यह बांग्लादेश की आसुरी शक्तियों को पहचानने का समय है

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समीर कौशिक

कुछ वर्ष पूर्व समुद्र में बहकर आई एक बच्ची की तस्वीर पर सारी दुनिया में हाहाकार मचा था परन्तु आज एक देश में महिलाओं और बच्चों की रक्त रंजित तस्वीरों की बाढ़ के बाद भी मानों मानवता चित्कार रही है और सेकुलरवाद से लेकर ह्यूमन राइट तक के सारे चैम्पियन बेशर्म हंसी हंस रहे हैं कि जो भी हुआ वहां, थोड़ा बहुत हुआ है

वर्तमान समय में जो बांग्लादेश में हुआ है इस से बुरा कुछ और किसी लोकतांत्रिक देश के लिए हो नही सकता, परन्तु चिंतन करना होगा कि क्या ये ही लोकतंत्र की नियति है या लोकतंत्र को कट्टरतन्त्र बनाने का परिणाम! असल में जहां भी, जिस देश में इस्लामिक रियासतें हैं, इस्लामिक सरकारें हैं, इस्लामिक लोकतंत्र हैं, वहां तख्ता पलट और सैनिक शासन ही उनकी किस्मत है, क्योंकि हम पहले भी कई देशों के उदाहरण देख चुके हैं।

सीरिया , इराक पाकिस्तान सब जगह हालात एक जैसे ही हैं। हाल ही में वर्षों के खुनी संघर्ष के बाद अफगानिस्तान में भी इस्लामिक चरमपंथियों ने सरकार पर कब्ज़ा किया है। बंग बन्धु का बांग्लादेश भी अथक प्रयासों के बाद उन्हीं कट्टरपंथी आतंकियों के हाथों में जाता दिख रहा है। ये कोई छात्र आन्दोलन नही, अब ये सीधा जिहादी लश्कर बन चुका है। जिसमें हर कोई सम्मिलित है। पूरी उम्मत जन्नत के लिए जमीन को जहन्नुम बना रही है। मांगे पूरी होने उपरांत भी आंदोलन किस बात का?

चिंतनीय है कि एक प्रधानमंत्री को देश से भागने पर शरणार्थियों सा जीवन यापन करने पर विवश करने का नाम क्या कोई छात्र आंदोनल हो सकता है? हमारे विचार के अतिरिक्त अब कोई दूसरा ना रहे इसी का परिणाम है कि आज हिंदुओ को किस प्रकार चुन चुन कर वहां मारा जा रहा है।

बंग बन्धु भुमि के नाम से विख्यात भूखंड आज का वो नया बंग्लादेश है, जिसकी महिलाओं की पाकिस्तानी पंजाबी पठानों पश्तूनों अफगानों से अस्मिता रक्षा हेतु भारत की एक महिला प्रधानमंत्री ने ही अपने देश के रणबांकुरों को न्यौछावर किया था। जिस प्रकार की वहां घटना देखी गई की महिलाएं ही वहां हिन्दू महिलाओं को मार रहीं हैं, बांध कर जला रहीं हैं तो अब आगे तो किसी से क्या ही संवेदनशीलता की अपेक्षा की जाए?

स्वंय को बहुत रोकते हुए भी मैं ये सब पर लिखने को, अपने वैचारिक आवेश को लिपिबद्ध करने से रोक नहीं पा रहा हूँ। ये दृश्य देख कर तो मानो रावण की अशोक वाटिका का जीवंत चित्रण खींच दिया गया है कि कैसे मिथिलेश कुमारी को राक्षसियों द्वारा प्रताड़ित किया जा रहा था। आज प्रश्न होना चाहिए कि कहां गया इनका ममत्व, किस विष ने इनके वात्सल्य का वमन कर कर लिया? इसमें कौन से छात्र आंदोनल के आयाम स्थापित हो रहे हैं? मंशा स्पष्ट है कि ये अब्राह्मिक विचारधारा अब अपने चरम आतंकी आसुरी स्वरूप को अर्जित कर चुकी है। अब ये आतकंवाद से ऊपर उठकर सीधा असुरवाद हो चुका है।

अब्राह्मिक माने क्या? अर्थात जो ब्रह्म का विरोधी है, महिला विरोधी है, बच्चों के भी विरोधी हैं क्योंकि हमारी तो युद्धावलियों में भी वर्णन मिलेंगे की महिलाओं और बच्चों पर किसी भी परिस्थिति में आक्रमण नही करना और हिन्दू पदपादशाही संस्थापक प्रातः वंदनीय छत्रपति शिवाजी जी महाराज ने ऐसा अपने व्यवहार से समाज मे करके दिखाया है। अन्य भी बहुत से हिन्दू राजाओं के नाम गिनाए जा सकते हैं, परंतु जहां जिस समाज राष्ट्र या भूखण्ड पर महिलाएं बच्चें भी आक्रमणों का शिकार होने लगे सीधा सीधा समझ लिया जाना चाहिए की अब वहां का समाज आसुरी (शैतानी) प्रवृति को पूर्णतः प्राप्त हो चुका है।

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