राष्ट्र निर्माण में हिंदी की भूमिका

navbharat-times-73186919.jpg-1.webp

भारत 1947 से पूर्व भी था और वर्तमान में भी है। अंतर केवल संप्रभुता का है एक राज्य के लिए चार चीजों का होना अनिवार्य है – भूखंड, उस पर निवास करने वाले जन(जनसंख्या) शासन अर्थात व्यवस्था स्थापित करने के लिए सरकार और संप्रभुता अर्थात स्वयं निर्णय लेने की स्वतंत्रता।

राज्य की एक निश्चित सीमाएं होती हैं। शासन करने के लिए एक तंत्र होता है नियम- कानून होते हैं। राष्ट्र सीमाओं के बंधन से भी आगे होता है। 1947 से पहले भी भारत राष्ट्र था,भारत का राजनीतिक विभाजन हुआ ।राष्ट्र एक सांस्कृतिक, भावनात्मक इकाई है , राज्य एक राजनीतिक इकाई है। एक राज्य में अनेक राष्ट्रीयताओं के नागरिक रह सकते हैं परंतु यह आवश्यक नहीं की उनकी उस राज्य में श्रद्धा, विश्वास हो।

राष्ट्र की पहचान उसकी भाषा, भूषा(वेश), संस्कृति से होती है। अंग्रेजी पराधीनता से मुक्ति दिलाने में ये तीनों हथियार बने। हिंदी ने अंग्रेजों से मुक्ति दिलाने में अहम भूमिका निभाई परंतु अंग्रेजियत से आज भी संघर्ष जारी है।
14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने हिंदी को भारत संघ की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया था। हिंदी तुलनात्मक रुप से सरल एवं सहज है। व्याकरण की दृष्टि से भी हिंदी अत्यंत समृद्ध है। हिंदी जीवन मूल्यों, संस्कारों एवं संस्कृतियों की वाहक है। दुनिया के 100 से अधिक देशों में हिंदी का प्रयोग होता है। हिंदी विश्व की तीसरी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा बन चुकी है।

स्मरण रहे भाषा वही जीवित रहती है जिसका प्रयोग आम जन उत्साहपूर्वक सहजता से करता है। इस कसौटी पर हिंदी खरी उतरती है। हिंदी मौलिक चिंतन का सृजन करती है। भारत को एक राष्ट्र के रूप में संगठित करने में हिंदी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। भारतीय रेलवे, अखिल भारतीय सेवाएं, डाक व्यवस्था, भारतीय सेनाएं, फिल्म जगत, मीडिया आदि हिंदी के प्रयोग तथा प्रचार प्रसार में महत्ती भूमिका निभा रहे हैं।

हिंदी की प्रकृति राष्ट्र की एकता की परिचायक है। भारत के विभिन्न प्रांतो में रहने वाले विभिन्न भाषा-भाषी सप्रयास हिंदी बोलने का प्रयत्न करते हैं। राजनीतिक, व्यवसायिक एवं आध्यात्मिक सफलता के लिए हिंदी का ज्ञान नितांत आवश्यक है। बहु राष्ट्रीय कंपनियाँ भी अपने वरिष्ठ अधिकारियों को हिंदी भाषा का प्रशिक्षण देती हैं।

स्वामी दयानंद सरस्वती ने कहा था, “हिंदी के द्वारा सारे भारत को एक सूत्र में पिरोया जा सकता है।” 1828 में ब्रह्म समाज के संस्थापक राजा राममोहन राय ने कहा था, “समग्र देश की एकता के लिए हिंदी पढ़ना, लिखना सीखना अनिवार्य होना चाहिए।” 1875 में केशव चंद्र सेन ने भारतीय एकता के लिए एक भाषा के रूप में हिंदी के व्यवहार पर जोर दिया था। भारतीय लोक जीवन की एकात्मता तथा उदात्तता हिंदी से ही संभव है। आइए हिंदी दिवस पर हिंदी के प्रयोग, प्रचार- प्रसार के लिए कटिबद्ध हों। अपने दैनिक व्यवहार में अधिकाधिक हिंदी का प्रयोग करें। पत्राचार, हस्ताक्षर, नाम पट्टिका, संदेश, लेखन, बातचीत आदि में हिंदी के प्रयोग को प्राथमिकता दें।

Share this post

संजय स्वामी

संजय स्वामी

लेखक शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय संयोजक (पर्यावरण शिक्षा) हैं

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

scroll to top