बिहार में बेतिया की बात ही कुछ अलग है …

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मिठाई मेरी कमजोरी है। खासकर रसगुल्ले। जहां मौका मिले, कम से कम 2 रसगुल्ले तो निपटा ही देता हूं।

इधर बीच किसी काम के सिलसिले में पश्चिमी चंपारण जाना हुआ । वहां का जिला मुख्यालय है बेतिया। लंच के वक्त किसी से पूछा, सादा खाना कहां मिलेगा?

बिहार में सादा खाना मतलब, दाल, भात, सब्जी, चोखा, भुजिया, अचार या चटनी, सलाद और पापड़। एक बिहारी को अगर दोपहर के वक्त खाने में ये मिल गया तो समझिए उसे दुनिया का हर सुख मिल गया। हम तो ठहरे ठेठ बिहारी।

तो मुझे बताया गया कि स्टेशन चौक पर बंगाली के यहां चले जाइए।

हालांकि बेतिया शहर में दो तीन अच्छे रेस्तरां हैं। बीकानेर और श्याम होटल। लेकिन यहां के खाने में बिहारी जायका नहीं है। वही पनीर कड़ाही और दाल मखनी। दाल मखनी या काली दाल ने तो ऐसा कब्जा किया है कि लहसुन और हींग में बघारी अरहर की दाल ढूंढे नहीं मिलती। बेतिया के स्टेशन चौक पर ही वृंदावन होटल है। शुद्ध शाकाहारी। लेकिन खाना ऐसा घटिया कि वहां जाकर आपको लगेगा कि किसी जन्म में कोई पाप हुआ होगा जिसकी वजह से वृंदावन होटल में खाना नसीब हुआ।

वैसे बेतिया शहर मांसाहारी खाने वाले लोगों के लिए जन्नत है। हर तरफ आपको अहुना मटन और मछली की दुकानें दिख जाएंगी। मुझे किसी ने बताया कि अहुना मटन को ही चंपारण से बाहर आजकल चंपारण मटन के नाम से जाना जाता है। पटना सहित बिहार के लगभग हर जिले में चंपारण मटन की दुकान दिखती हैं। दिल्ली में भी अब एकाध दुकान इसी नाम से खुल गई हैं। दिल्ली में कई रेस्तरां अब अपने मेन्यू में चंपारण मटन डिश रखते हैं।

लेकिन अपने को सादा खाना ही जंचता है। तो हमारी खोज खत्म हुई और बंगाली होटल दिख गया। बोर्ड को बहुत ध्यान से देखने से पता चल रहा था कि long long ago कभी इस पर बंगाली लिखा गया होगा। लेकिन बारिश के थपेड़ों ने बंगाली शब्द धुंधला कर दिया। बाहर से देखने पर ये मिठाई और समोसे की दुकान लग रही थी।

हमने अंदर जाकर पूछा तो पता चला कि खाना भी मिलता है। सादा खाना। कतरनी चावल, अरहर दाल, आलू परवल की सब्जी, आलू भिंडी की भुजिया, अचार, पापड़, सलाद। भूख लगी थी। सो झटपट खाना निपटाया गया।

लेकिन इस दौरान मेरी निगाह बगल में रखे रसगुल्ले के कड़ाह पर टिकी रही। जिस तरह से रसगुल्ले बन रहे थे लगा कि कोई ऑर्डर होगा। थोक में बन कर जा रहे हैं। लेकिन खाना खत्म करते करते ये बात समझ में आ गई कि ना, ये ऑर्डर के लिए नहीं है। इसे तो शाम तक निपट जाना है।
खाना खत्म करते ही हमने रसगुल्ला ऑर्डर किया। और मेरे सामने एक प्लेट रसगुल्ला लाकर रख दिया। एक प्लेट में 8 रसगुल्ले। मैं कभी रसगुल्ले के प्लेट को देख रहा हूं और कभी लाने वाले को।

उसने पूछा, भईया और चाहिए?
और!!! अरे भाई, इसी को खाने में पसीने चुने लगेंगे।
भैया, हमारे यहां तो एक प्लेट में 8 ही आते हैं।
एक प्लेट में 8!!!
हां भैया। आप खाइए न। आपको पता भी नहीं चलेगा।

हम तीन लोग थे। बाकी का प्लेट वापस कराए। एक ही प्लेट में खाए। लेकिन सच में पता ही नहीं चला। मुंह में जाते ही घुल जाता था। उफ्फ! क्या शानदार बनाया था।

8 रसगुल्ले के अनुभव को देखते हुए हमने फिर 2 गुलाबजामुन ऑर्डर किया। ☺️
उसका भी वही स्वाद!

लेकिन सबसे ज्यादा आश्चर्य तब हुआ जब बिल पेमेंट करने पहुंचा। 3 आदमी का भरपेट सादा खाना, 8 रसगुल्लों वाला एक प्लेट रसगुल्ला और गुलाबजामुन।

कुल बिल हुआ मात्र 250 रुपया। वाह चंपारण! अहा बेतिया!

दिव्य आनंद की अनुभूति लेते हुए हम आगे की ओर निकल पड़े।

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