प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर और समृद्ध भारत बनाने के संकल्प को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले मध्यप्रदेश ने अब नदी जोड़ो परियोजना के क्रियान्वयन में भी अपना प्रथम स्थान बना लिया है । इसके अंतर्गत केन-बेतवा परियोजना और नर्मदा-शिप्रा लिंक परियोजना के क्रियान्वयन के साथ “जल संचय जन भागीदारी-जन आँदोलन” में भी शामिल है । इसके अतिरिक्त दस हजार से अधिक तालाब,पोखर और कुओं का जीर्णोद्धार हुआ ।
प्रधानमंत्री श्रीनरेंद्र मोदी के भारत राष्ट्र को विश्व सर्वश्रेष्ठ बनाने के अभियान में मध्यप्रदेश ने अनेक विधाओं में अपना अग्रणी स्थान बनाया है । इनमें स्वच्छता अभियान सबसे प्रमुख है । इसमें मध्यप्रदेश अपना अग्रणी स्थान बना चुका है । अब समृद्धि केलिये कृषि और समृद्धि की दिशा में कदम बढ़ाया है। कृषि विकास एवं उद्योगीकरण दोनों केलिये आधारभूत आवश्यकता जल है । और जल की उपलब्धता का सबसे महत्वपूर्ण स्त्रोत प्रकृति और वर्षा है जो नदियों, पोखरों और तालाबों के माध्यम से सुलभ होता है । मुख्यमंत्री डा मोहन यादव ने पदभार संभालते ही इन दोनों दिशाओं में कार्य आरंभ किया । एक ओर नदी जोड़ो परियोजनाओं का काम आरंभ किया और दूसरी ओर तालाव, कुँआ, बावड़ी और पौखरों का जीर्णोद्धार अभियान चलाया । इससे गांवो में जल की उपलब्धता भी बढ़ी और धरती की उर्वरक क्षमता भी बढ़ी । यह जल की उपलब्धता का ही प्रभाव है कि मध्यप्रदेश लगातार कृषि कर्मण अवार्ड जीत रहा है और इस वर्ष मध्यप्रदेश का कृषि उत्पादन 214 लाख मीट्रिक टन से बढ़ाकर 545 लाख मीट्रिक टन हो गया । अपना कृषि उत्पादन बढ़ाने केलिये भारत सरकार से प्रशंसा मिली । कृषि उत्पादन वृद्धि में मिली प्रशंसा के बाद अब मध्यप्रदेश नदी जोड़ो एवं जल संचय अभियान में भी अग्रणी राज्य बना और भारत सरकार से प्रशंसा मिली ।
नदियों की दृष्टि से मध्यप्रदेश एक समृद्ध प्रदेश है । नर्मदा, चंबल, पार्वती, बेतवा, शिप्रा, सोन जैसी सदानीरा नदियों का उद्धम मध्यप्रदेश है । ये नदियाँ अपनी विपुल जल राशि से मध्यप्रदेश वासियों को तो तृप्त करती ही हैं साथ ही अपने पड़ौसी राज्य गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और बिहार आदि राज्यों की नदियों को जल से समृद्ध करतीं हैं। लेकिन जल और प्राकृतिक संसाधनों के समुचित उपयोग के अभाव में मध्यप्रदेश कभी एक बीमारू राज्य रहा है। लेकिन अब मध्यप्रदेश ने विकास की नई अंगड़ाई ली है और विकास के विभिन्न कीर्तिमान बनाये हैं। विकास की इस धारा को अब डा मोहन यादव के नेतृत्व में मध्यप्रदेश ने आगे बढ़ाया है और जल संरक्षण एवं जल संचय की दिशा में तेजी से कदम बढ़ाये हैं और अन्य प्राँतों की तुलना में अग्रणी स्थान पर पहुंच रहा है ।
नदी जोड़ो परियोजना और जल संचय
