रंगनाथ
क्या कोई बता सकता है कि अनुभव सिन्हा ने फिल्म का अंत इस संवाद से क्यों किया है – इस हाईजैक का आईएसआई से इतना कम सम्बन्ध था कि उन्हें ओसामा बिन लादेन के घर तरनक किले पर आयोजित जश्न में शामिल होने से रोक दिया गया?
छह अंकों की वेबसीरीज में कम से कम छह जगह यह हिंट दिया गया है कि इस आतंकी वारदात में आईएसआई का हाथ नहीं था या न के बराबर था। भारत सरकार और उसके अधिकारी लुंजपुंज ढीले थे, यह दिखाना फिल्म की क्रिएटिव टीम का अपना नजरिया है जिसे व्यक्त करने के लिए वे स्वतंत्रत हैं। मगर उस घृणित वारदात की योजना बनाने और अंजाम देने का काम जिस एजेंसी ने कराया उसे बार-बार क्लीनचिट देने के पीछे क्या प्रेरणा रही होगी?
अगर यह क्लीनचिट नहीं दी गयी होती तो मान सकते थे कि निर्माता-निर्देशक ने उस पहलू पर जोर देना जरूरी नहीं समझा मगर वह पहलू निर्माता-निर्देशक के सामने बार-बार आया और उन्होंने उसे क्लीनचिट देकर हर बार बरी किया और सबसे बुरा किया कि सीरीज का अंत भी आईएसआई को क्लीनचिट देते हुए किया!
यह सच है कि 90 प्रतिशत अवाम केवल मनोरंजन के लिए फिल्म देखती है। उनकी प्रतिक्रिया भी उसी के आधार पर होती है। हैरत उस 10 प्रतिशत अवाम की प्रतिक्रिया पर है जो खुद को उच्च शिक्षित, बुद्धिजीवी, फिल्म समीक्षक, विश्लेषक इत्यादि मानती है।
सर्वमान्य राय है कि प्रोपगैण्डा जितना महीन हो, उतना अच्छा। यह सीरीज महीन तरीके से भारत की नकारात्मक छवि और उसके दुश्मनों की सकारात्मक छवि प्रस्तुत करती है। अगर आपकी पसन्द की पार्टी सत्ता में नहीं रहेगी तो आप देश के खिलाफ आईसआई के फेवर में फिल्म बना देंगे?
कुछ लोगों ने दलील दी है कि फिल्मकार को न्यूट्रल होना चाहिए इसलिए भारत की वकालत करने की उससे उम्मीद नहीं करनी चाहिए। यह दलील बहस को हकीकत की जमीन से उठाकर आदर्शों के आसमान पर रख देती है मगर इस वेबसीरीज के मामले में इस कुतर्क के पीछे आदर्श नहीं बल्कि कपट काम कर रहे हैं क्योंकि न्यूट्रल कलाकार कभी उन ताकतों को पाक-साफ नहीं बताएगा जिन्होंने 180 से ज्यादा लोगों को बन्धक बनाकर तीन खूंखार आतंकियों को रिहा करवाया! एक निर्दोष की निर्मम हत्या की। रिहा हुए आतंकियों ने फिर अन्य लोगों की हत्या की।
जो किसी की साइड नहीं लेते वो आदर्शवादी कलाकार कहे जाते हैं मगर जो दुश्मन की साइड लेते हुए कलाकारी दिखाएँ, उन्हें क्या कहा जाए?
(फेसबुक से साभार)