गांधी ने सभी धर्मों का आराध्य माना है ‘राम’ को

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गांधी के राम व्यापक हैं। हरिजन सेवक के 2 जून 1946 के अंक मे गांधी जी अपने राम नाम को स्पष्ट करते हुये कहते हैं कि आप लोग उस सर्वशक्तिमान भगवान की गुलामी मंजूर करें। इससे कोई मतलब नहीं है कि आप उसे किस नाम से पुकारते हैं। राम का नाम आत्मसात करने से आप किसी इंसान या इन्सानो के आगे घुटने नहीं टेकेंगे। राम के नाम को गांधी जी ने धर्म की सीमाओं से परे वर्णित किया। इसका उद्वारण उनके द्वारा हरिजन सेवक में 28 अप्रैल 1946 को लिखे लेख मे मिलता है जिसमे आप लिखते हैं। “जब कोई ये ऐतराज उठाता है कि राम का नाम लेना या राम धुन गाना सिर्फ हिन्दुओं के लिए है, मुसलमान उसमे किस तरह शरीक हो सकते हैं, तब मुझे मन ही मन हंसी आती है। क्या मुसलमानो का भगवान हिन्दुओं, पारसियों या इसाइयों के भगवान से जुदा है ? नहीं, सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापी ईश्वर तो एक ही है। उसके कई नाम है, और उसका जो नाम हमें सबसे ज़्यादा प्यारा होता है, उस नाम से हम उसको याद करते हैं। मेरा राम, हमारी प्रार्थना के समय का राम, वह एतेहासिक राम नहीं है जो दशरथ का पुत्र और अयोध्या का राजा था। वह तो सनातन, अजन्मा और अद्वितीय राम है। मैं उसी की पूजा करता हूँ। उसी की मदद चाहता हूँ। आपको भी यही करना चाहिए। वह समान रूप से सब किसी का है। इसलिए मेरी समझ मे नहीं आता कि क्यों किसी मुसलमान को या दूसरे किसी को उसका नाम लेने मे ऐतराज होना चाहिए? लेकिन यह कोई जरूरी नहीं कि वह राम के रूप मे ही भगवान को पहचाने-उसका नाम लें। वह मन ही मन अल्लाह या खुदा का नाम भी इस तरह जप सकता है, जिससे उसमे बेसुरापन न आवे”।

गांधी जी के इस वक्तव्य पर प्रश्न चिन्ह भी लगे ? कि कैसे उन्होने एक राम धुन की ऐसी व्याख्या कर दी। इस पर उनसे सवाल पूछा गया कि आप कहते हैं कि प्रार्थना मे प्रयुक्त राम का आशय दशरथ के पुत्र राम से नहीं बल्कि जग नियंता से है। हमने भली भांति देखा है कि रामधून मे राजाराम, सीताराम का कीर्तन होता है और जयकार भी सीतापति रामचंद्र की जय का लगता है। फिर सीतापति राम कौन हैं ? राजाराम कौन हैं ? क्या ये दशरथ सुपुत्र राम नहीं हैं ? इसका जवाब महात्मा गांधी हरिजन सेवक के 02 जून 1946 मे छपे एक लेख के माध्यम से देते हैं। ”राम से राम नाम बड़ा है। हिन्दू धर्म महासागर है। उसमे अनेक रत्न भरे हैं। जितना गहरे पानी मे जाओ, उतने ज़्यादा रत्न मिलते हैं। हिन्दू धर्म मे ईश्वर के अनेक नाम हैं।

सैंकड़ों लोग राम कृष्ण को एतेहासिक व्यक्ति मानते हैं और मानते हैं कि जो राम दशरथ के पुत्र माने जाते हैं, वहीं ईश्वर के रूप मे पृथ्वी पर आए और उनकी पूजा से आदमी मुक्ति पाता है। ऐसा ही कुछ कृष्ण के लिये है। इतिहास, कल्पना और शुद्ध सत्य आपस मे इतने ओतप्रोत हैं कि उन्हे अलग करना लगभग असंभव है। मैंने अपने लिये ईश्वर की सब संज्ञाए रखी हैं और उन सबमे मैं निराकार, सर्वस्व राम को ही देखता हूँ। मेरे लिये मेरा सीतापति दशरथ नन्दन कहलाते हुये भी वह सर्वशक्तिमान ईश्वर ही है जिसका नाम हृदय मे होने से मानसिक, नैतिक और भौतिक सब दुखों का नाश हो जाता है”।

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अमित त्यागी

अमित त्यागी

विधि एवं प्रबंधन में परस्नातक लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं। पर्यावरण, राजनीतिक विमर्श और कानूनी विषयों पर अमित के आलेख पिछले डेढ़ दशक से चर्चित पत्र पत्रिकाओं में नियमित प्रकाशित होते रहे हैं। अमित का पिछले कुछ समय से बॉलीवुड में गीतकार के रूप में भी दखल बढ़ा है।

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