दिल्ली नहीं भूल पाई दंगों का दर्द

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– डॉ. राजीव प्रताप सिंह
सहायक प्राध्यापक, पत्रकारिता विभाग
आईएमएस कॉलेज, नोएडा

नागरिकता संशोधन क़ानून के आने से जो अल्पसंख्यक अपने ही देश में शरणार्थियों का जीवन जीने के लिए बाध्य थे, उन्हें अब नागरिकता मिल सकेगी और साथ ही वे समस्त नागरिक अधिकारों के साथ अपने धर्म, संस्कृति और परम्पराओं का पालन करते हुए अपना जीवन जी सकेंगे। इससे उन्हें न सिर्फ नागरिकता अपितु शिक्षा, स्वास्थ्य तथा रोजगार इत्यादि में भी सहूलियत मिलेगी। इस प्रकार वे सम्मानपूर्वक अपना जीवन जी सकेंगे और भारत की अर्थव्यस्था में वे भी अपना योगदान दे सकेंगे।

पाकिस्तान और बांग्लादेश के इस्लामिक राज्यों में अल्पसंख्यकों की आबादी पिछले कुछ वर्षों में काफी कम हुई है, जिसके कुछ कारणों में या तो उन्हें मार दिया गया या उन्हें अपना धर्म परिवर्तन के लिए बाध्य किया गया है। यही करना है कि वे अपने धर्म और सम्मान की रक्षा के लिए शरणार्थी बनकर भारत आने के लिए मजबूर हुए। धार्मिक आधार पर भारत विभाजन और उसके बाद पाकिस्तान-बांग्लादेश में अल्पसंख्यक अधिकारों और सम्मान की रक्षा के लिए 1950 के नेहरु-लियाक़त समझौते के विफल होने के कारण आज हमें नागरिकता संशोधन विधेयक ले आने की आवश्यकता पड़ रही है। यदि यह विधेयक 50 वर्ष पहले ही आ गया होता तो यह स्थिति पैदा ही नहीं होती। नागरिकता संशोधन विधेयक हमारे घोषणा पत्र में था। भारत की जनता ने 2019 में एक शानदार जनादेश देकर इस विधेयक के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता को सुनिश्चित किया। दिसंबर, 2019 में नागरिकता संशोधन विधेयक को सदन में पेश करते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने अपने अभिभाषण में बहुत स्पष्ट ढंग से पटल पर विस्तार से इसके प्रावधानों की चर्चा की थी। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि नागरिकता संशोधन विधेयक, 2019 का अभिप्राय अल्पसंख्यक समुदाय की नागरिकता रद्द करने से नहीं अपितु नागरिकता प्रदान करने से है।
विभाजन के बाद हमने स्वप्न देखा था कि भारत के साथ ही पडोसी देशों के अल्पसंख्यक समुदाय के लोग अपने नागरिक अधिकारों के साथ सम्मान पूर्ण जीवन जी सकें। वे अपनी धर्म, संस्कृति और परम्पराओं का सम्मान के साथ अनुपालन कर सकें। लेकिन जब पड़ोसी देशों के अल्प्संख्यक समुदाय के प्रताड़ित लोग भारत आए तो न तो उन्हें नागरिकता मिली, न ही नौकरी, स्वास्थ्य व शिक्षा इत्यादि की आधारभूत सुविधाएँ उन्हें प्राप्त हुई। ऐसी स्थिति में उनको मुख्य धारा में ले आने के लिए नागरिकता संशोधन कानून की आवश्यकता बढ़ जाती है।

