ट्रैफिक पुलिस कुछ बुनियादी बदलाव करे, लीपा पोती से नहीं सुधरेगा आगरा का यातायात संचालन

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Caption: Aaj Tak

पिछले दिनों ट्रैफिक पुलिस कैप्टेन्स ने आगरा शहर की यातायात व्यवस्था स्ट्रीमलाइन करने के लिए मीटिंग बुलाई। वोही घिसेपिटे सुझाव, कड़े फैसले लेने से मुंह फेरा गया।

आगरा की बेहद खराब ट्रैफिक संचालन व्यवस्था आम इंसानों की मोबिलिटी की जरूरत की प्लानिंग नहीं करने की वजह से, और सिर्फ वाहनों के संचालन और मूवमेंट पर ध्यान देने की वजह से खस्ता हाल है। शहर का कोई मोबिलिटी प्लान नहीं है। इसका कोई जवाब नहीं है क्यों व्यस्ततम इलाकों में वाहनों को जबरदस्ती एंटर करने दिया जाता है।

पैदल चलने वालों को प्रोत्साहन देने की जगह उनको दुत्कारते हो, हिट एंड रन को बढ़ावा देते हो। जागरूकता, सिविक सेंस बढ़ाने को पुलिस स्टेक होल्डर्स का सहयोग नहीं लेती। Zebra 🦓 crossing का महत्व लोगों को नहीं बताया जाता। बेलनगंज चौराहा, जीवनी मंडी क्रॉसिंग के ट्रैफिक सिग्नल काम करते, कभी किसी ने नहीं देखे। शो पीसेज पर करोड़ों व्यय कर दिए।

सबसे पहले, पुलिस देखे कि ट्रैफिक फ्लो कहीं भी अवरुद्ध न हो। वन वे ट्रैफिक करने में क्या कठिनाई है। कार से जाना है तो लंबा रूट ले लो। क्या हर्ज है?

दूसरे, किसी भी वाहन को कहीं भी यू टर्न मत लेने दो। तीसरे, लेन जंपिंग कभी नहीं एलाऊ मत करो।

अपने ही देश में केरल में, गोवा में, कर्नाटक में, अन्य शहरों में सकरी सड़कों पर वन वे ट्रैफिक सुचारूपूर्वक चलता है, फ्लो बना रहता है। फिर आगरा में पुलिस वन वे ट्रैफिक क्यों नहीं करती, क्यों दुकानदारों के दबाव में आती है। पेरिस के अंदरूनी भागों में, रोड्स आगरा से भी कम चौड़ी हैं, टोक्यो में भी, लेकिन वन वे की वजह से ट्रैफिक फ्लो निरंतर रहता है। हमारे आगरा वालों की मानसिकता ये है कि वश चले तो अपनी कार को फ्लैट या घर के अंदर घुसेड़कर ले जाएं। न्यू यॉर्क में पार्किंग कई किलोमीटर दूर मिल सकती है, यूरोप में लोग मीलों पैदल चलते हैं। लेकिन आगरा में साइकिल या पैदल चलने वालों को सम्मान नहीं मिलता। यमुना किनारा रोड पर २४ घंटे भारी वाहनों, ट्रकों की आवाजाही रहती है। ये तो अच्छा है कि पुराने जमाने के जैसे यमुना स्नान या पूजा के लिए जाने वालों की संख्या नगण्य है, वरना दस पांच रोज़ शिकार होते ट्रेडिक अव्यवस्थाओं के!

लेकिन वक्त आ चुका है ये सोच बदलने का।

आगरा की रोड जाम ट्रैफिक समस्याओं को सुलझाने के लिए निम्नलिखित ठोस उपाय किए जा सकते हैं:

1. **अतिक्रमण हटाना**: अवैध अतिक्रमण के खिलाफ कठोर कार्रवाई, विशेषकर व्यस्त क्षेत्रों में, जिससे सड़कों पर जगह बढ़ेगी।
2. **प्रभावी पार्किंग सॉल्यूशन**: पार्किंग की स्पष्ट रूपरेखा बनाना, जहां बाइक और कारों के लिए अलग स्थान हो। कई स्थानों पर मल्टी-लेवल पार्किंग की व्यवस्था करना।
3. **ट्रैफिक सिग्नल और सेंसिंग**: ट्रैफिक सिग्नल को स्मार्ट ट्रैफिक सेंसर्स से अपडेट किया जाए, जिससे ऑटोमेटेड और वास्तविक समय में ट्रैफिक को नियंत्रित किया जा सके।
4. **पुलिसिंग में सुधार**: ट्रैफिक पुलिस की संख्या बढ़ाना और उन्हें नियमित रूप से प्रशिक्षित करना ताकि वे नियमों का सख्ती से पालन करवाएं।
5. **जन जागरूकता अभियान**: लोगों को ट्रैफिक नियमों के प्रति जागरूक करने के लिए अभियान चलाना, जिससे वे बेहतर ड्राइविंग आदतों को अपनाएं।
6. **सड़क चौड़ीकरण और मरम्मत**: प्रमुख सड़कों का चौड़ीकरण और मरम्मत कराना, जिससे ट्रैफिक की गति बढ़ सके।
7. **परिवहन विकल्प**: पब्लिक ट्रांसपोर्ट को मजबूत करना, जैसे बस नेटवर्क और मेट्रो को अपनाना, ताकि व्यक्तिगत वाहनों पर निर्भरता कम हो।
8. **कई लेन और रोटरी का निर्माण**: आवश्यक स्थानों पर रोटरी और कई लेन का निर्माण करना, जिससे वाहनों की गति और दिशा को बेहतर किया जा सके।
9. **ट्रैफिक कैलकुलेटर्स**: ट्रैफिक फ्लो की कुशलता के लिए डेटा एकत्रित करना और विश्लेषण करना, ताकि समस्या क्षेत्रों की पहचान की जा सके।
10. **इमरजेंसी और फायर सर्विस की राहें**: इमरजेंसी सेवाओं के लिए स्पेशल लेन का निर्माण करना, जिससे उन्हें बिना रुकावट के पहुंचा जा सके।
इन उपायों को लागू करने से आगरा में ट्रैफिक समस्याओं में सुधार होने की उम्मीद है।

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Brij Khandelwal

Brij Khandelwal

Brij Khandelwal of Agra is a well known journalist and environmentalist. Khandelwal became a journalist after his course from the Indian Institute of Mass Communication in New Delhi in 1972. He has worked for various newspapers and agencies including the Times of India. He has also worked with UNI, NPA, Gemini News London, India Abroad, Everyman's Weekly (Indian Express), and India Today. Khandelwal edited Jan Saptahik of Lohia Trust, reporter of George Fernandes's Pratipaksh, correspondent in Agra for Swatantra Bharat, Pioneer, Hindustan Times, and Dainik Bhaskar until 2004). He wrote mostly on developmental subjects and environment and edited Samiksha Bharti, and Newspress Weekly. He has worked in many parts of India.

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