रमेश शर्मा
अयौध्या में रामजन्म भूमि पर भव्य मंदिर आकार लेने जा रहा है । मंदिर में रामलला के विराजमान होने की तिथि भी आ गई। संघर्ष और बलिदान की एक लंबी श्रृखला में एक घटना ऐसी है जिसने 6 दिसम्बर 1992 को हुई अंतिम कारसेवा की इबारत लिखी । यह इबारत है कोठारी बंधुओं के बलिदान की है । जो दो नवम्बर 1990 को बलिदान हुये थे ।
अयोध्या में रामजन्म भूमि पर हमले और बचाव के संघर्ष का एक लंबा इतिहास है । हमलों और विध्वंस का भी और मुक्ति केलिये बलिदान का भी। सल्तनत काल का कोई आक्रांता नहीं जिसने अयोध्या पर हमला न किया हो । 1528 में मंदिर को पूरी तरह ध्वस्त करके एक नये ढांचे का आकार दिया गया । जिसे औरंगजेब के शासनकाल में पूरी तरह एक मस्जिद के रूप मिला और बाबरी मस्जिद नाम भी । मुक्ति के लगातार संघर्ष के चलते ब्रिटिश काल में विवादित स्थल नाम मिला । 1859 अंग्रेज सरकार ने इस विवादित स्थल पर बाड़ लगाकर दो हिस्सों में बाँट दिया । भीतरी हिस्सा में नमाज केलिये और बाहरी हिस्सा हिंदुओं को पूजा प्रार्थना के लिये ।
सतत संघर्ष के उतार-चढ़ाव के बीच निर्णायक संघर्ष 1984 में आरंभ हुआ । इसकी कमान विश्व हिंदू परिषद ने संभाली और देश भर में जन जागरण आरंभ किया । राम जन्म स्थल की “मुक्ति” और वहाँ मंदिर निर्माण के संकल्प के साथ एक समिति बनी । यह संघर्ष दोनों प्रकार से हुआ । अदालत में कानूनी लड़ाई का भी और जन जागरण अभियान का भी । 1986 जिला अदालत से हिंदुओं को पूजन प्रार्थना करने के लिए ताला खोलने का आदेश हुआ ।
1990 में विश्व हिंदू परिषद ने कारसेवा का आव्हान किया । देश भर से कारसेवक अयोध्या पहुँचे। उन दिनों उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी की सरकार थी । सरकार ने स्थिति पर नियंत्रण के लिये पुलिस व्यवस्था कड़ी कर दी थी । डेढ़ किलोमीटर का घेरे में बैरिकेडिंग करके विवादित स्थल को सुरक्षित किया गया था । पुलिस के इतने कड़े प्रबंध के बीच 30 अक्टूबर 1990 से कारसेवा आरंभ हुई । कर्फ्यू घोषित लगा था। पर भक्तों ने परवाह न की । कारसेवकों के समूह के साथ साधु-संतों ने हनुमानगढ़ी की ओर बढ़ने का प्रयास किया । सुबह 10 बजे तक हनुमानगढ़ी क्षेत्र में भीड़ बढ़ चुकी थी । रोकने के लिये गोली चालन का आदेश हो गया । पुलिस की गोलियाँ चलीं । चलती गोलियों के बीच कारवसेवकों ने बेरीकेट्स तोड़ा और राम जन्म भूमि स्थल बने विवादित ढांचे पर भगवा ध्वज फहरा दिया । ध्वज फहराने वाले कोठारी बंधु थे । कोठारी बंधुओं के नाम रामकुमार कोठारी और शरद कोठारी थे । रामकुमार शरद से एक वर्ष बड़े थे । उनके पिता हीरालाल कोठारी और माता सुमित्रा देवी मूलतः राजस्थान के रहने वाले थे लेकिन अपने काम के सिलसिले में कलकत्ता आ गये थे । कोठारी बंधुओं का जन्म यहीं हुआ था । कोठारी बंधुओं