दर्जनों वीडियो सोशल मीडिया पर घूम रहे हैं जिसमें मुस्लिम मतदाता कह रहा है, इस बार मोदी सरकार। पहले दो चार रील्स को इग्नोर किया। फिर एक घोर मोदी विरोधी चैनल को किशनगंज के मुस्लिम मोहल्ले से रिपोर्ट करते हुए देखा। वह अपने यू ट्यूब पर एक मौलाना को दिखा रहा था, जो बता रहे थे कि वे मोदी भक्त हैं, वे मोदी को ही वोट देंगे।
एक दो वीडियो तक बात ठीक थी लेकिन इतने सारे वीडियो अचानक चुनाव से पहले सोशल मीडिया पर जब घुमाया गया तो बात आसानी से समझ आ गई कि सारे वीडियो स्वाभाविक नहीं हैं। इसके पीछे कोई खुराफाती षडयंत्रकारी दिमाग काम कर रहा है। असम के अंदर वर्ष 2016 के विधान सभा चुनाव के बाद हेमंत बिस्वा शर्मा ने पार्टी के अंदर से मुस्लिम मोर्चा खत्म कर दिया था। जिसे अल्पसंख्यकों के नाम पर चलाया जा रहा था क्योंकि मोर्चा के भाजपा कार्यकर्ताओं ने भी वहां बीजेपी को वोट नहीं दिया था।
मुसलमानों के बीच बीजेपी के वोटर हैं। इस बात से इंकार नहीं कर रहा लेकिन बहुसंख्यक मुसलमानों के लिए मेरी एक बात लिख लीजिए। उनके लिए इस्लाम मजहब नहीं बल्कि एक संगठन है। उनके निर्णय आसमानी किताब को पढ़कर नहीं लिए जा रहे। उनकी तरफ से निर्णय कोई और ले रहा है। वही निर्णय पटना से चलकर कटिहार, किशनगंज और भागलपुर, सहरसा होते हुए गोपालगंज—सिवान तक जा रहा है। बाकि राज्यों की भी ऐसी ही स्थिति होगी।
आज भी बहुसंख्यक हिन्दू भोला है। वह आदिवासी, दलित, पिछड़ा, जैन, सिक्ख, बौद्ध में बंटा हुआ है। इसे और भी टुकड़ों में बांटने की लगातार कोशिश हो रही है। यहां राहुल गांधी और पूरी कांग्रेस हिन्दूओं को टुकड़ों बांटने की बात करके भी जातिवादी नहीं होती, दूसरी तरफ बांग्लादेशी रोहिंग्या मुसलमानों के लिए बोलकर मोदी साम्प्रदायिक हो जाते हैं। यह कांग्रेस का नैरेटिव है। जो सत्ता से उसके दस साल बाहर रहने के बावजूद आज भी चल रहा है।
कांग्रेस ने 5 दशकों के अपने शासन में ‘निष्पक्ष बुद्धीजीवियों’ के नाम पर पत्रकार और प्रोफेसरों का एक बड़ा वर्ग खड़ा कर दिया, जो कांग्रेस के 10 में से कभी एक और कभी आधी नीतियों से अपनी असहमति जोर—शोर से दर्ज कराता था। इस तरह उन सब निष्पक्षों की निष्पक्षता सलामत रहती थी लेकिन आरएसएस और बीजेपी का नाम आते ही उसकी नफरत छुपी नहीं रहती थी। वह निष्पक्ष गिरोह इन संगठनों का नाम तक सुनने को तैयार नहीं था।
बीजेपी अपने दस साल के शासन में इस स्तर के धूर्त तैयार नहीं कर पाई। कांग्रेस की षडयंत्र की ललित कला में मास्टरी है। बीजेपी के विरोध में कभी—कभी बजरंग दल सड़क पर उतर भी आए तो कोई उन्हें गंभीरता से लेने को तैयार नहीं होता क्योंकि इस विरोध में ‘कांग्रेसी धूर्तता की ललित कला’ जो शामिल नहीं है। जो भी है, वह अभिधा में है। कांग्रेस ऐसा नहीं करती।
कांग्रेस ने मुसलमानों से मोदी को गाली दिलवा कर देख लिया। उसे लाभ नहीं मिला। इस बार उसके समर्थकों ने नया प्रयोग किया है। मुलसमानों से सोशल मीडिया पर मोदी की जमकर तारिफ करवा दी। मोदी इस चालाकी को खूब समझते हैं। 2002 से उन्होंने बड़े—बड़े षडयंत्र देखे हैं। जब गुजरात में बीजेपी और कांग्रेस के बीच चुनाव होता था। वहां कांग्रेस की ‘कार्यकर्ता’ तीस्ता जावेद सीतलवार— शबनम हाशमी ने मिलकर गुजरात में कांग्रेस के समर्थन में यात्रा नहीं निकाली थी। वे कह रहे थे कि साम्प्रदायिक शक्तियों को वोट ना दें। इससे समझ सकते हैं कि कांग्रेस राजनीति में किस स्तर की धूर्तता पर उतर सकती है? गौरतलब है कि दोनों कांग्रेसी ‘बहनों’ की पहचान निष्पक्ष सामाजिक कार्यकर्ता की थी। जबकि वे नाम सिर्फ कांग्रेस के लिए खुलकर काम कर रहे थे बल्कि कांग्रेस से लाभान्वित भी हो रहे थे।
इसी तरह बीजेपी से नफरत करने वाले संजीव भट्ट से लेकर मुकुल सिन्हा तक निष्पक्ष ही माने जाते थे। जैसे कांग्रेसी नेता राजीव शुक्ला के चैनल में अपना कॅरियर बनाने वाले अजीत अंजुम और कांग्रेसी चैनल एनडीटीवी के प्राइम टाइम एंकर व कांग्रेसी अग्रज के छोटे भाई रवीश कुमार भी निष्पक्ष यू ट्यूबर हैं।