक्रय में, पैकिंग में कितना पॉलिथीन, कागज़, गत्ते,सिल्वर फॉयल,सिंगल यूज प्लास्टिक का प्रयोग हुआ इसका भी विचार किया जाना चाहिए।नई कार बाइक की बिक्री के साथ-साथ सायकल की बिक्री कितनी हुई इसके भी आंकड़े आने चाहिए।पर्यावरण के संरक्षण के लिए सभी की जिम्मेदारी तथा भागीदारी की आवश्यकता है।