उत्तर प्रदेश की सरकार थोड़ा ध्यान दे!

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उत्तर प्रदेश चुनाव को यदि केस स्टडी माने तो उसका अलग अलग विश्लेषण हुआ है। लेकिन एक पक्ष अभी भी अनकहा है। उस पर कुछ लिखा नहीं गया और कहा नहीं गया

आज दिल्ली में एक महत्वपूर्ण चर्चा का हिस्सा था। उसमें जिन मुद्दों पर चिंता व्यक्त की गई। उनमें कोई मुद्ददा ऐसा नहीं था, जो पहले से हम सबकी चिंताओं में शामिल ना हो। हां! उन विषयों पर पहले से अधिक स्पष्ट राय बनी।

पूर्वी उत्तर प्रदेश के एक मित्र पिछले तीन—चार सालों से बार—बार फोन करके खतरे का एहसास करा रहे थे। पूर्वी उत्तर प्रदेश में कुछ बड़ा षडयंत्र हो रहा है। ऐसा कहा करते थे, आप लोग कुछ कर क्यों नहीं रहे? उन्हें हर बार समझाना पड़ता था कि भाई आपने हमारी क्षमता से अधिक की अपेक्षा हमसे कर रखी है?

वे बताते थे कि किस तरह पूरब के जिलों में अम्बेडकरवादियों, तबलिगियों और वामपंथियों का गांव और कस्बों में जाना आना बढ़ गया है। उनका व्यवसाय ऐसा था कि एक जिले से दूसरे जिले की लगातार उन्हें यात्रा करनी पड़ती थी। उन्हें तब आश्चर्य हुआ जब उनके अपने गांव के पड़ोस में एक दिन प्रकाश अम्बेडकर भाषण देते हुए उन्हें दिखाई दिए।

उत्तर प्रदेश चुनाव को यदि केस स्टडी माने तो उसका अलग अलग विश्लेषण हुआ है। लेकिन एक पक्ष अभी भी अनकहा है। उस पर कुछ लिखा नहीं गया और कहा नहीं गया। उत्तर प्रदेश में बीते कुछ सालों में philanthropy का पैसा इतना क्यों आने लगा? यह किनके पास गया? उप्र सरकार ने इन बातों का ध्यान रखा क्या?

उप्र सरकार कई सरकारी नीतियों को बनाने के लिए वामपंथी संस्थाओं की मदद ले रही है। सरकार के साथ काम करने के नाम पर पूरे उत्तर प्रदेश में अपना नेटवर्क उन्होंने आसानी से खड़ा कर लिया है। उन्होंने सरकार के काम के नाम पर अपना पैसा खर्च किया और सरकार का काम कम और उसके लिए गढ्ढा खोदने का काम अधिक किया।

सरकार के साथ काम करने वाली संस्थाएं वे हैं जो सामने से काम कर रहीं हैं। जिनके संबंध में अब भी देरी नहीं हुई। उनकी पहचान करके उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है।

जानकारी यह भी मिली कि कई एनजीओ कंपनी बनकर विदेशों से वर्क आर्डर के नाम पर पैसे ले रहीं थीं। पैसा कंपनी के अकाउंट में आ गया। उन्होंने इसे मनमर्जी तरीके से खर्च किया।

आरएसएस और बीजेपी विरोधी संस्थाएं उत्तर प्रदेश में सरकार के साथ मिलकर काम कर रहीं हैं। उनके कार्यकर्ता पूरे प्रदेश मेें फैले हुए हैं। कहने के लिए तो वे सामाजिक कार्य में लगे हैं लेकिन सामाजिक काम उनका पार्ट टाइम था। पूरा दिन उनका उप्र प्रदेश सरकार की विदाई के प्रयास में निकलता है। लोकसभा में कामयाब होने के बाद उनके हौसले बुलंद हैं। उन संस्थाओं की अब पहचान की जानी चाहिए और उनकी भूमिका पर एक बार केन्द्र सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार दोनों को विचार करना चाहिए।

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आशीष कुमार अंशु

आशीष कुमार अंशु

आशीष कुमार अंशु एक पत्रकार, लेखक व सामाजिक कार्यकर्ता हैं। आम आदमी के सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों तथा भारत के दूरदराज में बसे नागरिकों की समस्याओं पर अंशु ने लम्बे समय तक लेखन व पत्रकारिता की है। अंशु मीडिया स्कैन ट्रस्ट के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं और दस वर्षों से मानवीय विकास से जुड़े विषयों की पत्रिका सोपान स्टेप से जुड़े हुए हैं

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