मुंबई। संजय लीला भंसाली का ड्रीम प्रोजेक्ट माना जा रहा था हीरा मंडी को। लोग इसकी तुलना पाकीजा और उमराव जान के साथ कर रहे थे। फिल्म का फर्स्ट लुक, टीजर और ट्रेलर भी काफी प्रॉमिसिंग नजर आ रहे थे।
संजय लीला भंसाली की फिल्मों की खासियत होती है उनका भव्य सेट। बाजीराव मस्तानी की शूटिंग के दौरान राजस्थान में हुए हादसे के बाद संजय लीला भंसाली इंडोर शूट करने पर ज़्यादा भरोसा करते हैं।
फिल्म का एसथेटिक वैसा ही है जैसा कि संजय लीला भंसाली की फिल्मों का होता है। विशाल, वैभवपूर्ण और बेहद नफीस।
कास्टिंग की बात करें तो यहां संजय लीला भंसाली चूक कर गए हैं। बाकी सारी अदाकाराऐं मनीषा कोइराला, सोनाक्षी सिन्हा, रिचा चड्ढा, अदिति राव हैदरी, आमना शरीफ फिल्म में जान डालती हैं वही शरमीन सहगल जो के रिश्ते में भंसाली की शायद भांजी लगती हैं कहीं फिट नहीं होती। इस बार नेपोटिज्म के शिकार हुए हैं संजय लीला भंसाली जिसके चलते उन्होंने अपने इस शाहकार को सान दिया है।
जबकि शरमीन सहगल का किरदार आलम के इर्द गिर्द ही पूरी कहानी घूमा करती है।
आलम और ताजदार की प्रेम कहानी में वह जादू मिसिंग है। जिसे देखकर धड़कन है रुक जाए। जहां बाकी हीरोइनों ने भाषा पर मेहनत की है और उसे दौर के अंदाज और लिहाज को ढंग से पकड़ा है। वही शरमीन सहगल भाषा के साथ स्ट्रगल करती हुई नजर आई है। वह अपनी मुंबईया टोन छोड़ नहीं पाईं हैं ।
कहानी के पुरुष किरदार शेखर सुमन फरदीन खान अध्ययन सुमन सिर्फ होने भर के लिए हैं। किसी ने अपनी छाप नहीं छोड़ी है।
वह कमजोर लाचार मर्द ज्यादा नजर आए हैं। अय्याशी करने के लिए भी एक तरह की मर्दानगी की जरूरत होती है जो कि उनमें नदारत थी।
सीरीज के तीन चार एपिसोड निकालने के बाद कहानी जंग ए आजादी की तरफ मुड़ जाती है। लेकिन आजादी के मतवालों के बीच भी कोई याद रखने वाला कैरक्टर गढ़ने में संजय नाकाम रहे हैं।
पूरी सीरीज को देखते हुए ऐसा लगता है कि जैसे संजय लीला भंसाली बेजान चीजों में परफेक्शन डालने में इतनी ज्यादा व्यस्त हो गए कि किरदारों को गढ़ने और उनकी परतों को डिफाइन करने का मौका ही नहीं मिला।
संगीत की बात करें तो इस पूरी सीरीज में बहुत गुंजाइश थी उम्दा संगीत डालने की लेकिन वहां भी कुछ खास कमाल नहीं दिखा पाए।
4, 6 घंटे लगाने के बावजूद जब सीरीज पूरी देख लेते हैं तब भी आपके जहां में कोई धुन ठहर नहीं पाती। बेहतर होता हीरामंडी के संगीत की जिम्मेदारी संजय किसी और के हाथों में देते।
संजय लीला भंसाली अब अपने आप को दोहरा रहे हैं। दर्शकों को वही दिखा रहे हैं जो दर्शक उनकी फिल्मों में लगातार देखते आ रहे हैं। उन्हें जरूरत है कुछ नया दिखाने की कुछ नया करने की।