दिल्ली। ईसा मसीह को प्रेम, करुणा, दया, सेवा की मूर्ति माना गया। वे कांटो भरा मुकुट पहनकर सलीब स्वयं ढोकर ले गए। सलीब पर चढ़ कीलों से लहूलुहान, फिर भी सजा देने वालों को कहते हैं- ”हे ईश्वर इन्हें क्षमा कर देना यह नहीं जानते यह क्या कर रहे हैं।” ईसा मसीह के इन शब्दों को करुणा, क्षमा दया की पराकाष्ठा माना गया। असहनीय कष्ट सहते हुए भी उनके मुख से जो वाणी उद्घाटित हुई वह क्षमा दया निर्वैर की थी। जिस सलीब पर वे लटके या लटकाए गए उस क्रॉस के आकार के प्रतिरूप को ईसाई मतावलंबियों ने अपने गले में श्रद्धा भाव से धारण कर लिया।
जिस क्रॉस को प्रेम करुणा दया क्षमा का प्रतीक माना गया या प्रचारित किया गया फिर क्यों करोड़ों लोगों को बहला फुसला कर उनके गले में क्रॉस लटकाया जा रहा है? सेवा के नाम पर मतांतरण के कुत्सित प्रयास समस्त विश्व में विज्ञान व तकनीकी की इक्कीसवीं सदी में वर्तमान समय में भी चल रहे हैं। शिक्षा के नाम पर मिशनरीज विद्यालयों में गैर क्रिश्चियन विद्यार्थियों के लिए बाइबल की पंक्तियाँ, प्रेयर कंपलसरी क्यों? करुणा दया के प्रचारक ईसाई मिशनरीज पोप, पादरी अपने अनुयायी अंग्रेजों को क्या रविवार की प्रार्थना सभा में भारत में भोले-भाले, गरीब, अशिक्षित लोगों का शोषण करने का उदार संदेश देते थे ? प्रभु यीशु के प्रेम में दीवाने पुर्तगालियों ने गोवा में तीस हजार लोगों हत्या और तीन हजार मंदिरों का विध्वंस किस प्रेम और करुणा के वशीभूत किया गया ?विश्व में अपनी उदारता, करुणा दया का ढिंढोरा पीटने वाले स्वयंभू शिक्षित, सभ्य जेन्टलेमेन युरोपियन्स ने एशियाई अफ्रीकी देशों में सत्रहन्वी शताब्दी से बीसवीं शताब्दी तक भयंकर अत्याचार किए। आज जिन तीसरी दुनिया के देशों में गरीबी, पिछड़ापन आदि समस्याएं हैं, वे पश्चिम जगत की साम्राज्यवादी क्रूरता और शोषण का परिणाम है।
भारत में व्यापार के बहाने घुसे अंग्रेज, डच, पुर्तगाली, फ्रांसीसी आदि गोरी चमड़ी वालों ने असमानता, रंगभेद, अगड़े-पिछड़े, शिक्षित-अशिक्षित का भेद उत्पन्न किया। अंग्रेजों, मुगलों या विदेशियों ने कभी भारतीयों से रोटी-बेटी का सबंध नहीं बनाया, हाँ हमारी जेब की दमड़ी तक छीनने के लिए चमड़ी पर हंटर, चाबुक से पुष्प वर्षा में कभी आलस्य नहीं किया।भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव ने असेम्बली में मात्र धुएं,आवाज वाला बम फेंका था जिससे किसी की हत्या तो क्या कोई विशेष घायल भी नहीं हुआ था। तब दया, क्षमा, न्याय की मूर्ति अंग्रेज न्यायाधीशो ने इन नवयुवकों को फांसी की सजा देते हुए विधि के शासन का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत किया। न्याय प्रिय अंग्रेज अफसरों और न्यायाधीशों ने उन्हें अपनी करुणा के द्वारा निश्चित तिथि से पूर्व ही बैकुंठ धाम पहुंचा दिया। जलियांवाला बाग में हजारों लोग(लगभग पाँच हजार) तेरह अप्रैल बैसाखी के दिन इकट्ठा हो, शांति से सभा कर रहे थे। किसी के पास हथियार नहीं था। अंग्रेज अफसर जनरल डायर ने अबोध निहत्थे लोगों पर सीधे गोलियों की बौछार कर सैकड़ो पुरुषों, महिलाओं, बच्चों को अगले जन्म के लिए प्रेम का पाठ पढ़ा मौत की नींद सुला दिया। इंग्लैंड में अपने सम्मान में आयोजित समारोह में बहादुर जनरल डायर ने कहा कि मेरे पास गोलियां खत्म हो गई वरना और लाशें दिखती। संत डायर ने 1650 राउंड फायरिंग की थी।
दुनिया भर में शांति का संदेश देने वाले पादरियों में से कोई जलियांवाला बाग में बलिदान हुए शहीदों की लाशे गिनने भी न आया। तथाकथित आधुनिक शिक्षा पढे अंग्रेज अफसर निरपराध लोगों को गोलियों से भून शायद हजारों परिवारों को करुणा, दया,प्रेम का संदेश दे रहे थे ! 1857 के स्वाधीनता समर के बाद उदारवादी अंग्रेजों ने पूरे भारत में दमन, अत्याचार और क्रूरता की जो कहानी लिखी, उसकी किसी चर्च ने कभी निंदा नहीं की, न किसी पादरी ने चर्च में उन शहीदों के लिए प्रार्थना सभा आयोजित की। मात्र शक के आधार पर किसानों को उन्हीं के खेत बगीचों में पेड़ों से लटका कर यीशु की शरण में भेज दिया। नौजवानों को तोप के मुंह पर बांधकर उड़ा दिया।दूधमुहे बच्चों तक को सलीब पूजक अंग्रेज अफसरों ने प्रेम पूर्वक अपने बूट/ जूते से कुचलकर दुनिया को करुणा का अमर संदेश दिया। भारतीय नारियों से बलात्कार मेंअंग्रेज भी मुस्लिम आक्रांताओं से कम नहीं थे। अल्पवय बच्चियों और गर्भवती महिलाओं तक के साथ घोर अत्याचार, अनाचार हुए। गुड फ्राइडे, रविवार की प्रेयर में प्रभु यीशु ने किसी को बद्दुआ नहीं दी, न शाप दिया। सभी गोरे अफसरों को प्रेम पूर्वक क्षमा कर विश्व को शांति का संदेश दिया। पूरे विश्व को प्रथम विश्व युद्ध तथा द्वितीय विश्व युद्ध के रूप में लाखों लोगों विभीषिका में झोंक उनकी मृत्यु का कारण बना यूरोप दुनिया को शांति का ज्ञान दे रहा है। रूस और यूक्रेन के बीच दो वर्षों से निरंतर प्रगाढ़ होता प्रेम करुणा, दया, शांति की नई इबारत गढ़ रहा है।