मालती जोशी जी का जाना…

6-1-4.jpeg

– प्रशांत पोळ

मालती जोशी जी हिंदी मे भी उतनी ही सशक्तता से लिखती हैं, यह बात मुझे बहुत बाद मे पता चली. कुछ वर्षों पहले, प्रवास के दौरान मुझे उनका ‘समर्पण का सुख’ यह पुस्तक मिला. कहानी संग्रह था. बडा ही जबरदस्त..! पहले मुझे लगा, ये मालती जोशी जी कोई दुसरी होंगी. एक ही महिला, इतनी जिवंत शैली मै, इतनी सटीक और यथार्थ भाषा का प्रयोग करते हुए, मराठी – हिंदी, दोनों मे कैसी लिख लेती हैं? किंतू बाद मे पुष्टी हुई, दोनो भाषाओं मे, उसी सहजता से लिखने वाली मालती जोशी जी एक ही हैं..!

मालती जोशी जी को कब पहली बार पढा, ये अच्छे से स्मरण मे हैं. मैं इंजिनिअरिंग के व्दितीय वर्ष मे था. ‘किर्लोस्कर’ मासिक के सन १९८२ के दिपावली अंक मे मालती जोशी जी की एक दीर्घ कथा आई थी. मराठी मासिक था. स्वाभाविकतः कथा भी मराठी मे ही थी. उनके लेखनी का कमाल देखिए, आज बयालीस वर्षों के बाद भी, मुझे वह कथा पूरी याद हैं. अत्यंत प्रवाही शैली मे, संयुक्त परिवार पर आधारित वह कथा, गहरी छाप छोड रही थी. परिवार मे लडकी का विवाह होने जा रहा हैं. उसका बडा भाई विवाह की तैयारियों मे व्यस्त हैं, और इन भाई – बहनों के वार्तालाप से पता चलता हैं कि उनके कुटुंब मे रहने वाली स्त्री का उनके पिताजी से संबंध था..! सरल भाषा मे लिखी गई, बडी पेचीदा और जटिल कहानी थी यह.

इस जबरदस्त कहानी ने, कहानी की रोचक शैली ने, सशक्त कथावस्तू ने मुझे ऐसे जकड लिया, कि मालती जोशी जी की कहानी, जहां मुझे दिख जाती, मैं पढ लेता. मैं तो उन्हे मराठी कथा लेखिका ही समझता था. उन दिनों, वे मराठी मे बहुत कम लिखती थी. शायद तब तक उनका मराठी मे कथासंग्रह भी नही आया था.

वे बहुत सोशल नही थी. मराठी साहित्य संमेलन मे उन्हे आमंत्रित किया जाता था. किंतू वे किसी संमेलन मे सम्मिलित हुई, ऐसा मेरी जानकारी मे तो नही. *किंतू आश्चर्य ये, कि व्यक्तिगत जीवन सिमटा हुआ होने के बाद भी, उनके लेखनी का कॅनव्हास विशाल था. उनके विषयों मे विविधता रहती थी. मराठी मे जब अधिकांश मराठी स्त्री लेखिका, अपने छोटे से परिवार के इर्द-गिर्द ही अपनी लेखनी का विचरण करती थी, तब मालती जोशी जी ने पारिवारिक मूल्यों को केंद्रीत रखते हुए, आधुनिक परिवार का, आधुनिक जीवनशैली से निर्माण हुई समस्याओं का, युवा विचारधारा का, बडा प्रभावी चित्रण किया हैं. यह अपने आप मे अद्भुत हैं.*

नोकरी लगने के बाद जब मैं पुस्तकों का संग्रह करने लगा, तो मालती जोशी जी के कथासंग्रह, मेरे पुस्तकालय की शान बढाने लगे.

मालती जोशी जी हिंदी मे भी उतनी ही सशक्तता से लिखती हैं, यह बात मुझे बहुत बाद मे पता चली. कुछ वर्षों पहले, प्रवास के दौरान मुझे उनका ‘समर्पण का सुख’ यह पुस्तक मिला. कहानी संग्रह था. बडा ही जबरदस्त..! पहले मुझे लगा, ये मालती जोशी जी कोई दुसरी होंगी. एक ही महिला, इतनी जिवंत शैली मै, इतनी सटीक और यथार्थ भाषा का प्रयोग करते हुए, मराठी – हिंदी, दोनों मे कैसी लिख लेती हैं? किंतू बाद मे पुष्टी हुई, दोनो भाषाओं मे, उसी सहजता से लिखने वाली मालती जोशी जी एक ही हैं..!

उनके हिंदी भाषा मे लिखे कहानी संग्रह भी मेरे पुस्तकालय मे हैं. दुर्भाग्य से उनका कोई उपन्यास मै नही पढ सका. सन २०१८ मे जब उन्हे ‘पद्मश्री’ उपाधी से सम्मानित किया गया, तब लगा कि हिंदी – मराठी भाषा को उचित सम्मान मिला हैं.

उनके सुपुत्र, डाॅ. सच्चिदानंद जोशी जी को मै कई वर्षों से जानता हूं. कई बैठकों मे उनसे भेंट होती रहती हैं. बातचीत – गपशप होती हैं. किंतू मैं अभागा, तीन – चार महिने पहले तक, मेरी जानकारी मे नही था, कि सच्चिदानंद जी, मालती जोशी जी के सुपुत्र हैं. मेरी पसंदीदा लेखिका को मिलने की मेरी बहुत इच्छा थी. मिलकर उनसे उनकी हिंदी – मराठी कहानियों के बारे मे बाते करने की इच्छा थी. उनको इन कहानियों का ‘जर्म’ कहां से मिलता हैं, यह भी पूंछने की भी इच्छा थी. कुछ वर्ष पहले, भोपाल मे उनसे मिलने का प्रयास भी किया था, किंतू संभव न हो सका.

परसो (१५ मई को) उनके जाने का दु:खद समाचार पढा और बडा खराब लगा. हिंदी – मराठी साहित्य के लिए उनके जैसे सशक्त हस्ताक्षर का जाना, यह अपूरणीय क्षति हैं. कथा लेखन को उन्होने नया आयाम दिया था. नई ताकत दी थी.

पद्मश्री मालती जोशी जी को मेरी भावपूर्ण श्रध्दांजली.
ॐ शांति.

Share this post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

scroll to top