साहित्य में यथार्थ के साथ नैतिकता का होना भी जरुरी – प्रो. कुमुद शर्मा

4dcce519-18c7-4df6-8fad-2da906dd9ecb.jpg

नयी शिक्षा नीति से और बढ़ेगा मातृभाषा के प्रति अनुराग – प्रो. कुमुद शर्मा

“हिन्दी ने स्वतंत्रता आंदोलन को दिशा प्रदान किया” – प्रो. कुमुद शर्मा

साहित्य कभी राजनैतिक पार्टियों का मेनिफेस्टो नहीं हो सकता” – प्रो. कुमुद शर्मा

संस्कार भारती के कला संकुल ने “अमर्त्य: साहित्य-कला-संवाद” के भाग-1 का आयोजन किया। इस सारस्वत आयोजन की मुख्य अतिथि साहित्य जगत की सुप्रसिद्ध व्यक्तित्व, साहित्य अकादमी की उपाध्यक्ष और हिन्दी विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय की विभागाध्यक्ष प्रो. कुमुद शर्मा रहीं। उन्होंने जलज कुमार अनुपम के साथ हुए संवाद में कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन की लड़ाई हिन्दी में लड़ी गयी है। हमारे महापुरुषों ने स्वतंत्रता आंदोलन में जो भी नारा दिया वे हिंदी में ही हैं लेकिन स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जब राजभाषा बनने की बारी आयी तो विवाद शुरू हो गया। राजभाषा हिन्दी जरूर बन गयी लेकिन आज भी स्थिति बहुत बेहतर नहीं हो सकी है। इस अमृत महोत्सव के माध्यम से हिंदी को फलक देने की कोशिश की जा रही है। वहीं नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति भारतीय भाषाओं को समझने और जानने में सहायक सिद्ध होगी। हिन्दी के विकास में हिन्दी भाषी समाज को अपने मन से हीनता बोध निकाला होगा। आप बाजार की भाषा सीखिये। अगर विदेशी भाषा सीखते हैं तो उस भाषा का सम्मान कीजिए लेकिन अपनी भाषा पर गर्व भी करना सीखिये। नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति मातृभाषाओं के प्रति अनुराग को बढ़ाने में सहायक सिद्ध होगी।

उन्होंने संवाद में यह भी कहा कि साहित्य कभी राजनैतिक पार्टियों का मेनिफेस्टो नहीं हो सकता। आज साहित्य में हर प्रकार के विषय पर लिखा जा रहा है। आज कविताओं और कहानियों में बदलते हुए गाँव का जिक्र होता है। एजेंडा के नाम पर कुछ भी नहीं परोसा जाना चाहिए। साहित्य में यथार्थ के साथ साथ नैतिकता का होना भी आवश्यक है। साहित्य को बाजार तक सीमित नहीं किया जा सकता।

इस कार्यक्रम में बोलते हुए संस्कार भारती के अखिल भारतीय संगठन मंत्री अभिजीत गोखले ने कहा कि आज इस संवाद श्रृंखला की शुरुआत की गई है। साहित्य और कला का मनुष्य और समाज के निर्माण में‌ महत्वपूर्ण भूमिका है।

संस्कार भारती के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य अशोक तिवारी ने कहा कि आज के युवाओं को साहित्य और कला के पक्ष में मार्गदर्शन के लिए ऐसे कार्यक्रमों की जरुरत है। इस कार्यक्रम के संयोजक जलज कुमार अनुपम ने कहा कि हमारा उद्देश्य इस कार्यक्रम के माध्यम से युवाओं तक जाना है और उनके अंदर अपनी सभ्यता और संस्कृति के प्रति गौरवबोध को जागृत करना है। आगे आने वाले दिनों में इस कार्यक्रम के माध्यम से साहित्य-कला और संस्कृति पर काम करने वाले दिग्गजों से संवाद स्थापित करने का प्रयास रहेगा।

 

इस कार्यक्रम का सह संयोजन और मंच संचालन शोधार्थी भूपेन्द्र कुमार भगत ने किया और धन्यवाद ज्ञापन हर्षित कुमार ने किया। इस अवसर पर दिल्ली विश्वविद्यालय, जेएनयू से अनेकों युवाओं के साथ बौद्धिक प्रबुद्धजनों की भारी भीड़ देखने को मिली।

रिपोर्ट – हर्षित तिवारी और भूपेन्द्र कुमार भगत

Share this post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

scroll to top