श्री क्षत्रिय युवक संघ अपने संस्थापक पूज्य तनसिंह जी की 100वीं जयंती को भव्य रूप में 28 जनवरी 2024 को दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम में मनाने जा रहा है। यह देश की राजधानी में होने वाला राजपूतों का अब तक का सबसे बड़ा सम्मेलन होगा जिसमें देश भर से बड़ी संख्या में राजपूत अपने प्रेरणास्रोत पूज्य तनसिंह जी के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने और सामाजिक एकता का संदेश देने के लिए जुटेंगे। श्री क्षत्रिय युवक संघ के संरक्षक माननीय भगवान सिंह जी रोलसाहबसर और संघप्रमुख श्री लक्ष्मण सिंह बैण्याकाबास के सान्निध्य में आयोजित होने वाले इस कार्यक्रम में देश भर से राजपूत समाज के राजनेता, अधिकारी, उद्योगपति, धार्मिक और सामाजिक व्यक्तित्व और अनेकों प्रतिष्ठित व्यक्ति इस समारोह में शामिल होंगे। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में महिलाओं की भी उपस्थित रहेगी। दिल्ली शहर और एनसीआर क्षेत्र में रहने वाले राजपूतों के साथ ही हरियाणा और उत्तरप्रदेश के राजपूत भी प्रमुखता से कार्यक्रम में शामिल होगें। राजस्थान से भी कार्यक्रम में पहुंचने के लिए अनेक विशेष ट्रेन बुक की गई हैं। गुजरात और महाराष्ट्र से भी ट्रेन और बसों से बड़ी संख्या में राजपूत कार्यक्रम में शामिल होंगे। यही नहीं, दक्षिण भारत के कर्नाटक, तेलंगाना, आध्रप्रदेश, तमिलनाडु जैसे राज्यों से लोग इस समारोह का हिस्सा बनने के लिए आ रहे हैं। तनसिंह जी आधुनिक युग के अग्रणी क्षत्रिय विचारक है जिनके आदर्शों को अपनाकर आज अनेकों क्षत्रिय युवा समाज और राष्ट्र की सेवा में अपनी भूमिका निभा रहे हैं।
दो बार विधायक और दो बार सांसद रहे तनसिंह जी ने सिर्फ 22 वर्ष की उम्र में श्री क्षत्रिय युवक संघ की स्थापना राजपूत युवकों में क्षत्रियोचित संस्कारों के निर्माण के लिए 22 दिसंबर 1946 को की थी। श्री क्षत्रिय युवक संघ प्रतिवर्ष सैकड़ों शिविर आयोजित करता है जिनमें समाज की युवा पीढ़ी को गीता में भगवान श्री कृष्ण द्वारा बताए गए क्षत्रिय के गुणों को जीवन में उतारने का अभ्यास कराया जाता है। बालकों और बालिकाओं के लिए अलग अलग लगने वाले ये शिविर चार, सात और ग्यारह दिनों के होते हैं और भीड़ भाड़ से दूर एकांत स्थानों में आयोजित होते हैं। दंपतियों के लिए अलग शिविर भी लगाए जाते हैं। देश-विदेश में हजारों जगहों पर संघ की दैनिक और साप्ताहिक शाखाएं भी लगाई जाती है जिनमें खेल, प्रार्थना, सहगीत, मंत्र जैसी गतिविधियों के माध्यम से संघ साधना का अभ्यास किया जाता है, साथ ही विभिन्न सामाजिक विषयों पर चर्चा और चिंतन किया जाता है। समाज की विभिन्न आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए श्री क्षत्रिय युवक संघ के अनेक आनुषंगिक संगठन भी कार्यरत है जिनमें राजनीतिक जागृति के लिए श्री प्रताप फाउंडेशन, समाज के युवाओं के सकारात्मक मार्गदर्शन के लिए श्री क्षात्र पुरुषार्थ फाउंडेशन, महिला शिक्षा के लिए दुर्गा महिला विकास संस्थान, रक्तदान शिविर जैसे समाजोपयोगी कार्यों के लिए श्री प्रताप युवा शक्ति जैसे अनेकों प्रकल्प शामिल हैं।
22 दिसंबर 2021 को श्री क्षत्रिय युवक संघ के 75 वर्ष पूरे होने पर जयपुर के भवानी निकेतन में हीरक जयंती भी मनाई गई थी जिसमें लाखों की संख्या में राजपूत इकट्ठा हुए और इस कार्यक्रम की भव्यता और अनुशासन देश विदेश में चर्चा के विषय बने। उसी तर्ज पर दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम में आयोजित होने वाला पूज्य तनसिंह जन्म शताब्दी समारोह भी ऐतिहासिक आयोजन होगा।
पूज्य तनसिंह जी का संक्षिप्त परिचय :-