भारत में मुख्यतया दो प्रकार की नदियाँ हैं। एक हिमालय से निकलने वाली गंगा , यमुना, कोसी , सतलज, जैसी सदानीरा नदियाँ और दूसरे देश के अन्य पर्वतों से निकलने वाली महानदी , गोदावरी, कृष्णा , कावेरी , नर्मदा, केन, बेतवा आदि नदियाँ । इस नदी जोड़ो परियोजना में ये दोनों प्रकार की नदियाँ शामिल हैं। इनमें कुछ नदियाँ ऐसी हैं जिनकी जल राशि का पूरा उपयोग स्थानीय स्तर पर नहीं हो पाता और बेकार बहकर समन्दर में चला जाता है । यदि इन नदियों को स्थानीय बरसाती नदियों से जोड़ दिया जाय तो क्षेत्र में समृद्धि का नया वातावरण बन सकता है । इसलिये भारत सरकार ने इन दोनों प्रकार की नदियों को छोटी छोटी नदियों से जोड़कर पानी की उपलब्धता बढ़ाने का कार्य आरंभ हुआ । नदी जोड़ों परियोजना प्रधानमंत्री श्रीनरेंद्र मोदी के उस संकल्प का एक महत्वपूर्ण अंग है । भारत की समृद्धि का आधार आत्मनिर्भरता है । इसमें सबसे पहला आयाम अन्न और जल की उपलब्धता है । जो प्राकृतिक वर्षा जल संग्रहण से ही संभव है । जल की उपलब्धता सुनिश्चित करने केलिये प्रधानमंत्री श्रीनरेंद्र मोदी ने दो अभियान आरंभ किये थे । एक तो विभिन्न नदियों को परस्पर जोड़ने केलिये “नदी जोड़ो परियोजना” और दूसरे वर्षा जल के संचय के लिये जन जाग्रति और जन भागीदारी के लिये “जल-संचय, जन भागीदारी-जन आँदोलन”। मुख्यमंत्री डा मोहन यादव ने मध्यप्रदेश के विकास में अपनी प्राथमिकता में ये इन दोनों अभियान भी शामिल किये । उन्होंने नर्मदा-शिप्रा लिंक परियोजना में सुधार कार्य तथा केन-बेतवा लिंक परियोजना और चंबल काली सिंध एवं पार्वती लिंक परियोजना के क्रियान्वयन को तेज किया । पिछले दिनों गुजरात प्राँत सूरत नगर में “जल-संचय जन भागीदारी-जन आँदोलन” विषय पर आयोजित एक राष्ट्रीय सम्मेलन में देश के विभिन्न प्राँतों से नदी जोड़ो परियोजना के क्रियान्वयन के आँकड़े आये । उनके अनुसार मध्यप्रदेश में इन परियोजनाओं पर तेजी से कार्य तेज हुआ और दोनों अभियानों के क्रियान्वयन में भी मध्यप्रदेश अग्रणी राज्य माना गया ।
वर्षा जल संग्रहण के लिये नदियाँ महत्वपूर्ण स्त्रोत है । कुछ नदिया सदानीरा हैं जबकि कुछ मौसम बदलने के साथ सूख जाती हैं। योजना बनी थी कि यदि बारह मासी कही जाने वाली सदानीरा नदियों को यदि छोटी नदियों से जोड़ दिया जाय तो जल की उपलब्धता सहज हो जायेगी । नदियों को परस्पर जोड़ने की इस योजना के क्रियान्वयन पर अनेक बार चर्चा हुई । लेकिन क्रियान्वयन का कार्य आरंभ नहीं हो सका था। सबसे पहले अंग्रेजों ने इस योजना पर सर्वे करके रिपोर्ट तैयार की थी । किन्तु अंग्रेजों का उद्देश्य नदियों को जोड़कर जन सामान्य की आवश्यकता के अनुरूप पानी की उपलब्ध कराना नहीं था । अंग्रेज नदियों को जोड़कर व्यापारिक हितों केलिये जल मार्ग बनाना चाहते थे । ताकि वे अपना यातायात सुगम बना सकें । स्वतंत्रता के बाद भी अनेक बार बरसाती नदियों को सदानीरा से जोड़ने की बात हुई । लेकिन कार्य आरंभ न हो सका । समय अपनी गति से आगे बढ़ा और 1999 में श्री अटलबिहारी वाजपेई जी के नेतृत्व में एनडीए सरकार बनी । तब अटलजी ने देश की कुछ बड़ी नदियों को परस्पर जोड़कर पानी की उपलब्धता बढ़ाने की इस परियोजना पर काम शुरू किया। लेकिन वह सरकार अधिक न चल सकी । अटलजी की सरकार के पतन के साथ ही इस योजना के क्रियान्वयन में गतिरोध आ गया ।