सदन के पटल पर इतनी स्पष्टता से विधेयक के प्रावधानों को रखने के बाद भी आन्दोलन जीवियों, इस्लामिक कट्टरपंथियों और अर्बन नक्सल के एक बड़े समूह ने देश भर में ये दुष्प्रचार करने का काम जोरशोर से किया कि इस विधेयक के माध्यम से एक समुदाय विशेष की नागरिकता छीन जाएगी। देश भर में जिन स्थानों से आन्दोलन शुरू हुए, यदि हम उसकी भौगोलिक स्थति, समय और सामाजिक परिवेश का विश्लेषण करें तो एक समुदाय विशेष के ऐसे लोग जो भ्रमित थे, वे ही आन्दोलन में शामिल हुए। उनको आन्दोलन के षड़यंत्र का पता ही नहीं था। यदि आन्दोलन के समय का विश्लेषण करें तो उन्हीं दिनों दिल्ली में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का भारत दौरा होने को था। पूरी वैश्विक मीडिया का ध्यान उन दिनों भारत पर था। इस दौरान मुस्लिम भीड़ ने जमकर हिंसा की और इसमें दिल्ली पुलिस के जवान रतन लाल जी शहीद हो गए।

दिल्ली उच्च न्यायलय ने कहा कि यह दंगा पूरी तरह से सुनियोजित था। दिल्ली दंगा कट्टरपंथियों के दुष्प्रचार का परिणाम था। आम आदमी पार्टी के एक विधायक और सुन्नी वक्फ बोर्ड के तत्कालीन प्रमुख अमानतुल्ला खान को दिल्ली के जामिया नगर में दंगों का नेतृत्वा करते देखा गया था, इस दौरान भीड़ ने अनेक सरकारी संपत्तियों में आगजनी कर दी थी। इस दौरान अनेक दंगाइयों ने छुपने के लिए जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय की शरण ले ली थी। आगजनी के बाद दिल्ली पुलिस ने विश्वविद्यालय परिसर में छुपे दंगाइयों को बाहर निकला। इसके साथ दंगे के समय ही आम आदमी पार्टी के एक पार्षद ताहिर हुसैन के घर की छत पर बड़ी मात्र में बम, गुलेल और पत्थर इत्यादि का मिलना ही इस बात का प्रमाण है कि ये दंगे सुनियोजित ढंग से कराए गए और कुछ आतताइयों के दुष्प्रचार का परिणाम मात्र था। इस दंगे में 53 लोगों की जान गई, जिसमें आईबी के अधिकारी अंकित शर्मा और दिल्ली पुलिस के जवान रतन लाल भी मारे गए।

आम आदमी पार्टी से सम्बन्ध अनेक नेताओं का दंगों की साजिश में शामिल होना, दिल्ली सरकार की प्रतिबद्धता पर भी आशंका उत्पन्न करने वाला है। सरकार से सम्बन्ध होने के नाते भीड़ को समझाने की बजे अफवाहें फ़ैलाने में इनके नेता लगे रहे और उनको वित्तीय मदद के गोला-बारूद भी उपलब्ध कराने का काम आम आदमी पार्टी के इन नेताओं ने किया। दिल्ली दंगों में अनेक परिवारों ने न सिर्फ अपना मकान खोया अपितु अनेक पीड़ितों ने अपने घर के सदस्यों को खो दिया। सरकार की तरफ से इस विधेयक के प्रावधानों को लेकर स्पष्ट मत आने के बाद भी अनेक कट्टरपंथियों ने इसके प्रति दुष्प्रचार फैलाने में कोई कमी नहीं छोड़ी। नागरिकता संशोधन क़ानून के आने से जो अल्पसंख्यक अपने ही देश में शरणार्थियों का जीवन जीने के लिए बाध्य थे, उन्हें अब नागरिकता मिल सकेगी और साथ ही वे समस्त नागरिक अधिकारों के साथ अपने धर्म, संस्कृति और परम्पराओं का पालन करते हुए अपना जीवन जी सकेंगे। इससे उनके सामाजिक-आर्थिक जीवन में सकारात्मक परिवर्तन देखा जा सकेगा और साथ ही वे मुख्य धारा में जुड़ सकेंगे। इससे उन्हें न सिर्फ नागरिकता अपितु शिक्षा, स्वास्थ्य तथा रोजगार इत्यादि में भी सहूलियत मिलेगी। इस प्रकार वे सम्मानपूर्वक अपना जीवन जी सकेंगे और भारत की अर्थव्यस्था में वे भी अपना योगदान दे सकेंगे।

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