दशकों के सामाजिक जीवन के बाद भी कितने अकेले

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अवधेश कुमार

दिल्ली। समाज का बहुत बुरा समय है। मेरा अपना स्वयं का और अनेक जानने वालों का साढ़े तीन – चार वर्षों का अनुभव है कि आप छटपटा कर मर जाइए लेकिन कोई एक आदमी इतना तक सोचने को तैयार नहीं है कि कुछ समय लगा कर देखा जाए कि उनकी समस्या क्या है। इनमें वो सब लोग शामिल हैं,  जिनके साथ आपने लंबा समय बिताया, जिनके साथ काम किया , जिनके लिए भी काम किया । जब कोई देखेगा ही नहीं तो किसी का सहयोग नहीं मिल सकता है। ऐसे लोग जो ठीक से खड़े हो गए तो स्वयं सहयोग करने वाले अनेक लोगों की मदद कर सकते हैं उनके लिए भी कोई समय निकालना या उनकी स्थिति समझने को तैयार नहीं है। कोई आदमी बीमार है या अन्य परेशानियों में है और किसी को फोन कर रहा है तो उधर से जवाब मिल रहा है आप आराम करिए।

एक बीमार व्यक्ति जो बेड पर है उसे यह शब्द कितना कचोटता होगा इसकी कल्पना करने वाले नहीं है। आप अनेक लोगों के जीवन में यही अनुभव आया होगा कि ज्यादातर लोग आप आपको कहेंगे कि आराम करिए, जबकि आपको उनके सहयोग की आवश्यकता हैं आपके इस शब्द से कोई व्यक्ति आत्महत्या तक कर सकता है । यह एक तकिया कलाम है और बिना सोचे – समझे बोल दिया जाता है । उसके आराम करने की स्थिति है या नहीं यह भी तो देखो। कुछ लोग आपको कहेंगे कि मेरे पास आ जाइए सब ठीक हो जाएगा। वह नहीं कहेंगे कि मैं आपके पास आ रहा हूं, बातचीत करता हूं, देखते हैं क्या रास्ता निकलता है। मुझे तो इस धरती पर एक आदमी नहीं मिला जो कभी घंटा भर भी मेरे निजी जीवन को जानने की कोशिश करे। मेरे अलावा एक आदमी नहीं जो मेरी शारीरिक समस्याओं , व्यक्तिगत समस्याओं या अन्य चीजों को जानने वाला है। जितना संभव था इन सालों में मैंने कोशिश की कि एक दो परिपक्व लोग कम से कम मेरे व्यक्तिगत जीवन से जुड़े रहें, जिन्हें पता रहे कि मेरे स्वास्थ्य की समस्या क्या है या व्यक्तिगत जीवन में क्या स्थिति है। इतने के लिए भी मैं कोई एक आदमी तलाश नहीं कर सका। ऐसा नहीं है कि मैंने लोगों से बात करने की कोशिश नहीं की होगी। अत्यंत बुरा अनुभव रहा। कई ऐसे हैं जो अपने जीवन में कठिनाइयों में है और उनमें भी मैं काफी हद तक मदद करने, साथ देने की स्थिति में रहा और इसका प्रस्ताव भी दिया। निश्चित रूप से व्यक्ति स्वयं अपने लिए जिम्मेवार है लेकिन जीवन में कोई अकेले सब कुछ नहीं कर सकता और यह हर व्यक्ति पर लागू होता है। ज्यादातर लोग परेशान हैं लेकिन दूसरे की परेशानी के लिए थोड़ा समय निकालने तक की सोच नहीं दिखाई दे रही है। मेरा व्यक्तिगत अनुभव इतना भयावह है जिसका  मैं वर्णन भी नहीं कर सकता।

दूर से मेरे जानने वाले को लगता होगा कि काफी लोग मुझसे जुड़े होंगे और मेरा काम सब हो जाता होगा। सच इसके विपरीत है। आज एक व्यक्ति मुझे दिखाई नहीं पड़ता जिसे मैं किसी इमरजेंसी में फोन करूं। यही सच है। अकेले होने के कारण जो कुछ भी मैं करना चाहता था वह तो छोड़िए जो न्यूनतम कर सकता था वह भी नहीं कर पाया और न अपने को ठीक से खड़ा कर पाया। मैंने यही माना है कि जब मुझे जानने वाले लाखों की संख्या में लोग हैं और एक व्यक्ति व्यक्तिगत जीवन से जुड़ने वाला नहीं  , जबकि मैं स्वयं भी लोगों को अनेक स्तर से पर साथ देने की स्थिति में हूं तो फिर यही शायद नियति है और इसके अनुसार जो भी अपनी दशा-  दुर्दशा है उसमें जितना संभव हो काम करो। लोगों को सुबह से रात तक मेरी सक्रियता दिखाई देती है वह केवल इस कारण है कि मैंने संकल्प लिया की काम तो देश और धर्म के लिए ही करना है व्यवस्था हो नहीं हो, स्वास्थ्य साथ दे, न दे, जितना संभव है उतना ही उतना अवश्य करें‌‌ । हां, इसमें मैंने इतना ध्यान रखा कि जो व्यवहार मेरे साथ हो रहा है वह मैं किसी दूसरे के साथ न करूं। जिस स्थिति में रहूं , किसी के संकट में ,समस्या में जितना संभव है अपनी ओर से अवश्य करूं।

 फेसबुक या अन्य सोशल मीडिया पर लिखने का बहुत ज्यादा किसी को लाभ नहीं होता। बिना सोचे-  समझे कुछ भी लोग उत्तर दे देंगे। लेकिन फिर भी लगा कि साथियों को सचेत करने की दृष्टि से यह लिखा जाए। मैं कोई निराशा और हताश होकर नहीं लिख रहा हूं। निराश और हताश होता तो अनेक स्वस्थ और सभी प्रकार की व्यवस्थाओं वाले लोगों से ज्यादा काम इन वर्षों में किया है और आज भी कर रहा हूं। यह भी परमात्मा की कृपा है। किंतु सच यह है कि एक आदमी मेरे व्यक्तिगत जीवन में साथ नहीं है। मेरा सभी से आग्रह है कि थोड़ा ठहरकर सोचिए और आसपास देखिए। अनेक लोग निरर्थक समय गंवा देते हैं और अपना भी अकल्याण करते हैं। जब स्वयं परेशानी में आते हैं तो छटपटाना लगते हैं और कहते हैं कि मैंने उनके लिए यह किया उनके लिए यह किया जबकि इसमें बहुत कम सच होता है। आप जब तक अकेले हो तो सारी परेशानियां है और जैसे कुछ लोगों के साथ हो गए तो आपकी परेशानी भी दूर होने लगती है। थोड़ा-थोड़ा समय निकाल कर सब एक दूसरे का साथ देने लगें तो अनेक लोग आत्महत्या से, जीवन में निराश होकर बिखर जाने से या अनेक प्रतिभा नष्ट हो जाने से बचाए जा सकते हैं। हर व्यक्ति के अंदर कुछ न कुछ क्षमता व योग्यता है। वह किसी अवसर पर आपके काम आ सकता है।

मेरी कोशिश आज भी जारी है अपने लिए और दूसरे के लिए भी।

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