वर्ष 2014 में श्री नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बने और उन्होंने पुनः इस राष्ट्रीय नदी जोड़ो परियोजना’ के क्रियान्वयन के निर्देश दिये। यह परियोजना केवल मध्यप्रदेश केलिये ही नहीं पूरे देशभर केलिये थी। इसके अंतर्गत कुल 30 “रिवर-लिंक” बनना हैं इनके माध्यम भारत के विभिन्न प्राँतों की कुल 37 नदियों को एक दूसरे से जोड़ा जाना है । परियोजना में कुल 15,000 कि.मी. लंबी नई नहरों का निर्माण होगा । रिवर लिंक एवं नहरो के विशाल नेटवर्क से कृषि और अन्य उपयोग के लिये पानी की उपलब्धता के साथ धरती का गिरता जल स्तर भी संतुलित बनेगा ।
दो परियोजनाओं में अग्रणी मध्यप्रदेश
राष्ट्रीय नदी जोड़ो अभियान के अंतर्गत मध्यप्रदेश दो परियोजनाओं के क्रियान्वयन में अग्रणी राज्य बना । इनमें बेतवा-केन लिंक परियोजना और चंबल-सिंध-पार्वती लिंक परियोजना है । केन-बेतवा लिंक परियोजना के लिये भारत सरकार ने 44605 करोड़ रुपये की राशि स्वीकृत की है । इस परियोजना के अंतर्गत 221 किलोमीटर लंबी नहरो के माध्यम से केन और बेतवा के जल को जोड़ना है । ये दोनों नदियों का उद्धम मध्यप्रदेश है और ये यमुना नदी की सहायक नदियाँ हैं। केन्द्र से सहमति मिलते ही मध्यप्रदेश सरकार ने तेजी से क्रियान्वयन आरंभ किया । यह देश की पहली नदी जोड़ो परियोजना है जिस पर काम शुरू हो सका । इसके अंतर्गत केन नदी का अतिरिक्त जल बेतवा नदी में भेजा जाना है । यह परियोजना आठ वर्षों में पूरी होगी । यह परियोजना से लाभान्वित होने वाला अधिकांश क्षेत्र बुंदेलखंड है । सामान्यता बुन्देलखण्ड की गणना देश के सूखाग्रस्त क्षेत्र में होती है । यहाँ नदियाँ होने के बावजूद पानी की उपलब्धता उतनी नहीं है जितनी नदियों की जल क्षमता है । इस परियोजना पूरी होने के बाद न केवल बुन्देलखण्ड में जल उपलब्धता होगी अपितु धरती के जल स्तर में भी सुधार होगा । इस परियोजना से 10.62 लाख हेक्टेयर क्षेत्र की वार्षिक सिंचाई, लगभग 62 लाख लोगों को पीने के पानी की आपूर्ति हो सकेगी । इसके अतिरिक्त 103 मेगावाट जलविद्युत के उत्पादन भी आरंभ हो सकेगा ।
दूसरी पार्वती-कालीसिंध-चंबल लिंक परियोजना है । यह लगभग बीस वर्षों से अटकी हुई थी । मुख्यमंत्री डा मोहन यादव के आग्रह पर प्रधानमंत्री श्रीनरेंद्र मोदी ने दोनों राज्यों से चर्चा कर बाधाओं को दूर किया । इस योजना के पूरा होने पर मध्यप्रदेश में मालवा और चंबल क्षेत्र लाभान्वित होंगे। इस परियोजना से मध्य प्रदेश के इंदौर, उज्जैन, धार, गुना, श्योपुर, शिवपुरी, ग्वालियर, भिंड और शाजापुर, उज्जैन, देवास, शाजापुर और आगर मालवा सहित कुल 12 जिले लाभान्वित होगें । मध्यप्रदेश में इस परियोजना से सबसे अधिक लाभ शिवपुरी जिले को होगा। इस क्षेत्र में 95 हजार हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होगी। वहीं, इंदौर में 12 हजार हेक्टेयर, उज्जैन