चितरंजन त्रिपाठी ने भारतीय संस्थाओं पर बात करते हुए लेखन सामग्री में भारी कमी को दोष दिया। समाज को गलत तरीके से पेश करने वाले नाट्य लेखनों को जवाब देने के लिए सही नजरिये पर काम नहीं किया गया। उन्होंने आज के लेखकों से भारत को समझने के लिए महाभारत को पढ़ने पर भी जोर दिया क्योंकि आप कला और अपने इतिहास को बेहतर समझ पाएंगे। आज का युवा नाटक देखना चाहता है, उसमें रूचि भी रखता है मगर उसके लिए लेखन भारतीय दिशा में रखना बहुत जरूरी है।
हम जब लोक को समझ जाएंगे तो नाट्य को बेहतर करना हम सीख जाएंगे। लोक नाट्य लोगों के बीच तैयार होता है, लोगों के लिए तैयार होता है, उन्हीं के बीच में चल रहे व्यवहार को ध्यान में रखकर लोक नाट्य लिखे जाते हैं और इसे केवल लोक ही जीवित रख सकता है।
इसी विषय पर बात करते हुए वरिष्ठ नाट्य समीक्षक अनिल गोयल ने भारतीय नाट्य परम्परा पर बात करते हुए कहा कि 90 के दशक में कई नाट्यकारों ने भारतीय इतिहास को गलत तरीके से पेश करने का काम किया। उन्होंने आज की सबसे बड़ी चुनौती के तौर पर भारत में युवा रंग लेखन में कमी को बताया है। नाट्य जगत को हमेशा अच्छे लेखकों की कमी महसूस हुई है। फिल्म क्षेत्र को बेहतर लेखक मिले मगर नाट्य जगत में इसकी कमी देखी गई। 1962 और 71 की लड़ाई पर फिल्मों का लेखन हुआ मगर किसी ने इसपर प्रभावी नाटक नहीं तैयार किया। पॉलिटिकल करेक्ट बनने की कोशिश में हमने सदैव कड़े विषयों को नाटक क्षेत्र से दूर रखा है।
संगोष्ठी के उद्घाटन में संस्कार भारती के राष्ट्रीय संगठन मंत्री अभिजीत गोखले, चितरंजन त्रिपाठी, अनिल गोयल, कुलदीप शर्मा जी मौजूद रहे थे।