गौतम कुमार सिंह
२०२० उत्तर-पूर्वी दिल्ली के दंगे 23 फरवरी 2020 की रात से शुरू होकर, उत्तर पूर्व दिल्ली के जाफराबाद इलाके में रक्तपात, संपत्ति विनाश, दंगों और हिंसक घटनाओं की एक श्रृंखला थीं। इसमें 53 लोग मारे गए और 200 से अधिक लोग घायल हुए है।दिल्ली दंगे के दौरान गोकुलपुरी थाना क्षेत्र में मेन ब्रजपुरी रोड चमन पार्क स्थित मिठाई के गोदाम में युवक दिलबर नेगी की आग लगाकर की गई हत्या के मामले में कड़कड़डूमा कोर्ट ने 11 लोगों को आरोप मुक्त कर दिया है. इन लोगों के खिलाफ आगे मुकदमा चलाने लायक समुचित साक्ष्य नहीं मिले. केवल एक आरोपी शाहनवाज उर्फ शानू के खिलाफ हत्या, आगजनी समेत कई आरोप तय किए गए हैं. देश की राजधानी दिल्ली के दामन पर कई बार दंगों के दाग लग चुके हैं. पिछले 10 सालों में इस पर नजर डालें तो 100 से अधिक ऐसे मामले सामने आए, जिसमें सांप्रदायिक दंगे भी शामिल हैं.
1984 के सिख दंगों के बाद दिल्ली में सबसे बड़ा सांप्रादायिक दंगा 2020 में हुआ था. 84 के सिख दंगों में 3 हजार से अधिक लोगों की जान गई थी. वहीं 2020 में कुल 53 लोगों की मौत हुई थी, जिसमें एक पुलिस कॉस्टेबल भी शामिल था.
दरअसल, दिलबर उत्तराखंड के पौढ़ी गढ़वाल के रोखड़ा गांव का रहने वाला था. वह घटना से 6 महीने पहले यहां आया था, जिस वक्त उसकी हत्या की गई, वह खाना खा रहा था. 11 आरोपियों को बरी करते समय कोर्ट ने अभियोजन पक्ष के गवाहों के बयान पर गौर किया और पाया कि उनमें से सभी 22 साल के दिलबर नेगी की हत्या की घटना से सीधे तौर पर संबंधित नहीं थे.
कोर्ट ने कहा कि अलग-अलग समय के दंगों के वीडियो में कई आरोपियों की पहचान की गई थी, लेकिन इन 2 चश्मदीदों में से किसी ने भी वीडियो के आधार पर उनकी पहचान नहीं की. जिससे यह कहा जा सके कि ये आरोपी गोदाम में आग लगने से ठीक पहले गोदाम में एंट्री करते वक्त शानू के साथ थे. इसलिए शानू उर्फ शाहनवाज को छोड़कर अन्य आरोपी इस मामले में आरोपमुक्त किए जाने के हकदार हैं.
दिल्ली की एक अदालत ने 2020 के दिल्ली दंगों के मामले में नौ लोगों को दोषी ठहराया है। अदालत ने कहा कि आरोपी व्यक्ति एक अनियंत्रित भीड़ का हिस्सा थे। इस भीड़ का उद्देश्य हिंदू समुदाय के लोगों की संपत्तियों को अधिक से अधिक नुकसान पहुंचाना था। यह मामला दंगों के दौरान गोकुलपुरी इलाके में दंगे, आगजनी और तोड़फोड़ से संबंधित है। मामले में फैसला सुनाते हुए, अदालत ने कहा कि इस मामले में आरोपी व्यक्ति एक अनियंत्रित भीड़ का हिस्सा बन गए थे, जो सांप्रदायिक भावनाओं से प्रेरित थी।
नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019, 11 दिसंबर 2019 को संसद ने नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2019 पारित कर दिया। राज्यसभा ने इसे 11 दिसंबर 2019 को पारित किया (पीआईबी लिंक) तथा लोकसभा ने 9 दिसंबर 2019 को विधेयक पारित किया।
