सहकारिता मंत्रालय के गठन के मकसद का खुलासा करती किताब

पुस्तक का विमोचन भारत सरकार के सहकारिता राज्य मंत्री श्री बी एल वर्मा ने किया, साथ में रिज़र्व बैंक के निदेशक व सहकार भारती के संस्थापक सदस्य श्री सतीश मराठे व भारतीय राष्ट्रीय सहकार संघ के अध्यक्ष दिलीप भाई संघाणी हैं

पुस्तक का विमोचन भारत सरकार के सहकारिता राज्य मंत्री श्री बी एल वर्मा ने किया, साथ में रिज़र्व बैंक के निदेशक व सहकार भारती के संस्थापक सदस्य श्री सतीश मराठे व भारतीय राष्ट्रीय सहकार संघ के अध्यक्ष दिलीप भाई संघाणी हैं

रवीश कुमार


सहकारिता ने जहां लोगों के लिए भारी अवसर पैदा किया है वहीं इसमें जमकर घोटाले हुए हैं। इन पर पुस्तक में समग्रता से चर्चा की गई है। पुस्तक ने कई तथ्यों के हवाले से याद दिलाया है कि इसके लेखक आलोक कुमार की असली पहचान खोजी पत्रकार की है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और नये सहकारिता मंत्री अमित शाह का सहकारिता से पुराना रिश्ता है। सहकारिता को राजनीति में चुनावी टूल के तौर पर इस्तेमाल होता रहा है। कहीं नये मंत्रालय के गठन का बड़ा मकसद सहकारी आंदोलन में भारतीय जनता पार्टी की पैठ कराना तो नहीं?

  सहकारिता अपने ध्येय को कैसे साधता है ? इसपर बाजार में आयी पुस्तक “सहकारिता से समृद्धि” में तसल्ली से प्रकाश डाला गया है।सहकारिता समाजवादी व्यवस्था की तरक्की का औजार है। यह साम्यवाद औऱ पूंजीवाद से सर्वथा अलग है और दोनों के ही दबाव से समाज को बचाता है। यह आंदोलन है, जो सामूहिक उद्यमिता से जिंदगी को बदलने की राह बनाता है। बेरोजगारी बड़ी समस्या है। रोजगार देने के वायदे को पूरा करना सरकारों के लिए सबसे बड़ी चुनौती रही है। सहकारिता में असीमित रोजगार देने का अवसर मौजूद है। इसे तराशने की जरुरत है। उन्नीसवीं सदी की औद्योगिक क्रांति में मशीनों ने इंसान के हाथ से काम छीन लिया,तो जवाब में उद्योगपति रॉबर्ट ओवेन खड़े हुए। फैक्टरी में काम करने वाले गरीबों की बदहाली को बदलने का संकल्प पाला और ब्रिटेन में सहकारिता की नींव रख दी। मजदूरों की दबी कुचली आबादी वाले बस्तियों के हालात बदल गये। बाद में रोशडेल शहर के 28 पॉयनियर्स ने इक्ट्ठा होकर कारोबार शुरु किया और कमाल कर दिया। “टाइम शॉपर्स” खोलकर साबित कर दिया कि जो अपनी मदद करना जानते हैं, उनकी मदद के लिए भगवान भी उतर आते हैं। 

भारतीय समाज में सहकारिता का इतिहास इन सबसे पुराना है। ब्रिटिश शासकों ने 1905 में बैंकिंग कारोबार के जरिए भारत में सहकारिता की वैधानिक नींव रखी। आजाद भारत के उत्थान में सहकारिता का अतुल्य योगदान है। कृषि और बैंकिंग के जरिए इसकी पहुंच देश के शत प्रतिशत गांवों तक है। हरित क्रांति और श्वेत क्रांति की सफलता सहकारिता से ही संभव हो पाया है।    नयी सदी के दो दशक बीतने के बाद केंद्र सरकार ने सहकारिता के लिए नए मंय का गठन किया है। इससे अतीत की व्यवस्था कही जाने लगी सहकारिता में नयी जान फूंकने की उम्मीद बढ़ी है। यह किताब किंडल, अमेजन, प्ले स्टोर, गुगल बुक्स और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ईबुक्स के प्लेटफॉर्म पर सहजता से उपलब्ध है।

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