जन्म 25 जनवरी 1924
जैसलमेर जिले में आने वाले बेरसियाला गांव (तनसिंह जी का ननिहाल) में उनका जन्म ठाकुर बलवंत सिंह महेचा एवं मोतीकंवर जी सोढा की संतान के रूप में हुआ। रामदेरिया (बाड़मेर) उनका पैतृक गांव है।
अभावों से जूझते बीता बचपन
4 वर्ष के हुए, उससे पूर्व ही पिता का निधन। कठिन आर्थिक परिस्थितियों के बीच माता मोती कंवर ने प्रारंभिक शिक्षा के लिए तणैराज (तनसिंह जी का बचपन का नाम) को बाड़मेर भेजा। यहां से छठी कक्षा तक पढ़ने के बाद 1938 में जोधपुर के चौपासनी विद्यालय में प्रवेश लिया। यहां मैट्रिक में स्वर्ण पदक प्राप्त किया। तैराकी, दौड़ जैसे खेलों में भी अग्रणी रहे।
पिलानी और नागपुर से प्राप्त की उच्च शिक्षा
चौपासनी से मैट्रिक तक की पढ़ाई के बाद उन्होंने पिलानी के बिड़ला कॉलेज से स्नातक परीक्षा पास की। 1946 में नागपुर गए और वहां से वकालत (लॉ) की पढ़ाई पूरी की। वहीं रहते हुए अनेक अन्य संस्थाओं के संपर्क में आये।
मात्र 28 वर्ष की उम्र में बने विधायक
नागपुर से वापिस आने के बाद 1949 में तनसिंह जी बाड़मेर के प्रथम नगर पालिका अध्यक्ष निर्वाचित हुए। 1952 के आम चुनावों में मात्र 28 वर्ष की आयु में राजस्थान के प्रथम विधानसभा में बाड़मेर से विधायक चुनकर आए। कुछ समय तक उस विधानसभा में वे नेता प्रतिपक्ष भी रहे। 1957 में पुनः विधायक चुने गए।
दो बार बने सांसद, ईमानदार और जिम्मेदार राजनेता के रूप में बनी पहचान 1962 में संसार के सबसे बड़े निर्वाचन क्षेत्र बाड़मेर-जैसलमेर से सांसद का चुनाव जीते। मात्र ₹9000
खर्च कर उन्होंने यह चुनाव जीता। 1967 का लोकसभा चुनाव लड़ा पर हार गए। 1977 के चुनावों में फिर खड़े हुए और दूसरी बार सांसद निर्वाचित हुए। राजनीतिक क्षेत्र में सरल, ईमानदार, स्पष्ट पर मृदुभाषी और जिम्मेदार राजनेता के रूप में आज भी याद किए जाते हैं। सांसद और विधायक रहते और कोई व्यवसाय नहीं किया बल्कि सांसद या विधायक के रूप में मिलने वाले वेतन से ही जीवन निर्वाह किया। राजनीतिक विचारधारा पर राष्ट्रहित को हमेशा वरीयता दी। 1962 के भारत चीन युद्ध के समय विपक्षी सदस्य रहते हुए संसद में दिए ऐतिहासिक वक्तव्य में सरकार और प्रधानमंत्री के प्रति पूर्ण समर्थन और विश्वास जताया था।
व्यवसायी और कृषक के रूप में भी रहे सफल
1962 के चुनाव में हारने के पश्चात आजीविका का संकट खड़ा हुआ तब खेती प्रारंभ की। कृषि उपकरणों का व्यवसाय भी प्रारंभ किया जिसमें कुछ ही समय में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की और अपने साथ ही अनेक साथियों की आजीविका का भी प्रबंध किया।
आंदोलन और जेल यात्रा
1948 में गांधी जी की हत्या के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर लगे प्रतिबंध को अन्याय पूर्ण मानते हुए स्वप्रेरणा से उसके विरुद्ध सत्याग्रह में शामिल होकर 3 महीने तक जेल में रहे। जोधपुर में सैनिक स्कूल खोलने के नाम पर सरकार द्वारा चौपासनी स्कूल के अधिग्रहण का प्रयास किया गया तो साथियों के साथ उसके विरुद्ध हुए आंदोलन में शामिल हुए। अंतत सरकार को झुकना पड़ा और चौपासनी स्कूल मारवाड़ राजपूत सभा को सौंपी गई। 1955-56 में तत्कालीन संघप्रमुख श्रद्धेय आयुवान सिंह जी हुड़ील द्वारा चलाए गए भूस्वामी आंदोलन में अग्रणी भूमिका में रहे। आंदोलन के दौरान कई महीने जेल में भी रहे। आंदोलन इतना तीव्र एवं व्यापक था कि तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को मध्यस्थता करनी पड़ी।
साहित्य में झलकता है गहरा और बहुआयामी व्यक्तित्व