का बचपन मध्यप्रदेश के बैतूल में बीता था । वे बचपन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गये थे । दोनों संघ शिक्षा के द्वितीय वर्ष का प्रशिक्षण भी साथ ही किया था । इनकी प्रारंभिक शिक्षा भारत भारती आवासीय विद्यालय जामठी में हुई थी। दोनों भाई हमेशा ही दोस्तों की तरह साथ रहते और साथ खेलते थे। पांचवी कक्षा के बाद दोनों भाई पुनः कोलकाता लौट गये थे ।
1990 में जब राम मंदिर आँदोलन तीव्र हुआ तो कोठारी बंधु भी कार सेवा में भाग लेने अयोध्या पहुंचे। उनकी यह यात्रा साधारण नहीं थी । वे 22 अक्टूबर को कोलकाता से रवाना हुये और ट्रेन से बनारस पहुँचे। उन दिनों अयोध्या पहुँचने के सभी रास्ते सील कर दिये गये थे । कोठारी बंधुओं सहित कारसेवकों की एक टुकड़ी ग्रामीण रास्तों से पैदल ही अयोध्या रवाना हुई और लगभग 200 किलोमीटर की पैदल यात्रा करके 30 अक्टूबर को अयोध्या पहुँचे । और हनुमान गढ़ी में एकत्र कारसेवकों के समूह में सम्मिलित हुये । कार सेवकों का नेतृत्व अशोक सिंघल, उमा भारती, विनय कटियार कर रहे थे । कारसेवकों को बंदी बनाकर ले जाने के लिए पुलिस ने बसों का प्रबंध किया हुआ था । तभी साधुओं ने एक बस ड्राइवर को नीचे उतार कर बस से बैरीकेटर को तोड़ दिया। इससे हजारों कारसेवकों विवादित स्थल तक पहुंच गये । इनमें कोठारी बंधु भी भी थे। सबसे पहले शरद कोठारी गुंबद पर चढे फिर रामकुमार चढ़े और भगवा ध्वज फहरा दिया।
ध्वज फहराने की घटना से पुलिस बेकाबू हो गई और कारसेवकों पर टूट पड़ी। जो जहाँ दिखा वहाँ गोली या लाठी चली। अगले दिन 31 अक्टूबर को विवादित ढांचे के आसपास बने हर घर के सामने पुलिस का पहरा था । 30 अक्टूबर को जिनका बलिदान हुआ उनका अंतिम संस्कार एक नवम्बर को हुआ । और 2 नवंबर 1990 को पुलिस को कार सेवकों से अयोध्या खाली कराने का आदेश मिला । हर गली और घर से कारसेवकों को घसीट घसीट कर निकाला जाने लगा । पुनः प्रतिरोध हुआ फिर पुलिस की गोलियों से अयोध्या गूँज उठी । कारसेवकों के शव गिरने लगे । उनके रक्त से गलियाँ लाल होने लगीं । कोठारी बंधुओं ने दिगंबर अखाड़े से निकलकर हनुमानगढ़ी की तरफ जाना चाहा। उनके साथ दो और कारसेवक थे । पुलिस की गोलियों ने चारों को मौत की नींद सुला दिया । 4 नवंबर को सरयू नदी के घाट पर कड़ी सुरक्षा के बीच दो नवम्बर के सभी बलिदानियों का अंतिम संस्कार किया गया।
जब दोनों भाई कार सेवा के लिये से अयोध्या रवाना हुए तब घर में उनकी बड़ी बहन के विवाह की तैयारियाँ चल रहीं थीं। विवाह की तिथि 12 दिसम्बर निर्धारित थी । कोठारी बंधु भले अपनी बहन की डोली विदा करने में सहभागी न बन सके पर उनके और उनके साथ बलिदान हुये कारसेवक के रक्त की ऊष्मा ही थी जिससे मार्ग निकलते गये 1992 में विवादित ढांचा गिरा और अब उस भव्य मंदिर आकार ले रहा है ।