अमित श्रीवास्तव।
INDIA गठबंधन की कवायद के साथ ही इसके क्षेत्रीय घटक दलों की रणनीति में एक जैसे राजनीति पैतरे नजर आ रहे हैं।
पहले स्वामी प्रसाद मौर्या फिर बिहार के शिक्षा मंत्री, केरल में मुस्लिम लीग द्वारा हिंदुओं के काटने का नारा लगाना, अब तमिलनाडु में सनातन विरोधी बयान और बढ़ते हुए कर्नाटक तक पहुंच जाना,….
क्या हिंदुओं को उकसाने का प्रयास हो रहा है ताकि नफरत के बाजाए की थ्योरी स्थापित की जा सके?
क्या मुस्लिम मतदाताओं के मन में भाजपा के प्रति टूटते मिथक व बढ़ते विश्वास से घबरा गए है कुछ दल?
क्या अब क्षेत्रीय पार्टियों में होड़ लग गई है मुस्लिम वोट को बांधे रखने की।
काँग्रेस की मजबूती होती स्थिति से सबसे ज्यादा खतरा इन्हीं क्षेत्रीय दलों को ही है। क्या कॉंग्रेस के दूर छिट कर इन क्षेत्रीय दलों में गए मुस्लिम मतदाताओं को बांधे रखने का दबाव ये दल महसूस कर रहे हैं? और इस दबाव का ही परिणाम है ऐसे बयान?
कारण जो भी हो इतनी समझ तो बन रही है कि एक योजना के अंतर्गत ये सारे बारी बारी से आ रहे हैं।
यदि काँग्रेस पूर्व की भांति धर्म व इनके सहयोगी क्षेत्रीय दल जाति की राजनीति को हवा देना चाहते हैं तो इसका नुकसान कोंग्रेस को ही होगा क्योंकि भाजपा कॉंग्रेस को तुष्टिकरण करने वाला घोषित कर देगी। जातियों का वोट बैंक काँग्रेस के पास बचा नहीं है और मुस्लिम उस पार्टी के साथ जाता आया है जो भाजपा को न सिर्फ टक्कर दे अपितु कॉंग्रेस से ज्यादा तुष्टिकरण करें।