इजरायल-हमास युद्ध के बीच मध्य-पूर्व में मोदी सरकार की कूटनीतिक अग्निपरीक्षा

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भारत की मेजबानी में जी-20 की सफलता के बाद से ही अचानक भारतीय विदेश नीति की वैश्विक अग्निपरीक्षा का काल आरंभ हो गया है। जिसके तत्काल के बाद जहां मोदी सरकार ने एक ओर खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह की हत्या को लेकर कनाडा को नए भारत की कूटनीति का पाठ पढ़ा दिया। तो दूसरी ओर कतर सरकार द्वारा 8 पूर्व नौसैनिकों को मृत्युदंड देकर मध्य-पूर्व से नई चुनौती दे दी गई है। कुल मिलाकर देखा जाए तो यह कोई साधारण घटनाक्रम प्रतीत होता, अपितु भारतीय राजनीतिक परिपेक्ष्य से देखा जाए तो इसके पीछे एक सुनियोजित वैश्विक षडयंत्र प्रतीत हो रहा है। जिसमें कई वैश्विक शक्तियां एक साथ सम्मिलित हैं। 

जानें क्या है पूरा मामला 

बता दें जब पूरा विश्व रूस-यूक्रेन युद्ध तथा अब इजरायल-हमास युद्ध पर नजर बनाए रखे हुए है तभी अचानक कतर की सरकार के द्वारा विगत एक वर्ष से कैद में रखे गए 8 पूर्व नौसैनिकों को मृत्यूदंड सुना दिया गया। जिसके बारे कतर सरकार ने आज तक भारत सरकार को आधिकारिक रूप से दंड के पीछे के कारकों और उनके ठोस साक्ष्यों को उपलब्ध नहीं कराया गया। मध्यपूर्व में घटी इस घटना ने भारत सरकार के सामने एक और नई कूटनीतिक चुनौती खड़ी कर दी है। अनाधिकारिक रूप से कहा जा रहा है कि कतर सरकार ने भारत के इन 9 पूर्व नौसैनिकों को इजरायल के लिए जासूसी करने के आरोप में दंड दिया गया है। वहीं भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में कतर के द्वारा लिए गए निर्णय के पीछे 7अक्टूबर 2023 को हमास द्वारा इजरायल में किए गए नरसंहार को आतंकी कार्रवाई बताने और पहले ही दिन इजरायल को दिए गए खुले समर्थन को बताया जा रहा है। चूंकि कतर हमास को आर्थिक,राजनीतिक समर्थन करता है अतः भारत के पर दबाव बनाने के लिए कतर ने इस समय को चुना है।   भारत में मोदी सरकार के इस निर्णय का कांग्रेस सहित कई विपक्षी पार्टियां भी विरोध कर रहीं है। जब कि भारत सरकार स्पष्ट कर दिया है कि उसका फिलिस्तीन नीति में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है,किन्तु आतंकवाद के किसी भी रूप को वह बिल्कुल सहन नहीं करेगी। इसी के तहत भारत ने गाजा में मानवीय सहायता भेजने में भी कोई विलंब नहीं किया। 

कतर ने भी कर दी कनाडा वाली गलती

बता दें कतर ने भी भारत सरकार को बिना सबूत दिए उसके 8 पूर्व नौसैनिकों को अचानक मृत्युदंड सुनाकर कनाडा वाली कूटनीतिक गलती कर दी है। यद्यपि भारत सरकार के आग्रह पर कतर सरकार ने कुछ माह पूर्व इन 8 पूर्व नौसैनिकों को काउंलर एक्सेस उपलब्ध कराया था। इससे पहले कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने भी जी-20 समिट से वापस लौटते ही भारत को बिना साक्ष्य दिए खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत की एजेंसियों का हाथ होने का आरोप लगा दिया था। जिसके बाद भारत सरकार ने कठोर कूटनीतिक जबावी कार्रवाई करते हुए अपने 1 राजनयिक के निष्कासन के बदले उसके 41 राजनयिकों को तत्काल देश छोड़ देने का आदेश सुना दिया था। जस्टिन ट्रूडो ने अपने ये आरोप वहां की संसद में खड़े होकर लगा दिए थे। जिसके बाद भी अपने आरोपों के संबंध में भारत सरकार को कोई साक्ष्य आज तक उपलब्ध नहीं करा सके। 

इजरायलहमास युद्ध के पीछे चीनईरान का हाथ!

