मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए माफिया का साथ

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वर्ष 2017 में उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार आने के बाद कानून व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए बनाई गयी त्रिस्तरीय रणनीति का प्रभाव और परिणाम अब स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा। प्रदेश में अपराधियों और माफियाओं के आतंक के किले ढह रहे हैं । माफिया किसी भी मत, मजहब, संप्रदाय का हो योगी जी केवल उसका अपराध देखते हैं किन्तु प्रदेश के अन्य राजनैतिक दल अपराधियों को भी अपने वोट बैंक से जोड़ लेते हैं। वर्तमान में एक वर्ग विशेष के माफिया की मौत के बाद एक खास वोट बैंक को लुभाने के लिए राजनैतिक दल जिस प्रकार उसका महिमा मंडन कर रहे हैं वो खतरनाक है यद्यपि ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है।

प्रदेश को वह समय भी स्मरण है जब यहाँ माफिया जेलों में शरण लेते थे और जेल में एक तरह से उनकी सरकार चलती थी, वहां उन्हें हर प्रकार का संरक्षण प्राप्त होता था, जेल से ही वह अपना अपराधों का कारोबार चलाया करते थे। 2017 से परिस्थितियां बदल गई हैं क्योकि जेलों में बंद अपराधियों पर अब कड़ी निगरानी रखी जाती है।

प्रदेश में विगत सात वर्षों से संगठित अपराध के सफाये पर विशेष बल दिया जा रहा है। प्रदेश में माफियाराज के सफाये के लिए त्रि़स्तरीय योजना बनाई गयी है। कार्ययोजना के अंतर्गत फरार अपराधियों की धरपकड़, अदालत में प्रभावी पैरवी कर सजा दिलाने और उनकी चल -अचल संपत्ति को जब्त करने और उनके अवैध कब्जों को हटाने का अभियान अब रंग लाने लगा है। दूसरी तरफ जेलों में भी इन लोगो को मिलने वाली सुख सुविधाएं पूरी तरह से बंद कर दी गईं हैं।

2017 से पूर्व किसी भी माफिया ने सपने में नही सोचा था कि यह प्रदेश अब उनके लिए बेगाना हो चुका है और यहां से उनका दाना -पानी उठने वाला है। प्रयागराज में माफिया अतीक और उसके भाई अशरफ सहित उमेश पाल हत्याकांड के चार शूटरों के ढेर होने के बाद जनमानस में शासन के प्रति आश्वस्ति का भाव उत्पन्न हुआ। विगत दिनों जेल में बंद कुख्यात माफिया मुख्तार अंसारी की हार्ट अटैक से हुई मौत से माफियाओं का दिल दहल गया और पीड़ितों ने चैन की सांस ली ।

इधर जेल में बंद माफिया की मौत के बाद, मुस्लिम वोट बैंक को कब्ज़े में करने के लिये, तुष्टिकरण की राजनीति करने वालों के बीच माफिया को मसीहा साबित करने की होड़ मच हुई है।असदुद्दीनओवैसी मुख्तार उनके घर खाना खाते दिखे, सपा से अलग हुए स्वामी प्रसाद मौर्य उनके घर पर पहुंचते हैं। सपा, बसपा, कांग्रेस उनकी मौत को साजिश बताकर जाँच की मांग कर रही है। और तो और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष जिनके अपने बड़े भाई को मुख़्तार ने मौत के घाट उतारा था वो भी माफिया को माफिया कहने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं कि कहीं वोट बैंक न टूट जाए। माफिया से सहानुभूति प्रदर्शित करने का खेल जारी है और इन सभी दलों को लग रहा है कि ऐसा करने से प्रदेश की राजनीति में उनकी जमीन मजबूत हो रही है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा खतरनाक अपराधी माने गए व्यक्ति के बीमारी से मर जाने को कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाजवादी पार्टी और उनके समर्थन के लिए उत्साहित रहने वाला पश्चिमी मीडिया मोदी जी के मिशन 400 को रोकने के लिए एक सुनहरे ईश्वरीय अवसर के रूप में देख रहा है और निरंतर अनर्गल प्रलाप कर रहा है। वामपंथी पत्रकार उसे गरीबों का मसीहा बता रहे हैं।

