वर्ष 2009 शाहबाद के लोगोें के लिए थोड़ा खास रहा क्योंकि इसी कस्बे को महिला हाॅकी के मानचित्र पर ऊंचाई तक पहुंचाने वाले कोच बलदेव सिंह को इसी साल गुरू द्रोणाचाय अवार्ड मिला और उनके साथ ही उनकी शिष्या और उस वक्त भारतीय हाॅकी टीम की कप्तान सुरिन्दर कौर को अर्जून अवार्ड से सम्मानित किया गया।
वास्तव में राष्ट्रीय महिला हाॅकी टीम की बात की जाए और शाहबाद (कुरुक्षेत्र) का नाम ना आए, यह कैसे हो सकता है? हरियाणा के इस अंजाने से कस्बे से अब तक दो दर्जन से अधिक अंतरराष्ट्रीय महीला खिलाड़ी तैयार हुईं हैं। उस दिन को यह कस्बा अभी भी नहीं भूला जब हांगकांग में आयोजित एशियन गेम्स में महिला हाॅकी टीम में शामिल ग्याहरह में से छह खिलाड़ी (सुरिन्दर कौर, राजविन्दर कौर, जाॅयदीप कौर, सुमन बाला, ऋतु बाला और जसजीत कौर) इसी कस्बे से थीं। शाहबाद के लोगों का मानना है कि यदि टीम में चयन का आधार सिर्फ योग्यता हो तो पूरी टीम शाहबाद की लड़कियों से ही तैयार हो जाएगी।
30 हजार की आबादी वाले इस छोटे से गांव से निकले कई खिलाड़ियों के माता-पिता को यह तक पता नहीं था कि यह हाॅकी किस बला का नाम है। गोल मशीन के नाम से प्रसिद्ध शाहबाद की सुरिन्दर कौर के पिता ने एक पत्रकार सम्मेलन में कहा – ‘जब मेरी बेटी ने हाॅकी खेलना शुरू किया, उस वक्त मुझे पता ही नहीं था कि हाॅकी वास्तव में होता क्या है?’
शाहबाद की हाॅकी टीम को जिस एक व्यक्ति ने अपनी लगन, परिश्रम और निष्ठा से संवारा है, उसका नाम बलदेव सिंह है। जब वे 1982 मंे वे कुरुक्षेत्र आए थे, उस वक्त कोई यहां हाॅकी को जानने वाला नहीं था। उन्होंने बच्चों की तलाश शुरू की। बकौल बलदेव सिंह- ‘शुरूआत में हाॅकी के लिए कोई अपने बच्चों को देने के लिए तैयार नहीं था।’
उस दौर में उन्होंने बच्चों की एक टीम बनाई नाम रखा गया नामधारी। अभी टीम ने आकार भी नहीं लिया था, 1986 जून में उनका तबादला सिरसा (जीवनगर) कर दिया गया। सन् 1992 में वे फिर एक बार शाहबाद लौटें। इस बार उन्होंने टीम के लिए 20 लड़कियांे का चयन किया। जिनकी उम्र 10 साल से कम थी। अभ्यास कठीन था। सुबह 5 से 8ः30 तक का अभ्यास। उसके बाद लड़कियां स्कूल चली जाती थीं। स्कूल से लौटकर 2ः30 से अंधेरा होने तक अभ्यास करना होता था। कठीन परिश्रम की वजह से बहुत सी लड़कियां बीच में ही अभ्यास का साथ छोड़ गईं। शाहबाद की हाॅकी टीम में शामिल लगभग सभी लड़कियां गरीब पृष्ठभूमि की रहीं हैं। इसलिए बलदेव सिंह ने हमेशा बच्चों के खाने पीने का ख्याल रखा है; क्योंकि श्री सिंह का अपना मानना है कि अच्छा खिलाड़ी बनने के लिए, अच्छी सेहत की जरुरत है और अच्छी सेहत के लिए अच्छी खुराक का होना बेहद जरुरी है।
भारतीय महीला टीम को मिली लगातार जीत ने और खिलाड़ियों को मिलने वाले स्काॅलर शिप से कई खिलाड़ियों की गरीबी दूर हुई है। इसका एक अच्छा उदाहरण सुमन बाला है। सुमन बाला के पिता एक मामुली किसान थे। आज सुमन के पास एक अच्छा मकान है। उसका भाई विदेश में पढ़ाई कर रहा है। वैसे सभी के अनुभव अच्छे हांे ऐसा भी नहीं है, शाहबाद टीम की ही खिलाड़ी रानी रामपाल भी हैं। जिनका स्थान दुनिया भर के श्रेष्ठ ग्यारह महिला खिलाड़ियों में एक है। इतनी अच्छी खिलाड़ी होने के बाद उन्हंे रेलवे में जो नौकरी मिली है, उसे लेकर रानी के परिचितों में रोश है। शाहबाद के एक स्थानीय नागरिक ने प्रश्न पूछने के अंदाज में कहा- देश का सिर सम्मान से दुनिया भर में ऊंचा करने वाली लड़की को बारह-चैदह हजार रुपए की नौकरी दी जाए, क्या यह अन्याय नहीं है?
हाॅकी टीम से जुड़ी एक खिलाड़ी के अनुसार शाहबाद की हाॅकी टीम मंे पैरवी की बदौलत किसी को दाखिला नहीं मिलता। सभी अपनी प्रतिभा की बदौलत यहां आएं हैं। कोई खिलाड़ी यदि अपनी तिकड़म की बदौलत यहां आ भी जाए तो लंबे समय तक टीक नहीं सकती। क्योंकि यहां अभ्यास के दौरान कमर तोड़ श्रम अनिवार्य है, जो सबके बस की बात नहीं है। शाहबाद के लोग इस बात को भली प्रकार से स्वीकार करते हैं कि अंतरराष्ट्रीय महिला हाॅकी की टीम के नक्शे पर यदि आज शाहबाद का नाम केन्द्र में है तो वह बलदेवजी की वजह से है। दो साल पहले उनके प्रशंसकों को उस वक्त बेहद खुशी मिली जब उन्हें द्रोणाचार्य पुरस्कार के लिए चुना गया। इस बात की मांग लंबे समय से खेल प्रेमी करते रहे थे।
एक और खास बात जो इस टीम से जुड़ी है, इस टीम में खेलने वाली सभी लड़कियां इसी शाहबाद से ही हैं। वैसे अब राज्य के दूसरे हिस्सों से ही नहीं, बल्कि पंजाब और दिल्ली तक से अभिभावकों के फोन बलदेवजी तक आते हैं कि हमारे बच्चे को अपनी टीम में शामिल कर लीजिए।