तेरह वर्ष की आयु से चला गिरफ्तारी और रिहाई का सिलसिला

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Caption: Rekhta

सुप्रसिद्ध क्राँतिकारी और साहित्यकार मन्मन्थनाथ गुप्त ऐसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे जिनकी गिरफ्तारियाँ तीनों कार्यों में हुई । क्राँति के प्रचार में, क्राँतिकारियों के साथ सहभागिता में और साहित्य रचना में भी । उनकी पहली गिरफ्तारी तेरह वर्ष की आयु में हुई थी और जब सत्रह वर्ष के हुये तो काॅकोरी काँड में सहभागी बने । 

ऐसे सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी और साहित्यकार मन्मथनाथ जी गुप्त का जन्म 7 फरवरी 1908 को वाराणसी में हुआ था। परिवार मूलतः बंगाल के हुगली जिले का रहने वाला था । पितामह अयोध्या प्रसाद जी गुप्त का विवाह बनारस में हुआ और वे बनारस में रहने आ गये । यहीं इस परिवार का विस्तार हुआ ।मन्मन्थनाथ जी के पिता वीरेश्वर गुप्त का जन्म भी बनारस में हुआ लेकिन वे नेपाल के विराटनगर में शिक्षक हो गये । मन्मन्थनाथ जी की आरंभिक शिक्षा विराटनगर में ही हुई किन्तु बाद में किसी कारण से पिता नौकरी छोड़कर बनारस आ गये । मन्मथनाथ जी की आगे की शिक्षा वाराणसी में हुई ।

वाराणसी उन दिनों साँस्कृतिक पुनर्जागरण और स्वतंत्रता संघर्ष का एक बड़ा वैचारिक केन्द्र था । यहाँ क्राँतिकारी, अहिसंक आँदोलन, साहित्यिक, साँस्कृतिक और सामाजिक सभी प्रकार की सक्रियता थीं। इन सभी बातों का प्रभाव वनारस के पूरे सामाजिक जीवन पर पड़ा । इससे यह गुप्त परिवार भी अछूता न रह सका । मनमन्थनाथ जी के पिता वीरेश्वर जी सुप्रसिद्ध विचारक और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पंडित मदनमोहन मालवीय से जुड़े थे । जब मन्मन्थनाथ जी केवल तेरह वर्ष के थे तब 1921 में ब्रिटेन के युवराज के कार्यक्रम का बहिष्कार करने का परचा बांटते हुए गिरफ्तार कर लिए गए । वे छोटी आयु के थे फिर भी रियायत न मिली और तीन महीने की सजा हुई । जेल से छूटने पर उन्होंने काशी विद्यापीठ में प्रवेश लिया और विशारद परीक्षा उत्तीर्ण की। यह चर्चा चारों ओर फैली कि एक तेरह वर्षीय किशोर बंदी बनाया गया अतएव जब वे विशारद की परीक्षा दे रहे थे तब उनसे क्रांतिकारियों ने संपर्क किया और मन्मन्थनाथ जी हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़ गये । जब वे केवल सत्रह वर्ष के थे तब 1925 में काकोरी कांड में सहभागी बने । काॅकोरी में ट्रेन रोककर ब्रिटिश सरकार का खजाना लूटने केलिये बनी दस लोगों की टोली में वे भी सम्मिलित थे। गिरफ्तार हुए, मुकदमा चला । काॅकोरी काँड में चार लोगों को फाँसी हुई थी लेकिन आयु कम होने कारण मन्मन्थनाथ जी को चौदह वर्ष का कारावास मिला । उन्होंने अपना पूरा जेल जीवन अध्ययन में लगाया । न केवल विभिन्न भारतीय भाषाएँ सीखीं अपितु भारतीय इतिहास का अध्ययन किया और विशेषकर वे विन्दु की किन गल्तियों के कारण भारत दासानुदास बना । मन्मन्थनाथ 1937 में रिहा हुये तो लेखन कार्य में लग गये । उनके लेखन का प्रमुख विषय जन जागरण ही होता । विदेशी शासकों के अत्याचार और उससे सामना करने के लिए साहस और संगठन का आव्हान होता था । अपने क्रान्तिकारी लेखन के चलते वे पुनः 1939 गिरफ्तार हुये जेल में डाल दिये गये । गिरफ्तारी और जेल की प्रताड़नाओं ने उन्हें और दृढ़ बनाया । उनका लेखन न रुका और उनकी गिरफ्तारियों और रिहाई का यह सिलसिला 1946 तक चला । यह तब ही रुका जब भारत के स्वतंत्र होने का निर्णय हो चुका था और स्वतंत्रता के लिये शर्तें तय की जाने लगीं। 

अंग्रेजों द्वारा जब्त किया गया उनका साहित्य स्वतंत्रता के बाद ही मुक्त हो सका । उनकी प्रमुख रचनाओं में “भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन का इतिहास,’ ‘क्रान्तियुग के अनुभव’

‘चंद्रशेखर आज़ाद’,’विजय यात्रा’ ‘यतींद्रनाथ दास’, ‘कांग्रेस के सौ वर्ष,’कथाकार प्रेमचंद’ ‘प्रगतिवाद की रूपरेखा’आदि प्रमुख ग्रंथ थे । उन्होंने हिन्दी, अंग्रेजी और बंगला भाषा में साहित्य रचना की और उनके साहित्य में विधाओं की भी विविधता है। उनके प्रकाशित ग्रन्थों की संख्या 80 के आसपास है। स्वतंत्रता के बाद न केवल नये साहित्य की रचना की अपितु स्वतंत्रता के पूर्व लिखे गये ग्रंथों के संशोधित संस्करण भी निकाले जिसमें भारतीय  क्राँतिकारी आँदोलन का इतिहास भी है । ऐतिहासिक और क्राँतिकारी लेखन के साथ उनकी रुचि वैज्ञानिक लेखन में थी । विशेषकर कथा साहित्य में मनोविश्लेषण बहुत स्पष्ट झलकता है । सिद्धांतों का आधार ग्रहण किया गया है। काम से संबंधित आपकी कई कृतियाँ भी हैं, जिनमें से ‘सेक्स का प्रभाव’ विशेष रूप से उल्लेखनीय है। 

 स्वतन्त्रता के बाद वे भारत सरकार के प्रकाशन विभाग से भी जुड़े और योजना, बाल भारती और आजकल जैसी हिन्दी पत्रिकाओं के सम्पादक भी रहे। जीवन के अंतिम समय वे दिल्ली आ गये थे । नई दिल्ली के निजामुद्दीन ईस्ट में उन्होंने अपना निवास बनाया । यहीं पर 26  अक्टूबर 2000 को उन्होंने देह त्यागी । तब वे 92 वर्ष की आयु के थे । उस वर्ष वह  दीपावली का दिन था । मानों उनके जीवन का दीप, परम् ज्योति में विलीन हो गया ।

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रमेश शर्मा

रमेश शर्मा

श्री शर्मा का पत्रकारिता अनुभव लगभग 52 वर्षों का है। प्रिंट और इलेक्ट्रानिक दोनों माध्यमों में उन्होंने काम किया है। दैनिक जागरण भोपाल, राष्ट्रीय सहारा दिल्ली सहारा न्यूज चैनल एवं वाँच न्यूज मध्यप्रदेश छत्तीसगढ प्रभारी रहे। वर्तमान में समाचार पत्रों में नियमित लेखन कर रहे हैं।

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