नागरिकता अधिनियम 1955 में संशोधन करने के लिए यह नागरिकता संशोधन विधेयक पहले 2016 में भी लोकसभा में पेश किया गया था। तब इस विधेयक को एक संयुक्त संसदीय समिति को भेजा गया था, जिसकी रिपोर्ट बाद में 7 जनवरी, 2019 को प्रस्तुत की गई थी। 8 जनवरी, 2019 को नागरिकता संशोधन विधेयक लोकसभा द्वारा पारित किया गया लेकिन 16वीं लोकसभा के विघटन के कारण वह विधेयक स्वतः समाप्त हो गया। इस विधेयक को 9 दिसंबर 2019 को 17वीं लोकसभा में गृह मंत्री अमित शाह द्वारा फिर से पेश किया गया। भारत के राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद यह विधेयक अधिनियम बन गया।
इस अधिनियम में पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिक उत्पीड़न के शिकार हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों से संबंधित व्यक्तियों को भारतीय नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान है। इस विधेयक का उद्देश्य किसी की नागरिकता छीनना नहीं बल्कि देना है।
राष्ट्रव्यापी विरोध इस विधेयक को लेकर अफवाहें उड़ाई गईं कि सीएए के बाद मुस्लिम अपनी नागरिकता खो देंगे। कई लोगों ने यह अफवाह भी फैलाई कि सीएए लागू होने के बाद मुसलमानों को डिटेंशन सेंटर में भेज दिया जाएगा। विधेयक पारित होते ही देश में सीएए विरोधी प्रदर्शन शुरू हो गया। पूरे देश से कई विरोध प्रदर्शनों की खबरें आईं लेकिन दिल्ली विरोध का प्रमुख केंद्र बन गया।
न्यायालय की टिप्पणी दिल्ली हाई कोर्ट ने आरोपी मोहम्मद इब्राहिम की जमानत अर्जी खारिज करते हुए स्पष्ट रूप से कहा कि 2020 के दंगे पूर्व नियोजित थे।
पैरा 41- “फरवरी 2020 में देश की राष्ट्रीय राजधानी को हिला देने वाले दंगे स्पष्ट रूप से तात्कालिक नहीं थे, और वीडियो फुटेज में मौजूद प्रदर्शनकारियों का आचरण अभियोजन पक्ष द्वारा रिकॉर्ड पर रखा गया है वह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि यह सरकार के कामकाज को अस्त-व्यस्त करने के साथ-साथ शहर में लोगों के सामान्य जीवन को बाधित करने का एक सोचा-समझा प्रयास था। सीसीटीवी कैमरों को व्यवस्थित रूप से डिसकनेक्ट करना और नष्ट करना भी शहर में कानून व्यवस्था को बिगाड़ने की पूर्व नियोजित साजिश की पुष्टि करता है। यह इस तथ्य से भी स्पष्ट है कि असंख्य दंगाई पुलिस अधिकारियों की संख्या से कहीं अधिक संख्या में मौजूद लोगों पर बेरहमी से लाठी, डंडा, बल्ला आदि लेकर टूट पड़े।”
पैरा 42- “… इस न्यायालय ने पहले लोकतांत्रिक राजनीति में व्यक्तिगत स्वतंत्रता के महत्व पर राय दी है, लेकिन यह स्पष्ट रूप से ध्यान दिया जाना चाहिए कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता का दुरुपयोग इस तरह से नहीं किया जा सकता है जो सभ्य समाज को अस्थिर करने का प्रयास करके उसके मूल ढांचे को खतरे में डालता है और अन्य व्यक्तियों को चोट पहुंचाते हैं.