में 65 हजार हेक्टेयर, धार में 10 हजार हेक्टेयर, आगर-मालवा में 4 हजार हेक्टेयर, शाजापुर में 46 हजार हेक्टेयर, श्योपुर में 25 हजार हेक्टेयर, ग्वालियर गुना और भिंड में 80 हजार हेक्टेयर कृषि भूमि की सिंचाई हो सकेगी। इससे प्रदेश के लगभग तीस लाख किसान परिवार लाभान्वित होंगे। वहीं इस परियोजना से राजस्थान के झालावाड़, बारां, कोटा, बूंदी, सवाई माधोपुर, अजमेर, टोंक, जयपुर, करौली, अलवर, भरतपुर, दौसा और धौलपुर कुल 13 जिलों को लाभ होगा। इस परियोजना के पूरा होने के बाद दोनों प्रदेशों को तीनों प्रकार के लाभ होगें । दोनों प्रातों के इन पच्चीस जिलों में पेयजल की उपलब्धता के साथ कुल 2.8 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि को सिंचाई सुविधा बढ़ेगी । इसके अतिरिक्त औद्योगिक उपयोग के लिये भी जल उपलब्ध हो सकेगा। इस परियोजना पर 75,000 करोड़ रुपए की लागत आना अनुमानित है । इसमें राज्य सरकारों का निवेश केवल 10% ही होगा शेष 90% राशि केंद्र सरकार से मिलेगी । इस परियोजना के पूरा होने पर चंबल, कुन्नू, पार्वती, कालीसिंध सहित सभी सहायक नदियों में अतिरिक्त जल संचयन हो सकेगा ।
मुख्यमंत्री डा मोहन यादव का सम्मान
दरअसल प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने वर्ष 2047 तक भारत को विश्व का सर्वाधिक विकसित राष्ट्र बनाने का संकल्प व्यक्त किया । इसके लिये आधार भूत मानवीय आवश्यकता की सुगमता आवश्यक है । इसके लिये धरती की उर्वरक क्षमता और पेयजल की उपलब्धता बढ़ाने के लिये प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने इस नदी जोड़ो परियोजना को स्वीकृति दी । इस परियोजना में उन क्षेत्रों को प्राथमिकता दी गई है जो न्यूनतम वर्षा क्षेत्र माने जाते हैं। नदी जोड़ो परियोजना के माध्यम से जल की उपलब्धता बढ़ाने के साथ ग्रामीण क्षेत्र में जल संचय केलिये परंपरागत जल संग्रह के संरक्षण केलिये भी जन भागीदारी को बढ़ावा देने का अभियान चलाया गया है । इसके अंतर्गत स्थानीय तालाब, पोखर, कुआ बावड़ी का संरक्षण करना शामिल है ।
मध्यप्रदेश ने इस दिशा में भी उल्लेखनीय कार्य किया है । प्रदेश भर के लगभग दस हजार से अधिक तालाब, कुए, पोखर आदि का जीर्णोद्धार किया गया है ।
इसके लिये पिछले दिनों पूना में आयोजित “जल संचय जन भागीदारी-जन आँदोलन” कार्यक्रम में मध्यप्रदेश के कार्यों की प्रशंसा की गई। समारोह में केंद्रीय जल शक्ति मंत्री श्री सी. आर. पाटिल, गुजरात के मुख्यमंत्री श्री भूपेंद्र भाई पटेल, राजस्थान के मुख्यमंत्री श्री भजनलाल शर्मा, बिहार के उपमुख्यमंत्री श्री सम्राट चौधरी, वरिष्ठ जन-प्रतिनिधि, केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय तथा राज्यों के अधिकारी उपस्थित थे। कार्यक्रम में मुख्यमंत्री डॉ. यादव का पुष्प-गुच्छ व अंगवस्त्रम भेंट कर तथा स्मृति-चिन्ह प्रदान कर स्वागत किया गया। मुख्यमंत्री डॉ. यादव को “जल संचय -जन भागीदारी -जन आंदोलन कार्यक्रम” का संकल्प पत्र भी भेंट किया गया।