उच्च कोटि के साहित्यकार। संस्कृत, हिंदी, अंग्रेजी और राजस्थानी भाषा के मूर्धन्य विद्वान। अनेक पुस्तकें लिखीं, जिनमें राजस्थान रा पिछोला, समाज चरित्र, बदलते दृश्य, होनहार के खेल, साधक की समस्याएं, शिक्षक की समस्याएं, जेल जीवन के संस्मरण, लापरवाह के संस्मरण, पंछी की राम कहानी, एक भिखारी की आत्मकथा, गीता और समाज सेवा, साधना पथ जैसी पुस्तकें शामिल है जो इतिहास, अध्यात्म, सामाजिक चिंतन जैसे अलग-अलग विषयों पर लिखी गई है। राजस्थानी और हिंदी में अनेकों प्रेरणादायी गीत लिखे जिनका संकलन ‘झनकार’ नाम की पुस्तक में किया गया है। तनसिंह जी अपनी विशिष्ट शैली में डायरी लिखा करते थे। उनकी लिखी डायरियों में से लगभग 500 अवतरणों को चयनित कर ‘डायरी’ शीर्षक से पुस्तक प्रकाशित की गई है। इसके अलावा उन्होंने अपने सहयोगियों को अनेक पत्र भी लिखे जिनकी उपलब्ध प्रतियों को पढ़ने पर उनकी साहित्यिक प्रतिभा और गहरे व्यक्तित्व की झलक मिलती है। ऐसे कुछ उपलब्ध पत्रों को ‘पत्र दर्पण’ पुस्तक में संकलित किया गया है।
कुशल संगठनकर्त्ता, युवावस्था में की श्री क्षत्रिय युवक संघ की स्थापना
मात्र 22 वर्ष की उम्र में समाज को एक सूत्र में बांधने और समाज में क्षत्रियत्व के संस्कारों का निर्माण करने के उद्देश्य से श्री क्षत्रिय युवक संघ नामक संस्था की स्थापना 22 दिसंबर 1946 को की। अपने त्याग और तपस्या से संगठन को इतना मजबूत बनाया कि 77 वर्ष बाद भी लगातार बढ़ते हुए समाज और राष्ट्र की सेवा में समर्पित स्वयंसेवकों को तैयार करने का कार्य कर रहा है। दायित्व बोध के शिक्षण के प्रणेता
पूज्य तनसिंह जी क्षत्रिय समाज में दायित्व बोध के शिक्षण के प्रणेता माने जाते हैं। उनका मानना था कि सनातन संस्कृति का आधार दायित्व बोध है। हर इकाई का अपने से बड़ी इकाई के प्रति अपने कर्तव्य का समुचित निर्वहन ही इस सृष्टि के सफल संचालन का आधार है, जब जब हमारा यह दायित्व बोध अधिकार प्राप्ति के लिए विस्मृत हुआ तब तब परिवार, समाज, राष्ट्र और सृष्टि में संघर्ष का सूत्रपात होता है जो अंततः महाभारत जैसे लोमहर्षक विनाश में परिणत होता है। इसलिए बालक को प्रारंभ से ही उसके दायित्व बोध जागृत करने वाला शिक्षण दिया जाना चाहिए। इस शिक्षण के लिए एक मनौवैज्ञानिक एवं व्यवहारिक प्रणाली की आवश्यकता है और इसी आवश्यकता की पूर्ति के लिए उन्होंने श्री क्षत्रिय युवक संघ की स्थापना की।
सामाजिक जीवन जीने वाले आध्यात्मिक संत
सभी पारिवारिक और सामाजिक दायित्वों को निभाते हुए भी आध्यात्मिक ऊंचाइयों को प्राप्त किया और सामाजिक संत के रूप में ख्याति पाई। उनका मानना था कि व्यक्ति और परमेश्वर के बीच समाज महत्वपूर्ण इकाई है और यदि कोई व्यक्ति समाज को ईश्वर का अभिव्यक्त रूप मानकर पारंपरिक साधना के सभी यह नियमों का पालन करते हुए आराधना करता है तो वहीं पहुंचता है जहां पारंपरिक साधना में रत साधक पहुंचता है। इसके लिए उन्होंने ‘साधना पथ’ पुस्तक के माध्यम से अपने साथियों को भी समाज का काम करते हुए ईश्वर प्राप्ति का मार्ग बताया और उसे संपूर्ण योग मार्ग का नाम दिया। मात्र 55 वर्ष की आयु में जी गए युगपुरुष का जीवन
7 दिसंबर 1979 को मात्र 55 वर्ष की आयु में देहावसान । छोटे से जीवनकाल में सामाजिक और राष्ट्रीय जीवन पर गहरी छाप छोड़ी और श्री क्षत्रिय युवक संघ के रूप में क्षत्रिय समाज की युवा पीढ़ी को धर्म, संस्कृति, राष्ट्र और मानवता के कल्याण में नियोजित करने का मार्ग बना गए। केवल क्षत्रिय समाज ही नहीं बल्कि भारतीय जीवनधारा में भी युगपुरुष के रूप में सम्मान से स्मरण किए जाते हैं। 28 जनवरी 2024 को उनकी सौंवी जयंती पर दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम में देशभर से लोग पहुंचकर देंगे श्रद्धांजलि।