दिनांक 11.04.2022 को अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, कड़कड़डूमा अदालत ने अदालत के समक्ष एसपीपी द्वारा रखे गए प्रासंगिक सबूतों के आधार पर आरोपी शरजील इमाम की जमानत याचिका खारिज कर दी। एसपीपी ने अदालत में कहा कि, संरक्षित गवाह बॉन्ड ने सीआरपीसी की धारा 164 के तहत अपने बयान में अन्य बातों के अलावा कहा है कि उमर खालिद, शरजील, सैफुल इस्लाम और आसिफ तन्हा 13.12.2019 को जामिया विश्वविद्यालय परिसर में आए थे। उनकी मौजूदगी में उमर खालिद ने सभी प्रदर्शनकारियों के सामने कहा कि शरजील, सैफुल और आसिफ उनके भाई और उनकी टीम के सदस्य हैं। उमर खालिद ने कहा कि उन्होंने उन्हें चक्काजाम और धरने में अंतर समझाया है। उमर ने शरजील को शाहीन बाग में और आसिफ और सैफुल को जामिया यूनिवर्सिटी के गेट नंबर 7 पर चक्काजाम करने के लिए कहा। उमर खालिद ने कहा कि सही समय पर वे दिल्ली के अन्य मुस्लिम इलाकों में भी चक्काजाम करेंगे। उमर ने आगे कहा कि सरकार एक हिंदू सरकार है और मुसलमानों के खिलाफ है और उन्हें सरकार को उखाड़ फेंकना होगा और सही समय पर ऐसा करेंगे। 16.12.2019 को, उमर खालिद (सैफुल और आसिफ के साथ) और नदीम खान AAJMI के कार्यालय में आए और उनकी उपस्थिति में, उमर ने सैफुल और आसिफ से कहा कि जामिया समन्वय समिति (JCC) की स्थापना की जाए। नदीम खान ने कहा कि जेसीसी दिल्ली में विरोध प्रदर्शन और चक्काजाम का नेतृत्व करेगी। आसिफ और सैफुल उक्त सुझावों पर सहमत हुए और जेसीसी का गठन किया गया।
आरोपी शरजील के संदर्भ में एसपीपी ने यह भी उल्लेख किया कि, यहां यह उल्लेख करना महत्वपूर्ण है कि सीएए/एनआरसी का विरोध पूरे भारत में हुआ था लेकिन इस पैमाने के दंगे केवल दिल्ली में हुए थे। शरजील इमाम 13.12.2019 के अपने भाषण में दिल्ली को भारत की राजधानी होने का जिक्र करता है और उदाहरण देता है कि अगर एक फ्लाईओवर भी गिर गया तो पूरी दुनिया को पता चल जाएगा। इसके अलावा, संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को 24 फरवरी 2020 को दिल्ली का दौरा करना था। उसी दिन दंगे हो रहे थे जब संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति दिल्ली में थे और पूरी दुनिया की मीडिया इसे कवर करने के लिए वहां मौजूद थी। आरोप पत्र से यह महज़ संयोग प्रतीत नहीं होता। दरअसल, दंगे शुरू होने से पहले राष्ट्रपति के दौरे का जिक्र है। आरोपी उमर खालिद ने अपने अमरावती भाषण में विशेष रूप से 24 फरवरी 2020 को दिल्ली में संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति की उक्त यात्रा का उल्लेख किया और इसे चारों ओर के मीडिया के साथ दुनिया को दिखाने की आवश्यकता बताई। विभिन्न गवाहों ने संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति की यात्रा की घोषणा के बाद बढ़ी हुई गतिविधि का भी उल्लेख किया। शरजील इमाम 23.01.2020 के अपने गया भाषण में फिर से दिल्ली में राजमार्गों की रुकावट का जिक्र करते हुए कहता है कि वे सरकार को पंगु बना देंगे। पूरे भारत में विरोध प्रदर्शन का जिक्र करते हुए वह एक दिलचस्प संदर्भ देता हैं। उसका कहना है कि दिल्ली खास है क्योंकि यहां कुछ भी होगा तो पांच मिनट में अंतरराष्ट्रीय मीडिया पहुंच जाएगा, फायरिंग मीडिया में कवर हो जाएगी और इस तरह अगर सेना तैनात करनी पड़ी तो यह सरकार का अपमान होगा, मुसलमानों का नहीं। यह भी जोड़ना होगा कि जेसीसी, पिंजरा तोड़ और डीपीएसजी जैसे विभिन्न संगठन भी मूलतः दिल्ली के आयोजनों तक ही सीमित थे।
