लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान शुक्रवार को खत्म हो गया। पहले चरण की तरह दूसरे चरण में मतदान का प्रतिशत कम रहा। लगातार दूसरे चरण में मतदान प्रतिशत कम रहने से तमाम पार्टियां अपने-अपने दावे कर रहीं हैं। मतदान के कम प्रतिशत के क्या मायने हैं? चुनाव को लेकर मतदाताओं में उदासीनता क्यों है?
दूसरे चरण में शुक्रवार को 13 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की 88 सीटों पर मतदान हुए. हालांकि चुनाव को लेकर उत्साह शाम को आए वोटिंग प्रतिशत ने कम कर दिया। इस बार का वोटिंग ट्रेंड पहले चरण के चुनाव से भी खराब रहा। दूसरे चरण में महज 63.00 प्रतिशत मतदाताओं ने ही अपने मताधिकार का प्रयोग किया, जबकि 2019 में इन्हीं सीटों पर 70 फीसदी से ज्यादा लोगों ने बढ़-चढ़कर वोट किया था। कम होते इस वोटिंग प्रतिशत ने सभी राजनीतिक दलों का गणित बिगाड़ दिया है।
पहले चरण में 21 राज्यों की 102 लोकसभा सीटों पर 64 प्रतिशत वोट डाले गए थे। पिछले चुनाव में उन सीटों पर भी 70 प्रतिशत से ज्यादा मतदान हुए थे। यही हाल दूसरे चरण में भी रहा। किसी भी राज्य में मतदान का आंकड़ा 80 फीसदी को पार नहीं कर सका। वोटिंग कम होने से बढ़ी राजनीतिक दलों के साथ चुनाव आयोग की भी चिंता वोट करने के लिए लोगों के घरों से बाहर नहीं निकलने को लेकर राजनीतिक दलों को साथ-साथ चुनाव आयोग की भी चिंता बढ़ा दी है। खासकर हिंदी भाषी राज्यों में तो मतदाता वोटिंग को लेकर जैसे नीरस हो गए हैं। इससे पहले 2014 और 2019 में अच्छी-खासी तादाद में लोगों ने वोट किया था, लेकिन इस बार मतदाताओं में वो जोश देखने को नहीं मिल रहा है।
कहां कितने प्रतिशत मतदान?
छह निर्वाचन क्षेत्रों – मध्य प्रदेश में रीवा, बिहार में भागलपुर, उत्तर प्रदेश में मथुरा और गाजियाबाद, और कर्नाटक में बेंगलुरु दक्षिण और सेंट्रल में वोट डालने के लिए 50 प्रतिशत से कम मतदाता मतदान केंद्रों पर आए।
राज्य-वार, असम में सभी निर्वाचन क्षेत्रों में मतदान प्रतिशत में आठ प्रतिशत से लेकर 13.9 प्रतिशत तक की कमी देखी गई। बिहार के निर्वाचन क्षेत्रों में 8.23 प्रतिशत से 12 प्रतिशत की गिरावट देखी गई।
राजस्थान के पहले चरण के चुनावों में कम वोटिंग को लेकर बीजेपी पहले ही चिंता में है। अब राजपूतों की नाराजगी के फैक्टर ने पार्टी की परेशानी और बढ़ा दी है।
राजपूतों की नाराजगी की बात कोई और नहीं कर रहा,भागीदारी और जनसंख्या के हिसाब से टिकट मांग रहे हैं ।
राजपूत, त्यागी और सैनी वोट बैंक नाराज!
पश्चिमी यूपी में BJP के लिए तगड़ी है चुनौती लेकिन प्रधानमंत्री और मुख्य मंत्री का चेहरा,विकास और सुरक्षा प्रदान करना, ये बीजेपी के लिए कही ना कही बढ़त है। विपक्ष ने भी कमर कस ली है लेकिन वो भी वोट प्रतिशत नही बढ़ा पा रहे, मुहिम ,विज्ञापन, छुट्टी भी असर नहीं डाल पा रही है, चिंता का विषय है इलेक्शन कमिशन के लिए। लोकतंत्र में वोट सबसे बड़ा हथियार है, लेकिन अगर उदासीनता हो तो क्या कह सकते हैं।
बढ़ती गर्मी और खेती का मौसम भी है वजह
पूरे उत्तर भारत में इन दिनों मौसम का तापमान काफी बढ़ गया है. लू और गर्म हवाओं ने लोगों का जीवन अस्त-व्यस्त किया हुआ है। लोगों के वोट करने को लेकर घर से बाहर नहीं निकलने की ये भी एक वजह बताई जा रही है। वहीं चुनाव में विपक्षी पार्टियों की कम सक्रियता से भी कम वोटिंग प्रतिशत को जोड़कर देखा जा रहा है। वहीं आजकल के चुनाव में फिजिकल प्रचार की बजाय सोशल मीडिया का ज्यादा इस्तेमाल भी वोटिंग ट्रेंड को कम कर रहा है।
कम मतदान से कम मार्जिन वाली सीटों पर असर
मतदान प्रतिशत कम होने से कम मार्जिन वाली सीटों पर इसका सीधा असर पड़ता है। 2019 में 75 सीटों पर नजदीकी मुकाबला था। ऐसे में परिणाम किसी भी तरफ झुक सकता है। कुछ जानकारों का कहना है कि कम मतदान से सत्ताधारी दलों को फायदा हो सकता है, क्योंकि लोगों की सोच होती है कि सरकार अच्छा काम कर रही है और वो बदलाव नहीं चाहते। इसीलिए वो वोट के लिए घर से बाहर नहीं निकलते।
गुजरात, उत्तर प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश और राजस्थान में राजपूत बिरादरी को कम टिकट देने के कारण क्षत्रिय समाज में आक्रोश और उदासीनता, क्षत्रिय समाज बीजेपी का एक मात्र कोर वोटर रहा है लेकिन कम भागीदारी की वजह से क्षत्रिय समाज में रोष है।
गर्मी की वजह और आम जनता में इस बार वोट देने जाने की उदासीनता ज्यादा है, कई लोग सोच रहे हैं कि बीजेपी जीत रही है तो मेरे एक वोट ना देने से कोई फर्क नहीं पड़ता। कुछ जातियों का आक्रोश है। कुछ सोच रहे हैं कि कुछ फायदा तो होता नहीं वोट देने से। यह समय इन सारी बातों को सोचने का नहीं है। वोट दीजिए क्योंकि हमें अपनी सरकार चुननी है। वोट दीजिए क्योंकि ये आपका अधिकार हैं।