ताज में पर्यटकों की दैनिक आवाजाही को सीमित करने का समय आ गया है

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Caption: Jagran

तीन दशकों से चल रही न्यायिक पहल, और दर्जनों प्रतिबंधों, निर्देशों के बाबजूद, आगरा में प्रदूषण के स्तर में, हरित क्षेत्र के विस्तार में, यमुना नदी की दुर्दशा में विशेष फर्क देखने को नहीं मिल रहा है।

ताजमहल के लिए निरंतर बढ़ रहे पर्यावरणीय खतरे, कुछ प्राकृतिक, कुछ मानव जनित, वास्तव में चिंताजनक हैं।

सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप और पर्यावरण वकील एमसी मेहता द्वारा जनहित याचिका के बाद में शुरू किए गए प्रयासों के चलते हुए भी स्थिति गंभीर बनी हुई है।
विभिन्न स्रोतों और

वाहनों से निकलने वाले उत्सर्जन से लगातार प्रदूषण इस वैश्विक विरासत स्थल की संरचनात्मक अखंडता और सौंदर्य के लिए एक बड़ा खतरा बना हुआ है।
वायु प्रदूषण के कारण ताजमहल की रौनक या धवल शान प्रभावित हुई है जो न केवल इसकी भौतिक संरचना के लिए, बल्कि पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास के बड़े मुद्दों के लिए भी चिंता का विषय है। हालातों को देखते हुए विनियमों के सख्त प्रवर्तन, स्वच्छ प्रौद्योगिकियों के कार्यान्वयन और जन जागरूकता अभियानों की आवश्यकता स्पष्ट है। ताजमहल को संरक्षित करना केवल एक ऐतिहासिक स्मारक की रक्षा करना नहीं है, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के लिए हमारे पर्यावरण और सांस्कृतिक विरासत की रक्षा करना भी है।

पर्यावरणविद देवाशीष भट्टाचार्य कहते हैं, “1993 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद से, जिसके कारण कई प्रतिबंध लगे, यह सवाल अभी भी पूछा जा रहा है कि क्या 17वीं सदी का यह प्रेम का स्मारक पर्यावरण प्रदूषण के खतरों से पूरी तरह सुरक्षित हो गया है। आगरा के उद्योगों को बंद करने के लिए मजबूर किया गया, विस्तार पर रोक लगा दी गई और नई परियोजनाओं को रोक दिया गया। एक संपन्न औद्योगिक शहर में आर्थिक गतिविधियों को अचानक नियंत्रित या प्रतिबंधित कर दिया गया, जिसके परिणामस्वरूप युवा प्रतिभाओं का बड़े पैमाने पर पलायन हुआ।”
चौंकानेवाली बात यह है कि आगरा के समग्र प्रदूषण परिदृश्य में बेहतरी के लिए कोई नाटकीय बदलाव अभी तक दिखाई नहीं देता है।
आगरा में हरित कार्यकर्ता और संरक्षणवादियों का मानना ​​है कि स्थितियाँ लगभग वैसी ही हैं जैसी कि प्रदूषण के खिलाफ जंग शुरू होने से पहले थीं। शहर के वायु और जल प्रदूषण के स्तर में कोई बड़ा बदलाव नहीं हुआ है।

हजारों करोड़ खर्च हो गए ताज ट्रेपीजियम जोन में, फिर भी भारत के सबसे प्रतिष्ठित और प्रिय स्मारकों में से एक ताजमहल अपने संरक्षण के लिए खतरों से जूझता दिख रहा है।
हरित कार्यकर्ता पद्मिनी अय्यर कहती हैं कि आसपास के इलाकों में पारिस्थितिकी तंत्र का क्षरण, पड़ोसी इलाकों में शहरी भीड़भाड़, अतिक्रमण और उदासीनता का सामान्य रवैया, सभी आगरा की सांस्कृतिक धरोहरों पर विनाशकारी प्रभाव डाल रहे हैं। टीटीजेड में आने वाले अन्य शहर, मथुरा, वृंदावन, फिरोजाबाद, सभी की कहानी एक जैसी है, जहां नागरिक सुविधाएं, ट्रैफिक मैनेजमेंट, ग्रीन एरिया विस्तार, जहरीली गैसों का नियंत्रण , वायु प्रदूषण एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि प्रदूषण फैलाने वाले बचे हुए उद्योग और अव्यवस्थित यातायात दबाव में कोई बदलाव नहीं दिख रहा है।

दो नए एक्सप्रेसवे और पुराने हाईवेज के ज़रिए हज़ारों की संख्या में वाहनों की आवाजाही बढ़ने से स्मारकों के रख रखाव पर कुछ तो नेगेटिव असर पड़ता ही है। राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को वायु प्रदूषण को कम करने के लिए कड़े उपाय लागू करने चाहिए थे, जिसमें सख्त उत्सर्जन नियंत्रण लागू करना भी शामिल था, शहर में शोर प्रदूषण के मानकों को लागू करने का काम कभी शुरू हो नहीं हुआ। दुख की बात है कि प्रदूषण नियंत्रण विभाग का प्रदर्शन खराब इतना खराब है कि इसकी जरूरत पर ही सवाल उठ रहे हैं।

