बांग्लादेश में हिन्दूओं और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों पर हुए अत्याचारों को रेखांकित करती एक रिपोर्ट का विमोचन

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दिल्ली। दिनांक 4 सितंबर 2024 को सेंटर फॉर डेमोक्रेसी, प्लुरलिज़्म एंड ह्यूमन राइट्स के द्वारा आयोजित कार्यक्रम, कॉन्स्टिट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया, नई दिल्ली में आयोजित किया गया। कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य बांग्लादेश में अल्पसंख्यक वर्ग पर हो रहे जघन्य अत्याचारों को रेखांकित करती हुई रिपोर्ट का विमोचन रहा।

मुख्य अतिथि श्री स्वपन दासगुप्ता (पूर्व सांसद एवं विशिष्ठ पत्रकार), एवं सम्मानित अतिथियों में श्री दीप हलदर (बीइंग हिंदू इन बांग्लादेश के लेखक और पत्रकार) व श्री अभिजीत मजूमदार (प्रख्यात पत्रकार एवं लेखक) कार्यक्रम में उपस्थित रहे।

सेंटर फॉर डेमोक्रेसी, प्लुरलिज़्म और ह्यूमन राइट्स (CDPHR) एक ऐसा संगठन है जो व्यापक रूप से मानवाधिकारों के क्षेत्र में कार्यरत है। जिनका आदर्श प्रत्येक व्यक्ति के लिए समानता, प्रतिष्ठा, एवं न्याय को स्थापित करना है। लोकतंत्र और बहुलतावाद के मूल्यों की सहायता से समानता, प्रतिष्ठा, और न्याय के लिए अनुकूल वातावरण के निर्माण हेतु यह संगठन प्रतिबद्ध हैं। यह संगठन एक ऐसे विश्व की संकल्पना करता है, जो लोकतांत्रिक जीवन एवं परंपरा के बहुलवादी तरीकों पर आधारित हो। CDPHR शिक्षाविदों, वकीलों, न्यायाधीशों, रिपोर्टरों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, पत्रकारों, और स्वतंत्र शोधकर्ताओं से मिलकर बना है, जो अपने कार्यक्षेत्र में विशिष्ट दक्षता रखते हैं।

CDPHR की रिपोर्ट का सारांश: बांग्लादेश में अपहृत छात्र विरोध से सत्ता परिवर्तन और परिवर्तन पश्चात अल्पसंख्यक विध्वंश

बांग्लादेश में वर्तमान राजनीतिक संकट

सेंटर फॉर डेमोक्रेसी, प्लूरलिज्म और ह्यूमन राइट्स (CDPHR) ने बांग्लादेश में चल रहे राजनीतिक संकट पर अपनी नवीनतम रिपोर्ट जारी की है। इस संकट की शुरुआत 5 जून, 2024 को कोटा मुद्दे पर महीनों तक चले विरोध प्रदर्शनों के साथ हुई। इन प्रदर्शनों ने कालांतर में एक बड़े राजनीतिक आंदोलन का रूप ले लिया, जिसमें धार्मिक अल्पसंख्यकों पर व्यापक विध्वंश एवं सड़कों पर उमड़ते भीड़ तंत्र का उदय हुआ।

अल्पसंख्यकों पर आघात और भीड़ तंत्र का उदय

शेख हसीना के देश छोड़कर चले जाने के बाद, बांग्लादेश में हिंदू समुदाय पर सुनियोजित और व्यापक हमले शुरू हो गए। 5 अगस्त को, 27 जिलों में अल्पसंख्यकों के घरों और व्यवसायों पर हमले और लूटपाट की पुष्टि हुई। 8 अगस्त तक, 52 जिलों में 205 से अधिक हिंदू-विरोधी हमले हुए। इसके अलावा, 49 शिक्षकों को नौकरी छोड़ने के लिए मजबूर किया गया।

मीडिया प्रोपेगेंडा एवं अनुचित नैरेटिव

बीएनपी और अन्य विरोधी दलों ने इन हमलों को “व्यक्तिगत घटनाएँ” कहकर उनका खंडन किया। इस प्रचार अभियान में वैश्विक मीडिया संगठनों ने भी अपनी भागीदारी निभाई, जिन्होंने इन हमलों की धार्मिक प्रकृति का खण्डन किया। परंतु, बांग्लादेशी अल्पसंख्यक वर्ग के कार्यकर्ताओं ने इन हमलों की व्यापकता एवं धार्मिक प्रकृति पर आधारित होने पर सत्यापन दिया।

अंतरिम सरकार और धार्मिक अल्पसंख्यकों का भविष्य

इस रिपोर्ट में अंतरिम सरकार और इस्लामिस्ट पार्टियों के गठबंधन पर चिंता की अभिव्यक्ति की गई है। 1951 से 2022 के बीच, बांग्लादेश में हिंदुओं की संख्या 22 प्रतिशत से घटकर 8 प्रतिशत रह गई है, और इस रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान राजनीतिक स्थिति इस गिरावट को अत्यधिक तीव्रता प्रदान करेगी।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पत्रकार एवं पूर्व सांसद स्वपन दासगुप्ता ने अपने वक्तव्य के माध्यम से सभी को अवगत कराया।

कार्यक्रम के सम्मानित अतिथि बीइंग हिंदू इन बांग्लादेश के लेखक और पत्रकार दीप हलदर ने अपने संबोधन में बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर किए जाने वाले अत्याचारों की कड़ी निन्दा करते हुए कहा कि जो सुरक्षा शेख़ हसीना ने बांग्लादेश में हिंदुओं को प्रदान की थी, वह अब समाप्त हो चुकी है। उनके शासनकाल में भी हिंदुओं पर हमले हुए थे और आज उन अल्पसंख्यक हिंदू परिवारों की सहायता के लिए शायद ही कोई बचा है। मोहम्मद यूनुस के अपने व्याख्यानों में सकारात्मकता दिखाने के प्रयास किए हैं, लेकिन ज़मीनी हकीकत इससे बहुत अलग है। वैश्विक समुदायों को बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय पर हो रहे अत्याचारों का पर्यवेक्षण करते हुए उनकी परिस्थितियों में सुधार हेतु अग्रसर होना चाहिए।

कार्यक्रम संयोजिका एवं अध्यक्ष, CDPHR डॉ. प्रेरणा मल्होत्रा ने अपने व्याख्यान में यह कहा कि बांग्लादेश में इस्लामीकरण इतना बढ़ चुका है कि संपूर्ण देश एक ज्वालामुखी के ऊपर बैठा सा प्रतीत हो रहा है, जिसमे किसी भी समय विस्फोट हो सकता है। यह बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों के लिए अत्यधिक घातक साबित होगा। पिछले दशकों में बहुत कुछ पहले ही चला गया है, और वर्तमान परिस्थिति से यह स्पष्ट है कि बांग्लादेश अल्पसंख्यक हिंदुओं, बौद्धों, जैनों, सिक्खों, ईसाइयों एवं अहमदिया मुसलमानों के जीवन यापन हेतु सर्वथा अनुपयुक्त है। विभिन्न राष्ट्रों एवं अंतर्राष्ट्रीय संगठनों व संस्थाओं के द्वारा यदि कोई सुदृढ़ कदम नहीं उठाया गया तो आने वाले समय में हिंदू समेत सभी अल्पसंख्यक बांग्लादेश से विलुप्त हो जायेंगे ।

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