एसपीपी द्वारा रखे गए प्रासंगिक सबूतों के आधार दिनांक 24.03.2022 को दिए आदेश में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, कड़कड़डूमा अदालत ने आरोपी उमर खालिद की जमानत याचिका खारिज कर दी। एसपीपी ने कहा कि, आरोप पत्र के अनुसार, 08.12.2019 को जंगपुरा कार्यालय में एक बैठक हुई, जिसमें योगेंद्र यादव, उमर खालिद, शरजील सहित अन्य लोगों ने भाग लिया। उक्त बैठक की एक तस्वीर भी दायर की गई थी। गवाह ताहिरा दाउद ने उक्त बैठक और चक्काजाम में पूर्ण समर्थन को लेकर योगेन्द्र यादव व उमर खालिद के निर्देश की बात कही थी। परिणामस्वरूप उसी दिन एक व्हाट्सएप ग्रुप “कैब टीम” का गठन किया गया। इसके सदस्यों में शरजील इमाम, उमर खालिद, योगेन्द्र यादव, नदीम खान, खालिद सैफी शामिल थे।
24 और 25 फरवरी 2020 के दौरान तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत के दौरे पर थे। विश्व की सारी मीडिया का ध्यान दिल्ली पर था। ताहिर हुसैन, उमर खालिद, सरजील इमाम, खालिद सैफी और अन्य इस्लामिस्ट एवं शहरी नक्सलियों द्वारा एक साजिश रची गई थी। दिल्ली पुलिस ने अपनी चार्जशीट में कहा कि ट्रंप के दौरे के दौरान भारत को बदनाम करने के लिए ताहिर हुसैन, उमर खालिद ने दंगों की साजिश रची थी। आरोपपत्र के मुताबिक उमर खालिद ने वैश्विक प्रचार के लिए डोनाल्ड ट्रंप की यात्रा के दौरान दिल्ली दंगों को भड़काने की साजिश रची थी।
आरोप पत्र में आरोप लगाया गया, “साजिशकर्ताओं ने जो साजिश रची थी उसका अंतिम उद्देश्य था षड्यंत्र, आंतक एवं सांप्रदायिक हिंसा के इस्तेमाल से एक वैध रूप से चुनी हुई सरकार को उखाड़ फेंकना।” “अगर साजिशकर्ता पूरी तरह से सफल हो गए होते, तो सरकार की नींव हिल गई होती, जिससे भारतीय लोगों को अनिश्चितता, अव्यवस्था और अराजकता का सामना करना पड़ाता तथा नागरिकों का राज्य से यह विश्वास उठ जाता कि राज्य उनके जीवन और संपत्ति की रक्षा कर सकता है।”
दिल्ली पुलिस ने हाई कोर्ट को बताया कि नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ शाहीन बाग में चल रहा प्रदर्शन प्राकृतिक या स्वतंत्र आंदोलन नहीं था। पुलिस ने कहा कि पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) और सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) शाहीन बाग और विभिन्न स्थानों के पीछे थे।
दिल्ली में हिंसा भड़काने में षड्यंत्र एवं व्यक्तियों की भूमिका निर्धारित करने के लिए मामले की पुलिस जांच में इस बात के पर्याप्त साक्ष्य सामने आए हैं जो बताते है कि भारत की राजधानी को दहलाने वाले दंगे पूर्व-नियोजित थे, बड़े पैमाने पर योजनाबद्ध थे और एक व्यापक साजिश का हिस्सा थे। आरोपपत्र में उल्लिखित एक आरोपी के फोन से प्राप्त व्हाट्सएप संदेश बिना किसी संदेह के दिल्ली में दंगे भड़काने की साजिश की योजना बनाने और उसे क्रियान्वित करने में उनकी संलिप्तता को साबित करता है। “घर में गरम खौलता हुआ पानी और तेल का इंतजाम करें, तेजाब की बोतल घर में रखे, कार-बाइक से पेट्रोल निकालकर रखे, बॉलकनी और छत पर ईंट-पत्थर रखें, लोहे के दरवाजों में स्विच से करंट का इस्तेमाल करें” ये कुछ वे मेसेज हैं जो दिल्ली में हिंसा की तैयारी के तहत व्हाट्सएप ग्रुपों में प्रचारित किए गए।
ये कानून का लेखन थोड़ा मुश्किल है, लेकिन विवरण थोड़ा है। लेकिन दंगा पीड़ित और जो लोग जिनको इन सब बातों से और अनलोगो के आंख में आंसू, बेगुनाह लोग ।