सबसे बड़ी चिंता यमुना नदी को लेकर है। रिवर कनेक्ट अभियान के कार्यकर्ता चतुर्भुज तिवारी, राहुल राज कहते हैं, “प्रदूषित यमुना नदी, जो ताजमहल के बगल में बहती है, कई तरह से स्मारक के लिए खतरा पैदा करती है। मच्छरों, कीड़ों और जीवाणुओं की प्रजनन कॉलोनियाँ ताजमहल की सतह को नुकसान पहुँचाती हैं। सूखी प्रदूषित धूल स्मारक से टकराती है और एसपीएम के स्तर को बढ़ाती है। नदी के तल को साफ करने, पानी के प्रवाह को बढ़ाने और डाउनस्ट्रीम बैराज बनाने की लगातार माँग की गई है। लेकिन अभी तक नदी को साफ करने और आगे के क्षरण को रोकने के लिए कोई प्रगति नहीं हुई है।”

पर्यटन सहित मानवीय गतिविधियाँ भी एक महत्वपूर्ण खतरा पैदा करती हैं। सालाना सात से आठ मिलियन से अधिक पर्यटकों के आने के साथ, दैनिक आगंतुकों को सीमित करने, समयबद्ध प्रवेश टिकटों को लागू करने और ऑफ-पीक विज़िट अवधि को बढ़ावा देने जैसे उपाय मानव अधिभार को कम करने में मदद कर सकते हैं।

जैव विविधता विशेषज्ञ डॉ मुकुल पंड्या के अनुसार, विरासत संरक्षण और पर्यटन, आगंतुकों के बीच ताजमहल की सुरक्षा के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ा सकती है।

आगरा हेरिटेज ग्रुप के गोपाल सिंह का सुझाव है कि स्मारक की स्थिति की नियमित निगरानी और लेजर सफाई तथा गैर-आक्रामक मरम्मत जैसी उन्नत संरक्षण तकनीकों का उपयोग, गिरावट के संकेतों का पता लगाने और ताजमहल को इसकी मूल भव्यता में वापस लाने के लिए आवश्यक है।

लोक स्वर के अध्यक्ष राजीव गुप्ता का मानना ​​है कि भविष्य की पीढ़ियों के लिए ताजमहल के विरासत मूल्य की सुरक्षा के लिए सरकारी अधिकारियों, संरक्षण संगठनों और स्थानीय समुदायों के बीच समन्वित प्रयास महत्वपूर्ण हैं। आगरा के संरक्षणवादियों का कहना है कि पर्यावरण, मानवीय और संरचनात्मक खतरों को संबोधित करने वाली एक व्यापक संरक्षण प्रबंधन योजना को लागू करना आवश्यक है। उन्हें लगता है कि ताजमहल में प्रतिदिन आने वाले आगंतुकों की संख्या को सीमित करने का समय आ गया है। ब्रज मंडल हेरिटेज कंजर्वेशन सोसाइटी के प्रेमेंद्र जैन का सुझाव है कि “ताज को अच्छी सेहत के लिए खुली हवा और ठंडक की जरूरत है, इसलिए पर्यटकों की संख्या प्रतिदिन 20,000 से अधिक नहीं होनी चाहिए। टिकटों की ऑनलाइन अग्रिम बुकिंग ही इसका तरीका है, जिसमें अधिक कीमत पर तत्काल टिकटों का विकल्प भी शामिल है। इससे आगरा में रात को ठहरने की अवधि बढ़ाने में मदद मिल सकती है।” ताजमहल की सुरक्षा हमारी सांस्कृतिक विरासत की रक्षा और उसे संजोने की हमारी सामूहिक जिम्मेदारी की याद दिलाती है। हमें संरक्षण के लिए एक समग्र दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।

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Brij Khandelwal

Brij Khandelwal

Brij Khandelwal of Agra is a well known journalist and environmentalist. Khandelwal became a journalist after his course from the Indian Institute of Mass Communication in New Delhi in 1972. He has worked for various newspapers and agencies including the Times of India. He has also worked with UNI, NPA, Gemini News London, India Abroad, Everyman's Weekly (Indian Express), and India Today. Khandelwal edited Jan Saptahik of Lohia Trust, reporter of George Fernandes's Pratipaksh, correspondent in Agra for Swatantra Bharat, Pioneer, Hindustan Times, and Dainik Bhaskar until 2004). He wrote mostly on developmental subjects and environment and edited Samiksha Bharti, and Newspress Weekly. He has worked in many parts of India.

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