जहां तक मेरा व्यक्तिगत आंकलन है मध्यपू्र्व में अचानक इजरायल पर हुए हमास के हमले के पीछे चीन के छिपे हित तथा ईरान का हाथ है। चूंकि जी-20 में हुए भारत-मध्यपूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा बनाने के निर्णय के कारण सीधे-सीधे चीन की महत्वाकांक्षी बीआरआई परियोजना को चुनौती देती है। जिस पर पिछले 10 वर्षों से वह अरबों डॉलर पानी की तरह बहा रहा है। उसको ज्ञात है कि यदि भारत-यूरोप को जोड़ने वाले अपने इस उद्देश्य को पाने में सफल हो जाता है, तो यह चीन के आर्थिक वर्चस्व पर करारा प्रहार होगा। इसके साथ ही ईरान की इजरायल से कट्टर शत्रुता तथा चीन के साथ अमेरिका के शत्रु का शत्रु अपना मित्र वाली मित्रता है। ऐसे में दोनों के मध्यपूर्व में साझे रणनीतिक हित होने के नाते इस समूचे संकट के पीछे दोनों शक्तियों के छिपे षड़यंत्र हैं। इसलिए मध्यपूर्व के अशांत रहने से एक तरफ भारत-मध्यपूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा जितना टलेगा चीन के हित सधेंगे। तो वहीं दूसरी ओर ईरान की छवि इस्लामिक देशों का अगुवा बनने की महत्वकांक्षा पूर्ति होगी। इससे पहले पाकिस्तान का सेना प्रमुख जनरल आसिफ मुनीर भी कुछ दिन पूर्व कतर की यात्रा करके आया है। इसलिए इसके पीछे पाकिस्तान के षडयंत्र की भी बू आ रही है।

कुछ इस कारण से चुनी हमला करने रणनीति

फिलिस्तीनी आतंकी संगठन हमास द्वारा भारत में सफल जी-20 आयोजन के तत्काल बाद अकारण ही इजरायल पर एक साथ हजारों राकेट बरसाकर निर्दोष इजरायली नागरिकों का दिनदहाड़े नरसंहार कर दिया गया। तो इसके पीछे उस जी-20 समिट के दौरान भारत सरकार द्वारा लिए गए वो 2 निर्णय हैं, जो भारत के उन शत्रुराष्ट्रों के हितों पर करारा प्रहार करने वाले हैं। जिसमें प्रथम है भारत का मह्त्वाकांक्षी भारत-मध्यपूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा तथा दूसरा ग्लोबल बायोफ्यूल अलायंस बनाने की घोषणा करना। इन दो निर्णयों ने शत्रुराष्ट्रों के अंदर बेचैनी पैदा कर दी। जिसका मुख्य आधार था अमेरिका के नेतृत्व में मध्यपूर्व के राष्ट्रों के मध्य अब्राहम अकार्ड के माध्यम से स्थायी शांति स्थापित करना। जिसके माध्यम से यहूदी राष्ट्र इजरायल को वैश्विक मान्यता दिलवाने के साथ ही इस्लामिक देशों के बीच उसके विकास प्रगति को साझा करने के उद्देश्यों को प्राप्त करना। 

कतर के पर कैसे कतरेगा भारत!

ऐसी स्थिति में भारत सरकार के पास कतर के पर कतरने के लिए कई विकल्प हैं। जैसे कि भारत के विदेश मंत्री एस.जयशंकर ने कतर के दुस्साहस से निबटने के लिए इस मामले को प्राथमिकता के आधार पर अपने हाथों में ले लिया है। इसके साथ ही उन्होंने इस संकट से निबटने के लिए अपने सभी विकल्प आजमाने का संकेत भी कतर को भेज दिया है। जैसा कि भारत के कतर से पूर्व में अच्छे संबंध ही रहे हैं किन्तु विगत कुछ वर्षों से कतर ने नुपुर शर्मा का मामला हो अथवा वर्तमान संकट संबंधों की मर्यादा को ताक पर रख दिया है। तो ऐसे भारत के पास प्रथम विकल्प तो कतर की उच्च न्यायालय में अपील करने का है, किंतु राजशाही के कारण वहां की न्यायिक व्यवस्था संदिग्ध है। द्वितीय विकल्प के रुप में भारत अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में विषय को लेकर जाए। जो कि लंबी और थकाऊ प्रक्रिया है। तो तीसरे विकल्प के रुप में अपनी कूटनीतिक शक्ति का उपयोग करना ही सबसे श्रेयस्कर कदम हितकर होगा। जिसमें मध्यपूर्व के अपने मित्र देशों यूएई,बहरीन तथा सउदी अरब जैसों से संबंधों के माध्यम से कतर के पर कतरने का दबाव बनाएगा। चूंकि कतर ने अभी तक अपने लिए गए निर्णय की कॉपी भारत सरकार को उपलब्ध नहीं कराई है, और न ही आधिकारिक रूप से उन 8 नौसैनिकों पर क्या आरोप हैं उनसे अवगत कराया है। तो इस दंड पर अमल करना कतर के लिए इतना सुलभ नहीं होने वाला है। वह भी तब जब भारत के तेजतर्रार विदेश मंत्री सक्रिय हो चुके हों। 

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हेमन्त वात्सल्य शर्मा

हेमन्त वात्सल्य शर्मा

हेमन्त वात्सल्य शर्मा बतौर सीनियर सब एडिटर राजनीति तथा विदेश मामलों के संबंध पर अपने स्वतंत्र लेखन करते हैं। वह इससे पहले हरिभूमि तथा DNP INDIA HINDI न्यूज पोर्टल पर भी अपनी सेवाएं दे चुके हैं।

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