एक गलत नेरैटिव गढ़ा जा रहा है कि माफिया मुख्तार अंसारी गरीबों का मसीहा था और गरीब बेटियों की शादियाँ करवाता था। माफिया मुख्तार अंसारी का 46 वर्षों का आपराधिक इतिहास रहा है, उस पर 65 मुकदमे दर्ज हुए थे। 2005 का मऊ दंगा मुख्तार ने कराया था और वह खुलेआम असलहा लेकर घूम रहा था। उसके आतंक का आलम यह था कि जज फैसला देने से डरते थे और पंजाब की कांग्रेस सरकार ने उसको दामाद की तरह पलकों पर बिठा के रखा था। 2017 से पूर्व किसी ने भी सपने में नही सोचा था कि मुख्तार अंसारी जैसे माफिया को कभी सजा सुनायी जाएगी किंतु योगी सरकार अथक प्रयास करके उसको पंजाब से उत्तर प्रदेश लेकर आई और पिछले डेढ़ साल में उसको आठ मामलो में आठ बार सजा सुनाई गई, जिसमें दो मामलों में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। मुख्तार अंसारी की पूर्वांचल की सियासत पर मजबूत पकड़ थी और सपा, बसपा , कांग्रेस जैसे सभी दल उसका साथ पाने के लिए उत्साहित रहते थे। वह कई सीटों पर न केवल अपने उम्मीदवार तय करता था अपितु उन्हें जिताने में भी कामयाब होता था।

हत्या, दंगा, गैंगवार सहित हर तरह के आपराधिक रिकॉर्ड कायम करने के बाद 1995 में वह गाजीपुर सदर सीट से विधानसभा चुनाव लड़ा किंतु हार गया, फिर मऊ से चुनाव लड़ा और निर्दलीय विधायक बनने में सफल रहा। अब उसने पूर्वांचल के दूसरे जिलों में भी अपनी पकड़ मजबूत बनाने का प्रयास किया। मुख्तार लगातर पांच बार विधायक बना। मुख्तार ने पूर्वांचल में दलित -मुस्लिम गठजोड़ को मजबूत बनाने में भी बड़ी भूमिका अदा की थी। वह 2009 में वाराणसी से भाजपा नेता डा. मुरली मनोहर जोशी के खिलाफ भी चुनाव लड़ा था और डा. जोशी वह चुनाव बहुत कठिनाई से जीते थे।

समय बदला, मुख्तार अंसारी जमानत के लिए गुहार लगाते समय अपने पूर्वजों के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के परिवार का सदस्य होने की दुहाई देने लगा। मुख्तार की मौत के बाद आतंक का एक अध्याय तो समाप्त हो गया किंतु मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति का खतरनाक दौर और तेज हो गया है। मुस्लिम तुष्टिकरण के सहारे चलने वाले राजनैतिक दल उसके दरवाजे पर अपना समर्थन व्यक्त करने के लिए पहुंच रहे हैं क्योंकि इन दलों की रोजी -रोटी ऐसे ही माफियाओं के बलबूते चलती रही है। जनता के बीच भय पैदा करने, मतदाता को प्रभावित करने के लिए इन तत्वों का सहयोग लिया जाता था। वो लोग भी मुख्तार के लिए आंसू बहा रहे हैं जो जम्मू कश्मीर में आतंकवादी बुरहान वानी के लिए रो रहे थे और कभी याकूब मेमन की फांसी को रुकवाने के लिए देर रात सुप्रीम कोर्ट खुलवा रहे थे।

मुख्तार की मौत का सियासी लाभ लेने के लिए सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने जेल में मौत पर सवाल खडे़ किये। चाचा शिवपाल यादव ने श्री कहकर भावपूर्ण श्रद्धांजलि व्यक्त की। कांग्रेस महासचिव अनिल यादव ने सांस्थानिक हत्या का आरोप लगा दिया। राजनैतिक विश्लेषक मान रहे हैं कि मुख्तार की मौत से उसके असर वाले क्षेत्रों में उसके परिवार के प्रति सहानुभूति उमड़ी है और ये लोग उसे गरीबो का मसीहा बताकर सहानुभूति का लाभ उठाना चाहते हैं। ये लोग इतना भी नहीं सोच पा रहे कि उन्हीं क्षेत्रों में वो लोग भी रहते हैं जिनका मुख़्तार ने सब कुछ छीन लिया था।
वोट बैंक के लालच में अपराध और अपराधियों का महिमा मंडन एक खतरनाक रणनीति है जो समाज में नए अपराधियों के जन्म का कारक बन सकती है। राजनैतिक दलों को परिपक्वता का व्यवहार करना चाहिए। जो लोग स्वयं को समाज का नेता मानते हैं समाज उनसे सुलझे हुए व्यवहार की अपेक्षा करता है न कि अपराधियों के साथ खड़े होने की, पता नहीं ये कब चेतेंगे और मूल्यों की राजनीति करेंगे।

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मृत्युंजय दीक्षित

मृत्युंजय दीक्षित

मृत्युंजय दीक्षित का लखनऊ में निवास है। वे लेखक, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तम्भकार हैं

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