‘मैपिंग ऑफ द आर्काइव्स इन इंडिया’ पुस्तक पर चर्चा का आयोजन

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अतीत को पुनर्जीवित करने में अभिलेखागारों की महत्त्वपूर्ण भूमिकाः पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के कला निधि प्रभाग द्वारा 23 नवंबर 2023, गुरुवार को प्रो. (डॉ.) रमेश गौड़ और और विस्मय बसु की पुस्तक ‘मैपिंग ऑफ द आर्काइव्स इन इंडिया’ पुस्तक पर केंद्र के समवेत ऑडिटोरियम में एक चर्चा का आयोजन किया गया। पुस्तक चर्चा में आईजीएनसीए के अध्यक्ष श्री रामबहादुर राय, सेवानिवृत्त केंद्रीय सूचना आयुक्त श्री सत्यानंद मिश्रा, संचार एवं सूचना सलाहकार (यूनेस्को, दक्षिण-एशिया, नई दिल्ली) हेज़ेकील दलामिनी, आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी, आईजीएनसीए के कलानिधि प्रभाग के अध्यक्ष प्रो. (डॉ.) रमेश गौड़ और राष्ट्रीय अभिलेखागार, नई दिल्ली के उप निदेशक डॉ संजय गर्ग उपस्थित थे। इस अवसर पर विवरणात्मक ई-कैटलॉग ‘आगम-तन्त्र-मन्त्र-यन्त्र, खण्ड-3, भाग 1-5’ का लोकार्पण भी किया गया।

कार्यक्रम के प्रारम्भ में प्रो. रमेश चंद्र गौड़ ने सम्मानित अतिथियों का गर्मजोशी से स्वागत किया और आईजीएनसीए और यूनेस्को द्वारा संयुक्त रूप से प्रकाशित ‘मैपिंग ऑफ द आर्काइव्स इन इंडिया’ तथा ‘आगम-तंत्र-मंत्र-यंत्र, खण्ड-3, भाग 1-5’ के विवरणात्मक ई-कैटलॉग के प्रकाशन पर प्रसन्नता व्यक्त की। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि परियोजना 2018 में शुरू हुई, लेकिन औपचारिक रूप से इसका काम 2019 में प्रारम्भ हुआ। हालांकि वैश्विक महामारी कोविड कारण इसका काम थोड़ा धीमा भी हुआ। व्यापक साहित्य सर्वेक्षणों के माध्यम से, उन्होंने देश भर में 600 संस्थानों में अभिलेखागारों को चिह्नित किया, जिसके परिणामस्वरूप पुस्तक में 424 डायरेक्ट्री बनाई गईं। इन डायरेक्ट्री में निहित पुरालेखों की व्यापक प्रोफाइल शामिल है और ये उनके संरक्षण, डिजिटलीकरण और अभिलेखीय परिप्रेक्ष्य के पहलुओं पर प्रकाश डालती है। प्रो. गौड़ ने भारत में पुरालेख विज्ञान शिक्षा की सख्त आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि ये पुरालेख हमारी विरासत को संजोये हुए हैं, इन्हें सुरक्षित रखा जाना चाहिए। भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने लालकिले की प्राचीर से ‘पंच प्रण’ का उल्लेख किया था, उसका हवाला देते हुए प्रो. गौड़ ने विरासत को संरक्षित करने के महत्त्व को रेखांकित किया।

 


राष्ट्रीय अभिलेखागार, नई दिल्ली के उप निदेशक डॉ. संजय गर्ग ने अपने संबोधन में देश में अभिलेखागारों के ऐतिहासिक महत्त्व पर जोर दिया और इन अभिलेखागारों के मानचित्रण में निरंतर हो रहे प्रयासों की महत्त्वपूर्ण आवश्यकता पर प्रकाश डाला। उन्होंने धार्मिक व शैक्षिक संस्थानों और रियासतों, राज्य अभिलेखागारों और कॉर्पोरेट अभिलेखागारों द्वारा निभाई गई महत्त्वपूर्ण भूमिका का हवाला देते हुए अभिलेखागारों के बारे में विस्तार से बताया। डॉ. गर्ग ने बैंकों, न्यायिक प्रतिष्ठानों और संरक्षक प्रतिष्ठानों में अभिलेखागार की उपस्थिति पर जोर दिया। उन्होंने आगे कहा कि उचित संरक्षण तंत्र के अभाव में इस विशाल विरासत के लुप्त हो जाने का खतरा है। उन्होंने ‘मैपिंग ऑफ द आर्काइव्स इन इंडिया’ पुस्तक की सराहना करते हुए इसे देश की विरासत को सुरक्षित रखने का एक अद्भुत प्रयास बताया।

आईजीएनसीए सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने कोविड महामारी से उत्पन्न चुनौतियों के बावजूद, इन प्रकाशनों को सफलतापूर्वक सामने लाने पर संतोष और गर्व व्यक्त किया और इस उपलब्धि का श्रेय इसमें शामिल टीम के अटूट प्रयासों को दिया। उन्होंने कहा कि कोविड महामारी के दौरान समाज इस बारे में चर्चा कर रहा था कि सिनेमाहॉल फिर से कब खुलेंगे, मॉल कब खुलेंगे, लेकिन लोगों को इस बात की चिंता नहीं थी कि संग्रहालय, पुस्तकालय और अभिलेखागार कब खुलेंगे! उन्होंने पुरालेख विज्ञान के प्रति रुझान की कमी पर अफसोस जताया। उन्होंने छात्रों और जनता के बीच अधिक जागरूकता की आवश्यकता पर बल देते हुए आर्काइविंग विज्ञान के विकास की वकालत की। उन्होंने महाभारत, रामायण और भगवद्गीता जैसे अमूल्य ग्रंथों को संरक्षित करने में पुरालेखाकारों की भूमिका को स्वीकार करते हुए, इस क्षेत्र के पेशेवरों की सराहना और समर्थन का आग्रह भी किया।

संचार एवं सूचना सलाहकार (यूनेस्को, दक्षिण-एशिया, नई दिल्ली) हेज़ेकील दलामिनी ने अपने उद्बोधन के दौरान, सामूहिक मिशन में युनेस्को और आईजीएनसीए की निरंतर साझेदारी पर खुशी व्यक्त की। अभिलेखागार के ऐतिहासिक महत्त्व पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि कैसे अभिलेखागार ज्ञान और संस्कृति इतिहास का आधार बनते हैं। श्री दलामिनी ने यह भी कहा कि अभिलेखागार ज्ञान के भंडार के रूप में काम करते हैं और यूनेस्को भारत के संस्थागत और विशिष्ट आर्काइविंग कार्यक्रमों में गहरी रुचि रखता है।

कार्यक्रम में मुख्य अतिथि सेवानिवृत्त केंद्रीय सूचना आयुक्त श्री सत्यानंद मिश्रा ने अभिलेखों के संरक्षण और समर्थन के महत्त्व पर जोर देते हुए कहा, “अभिलेखीय सामग्री का उपयोग करते हुए इतिहास का लेखन अतीत को जीवंत बनाता है।” उन्होंने इस पुस्तक की एक प्रासंगिक पहल के रूप में सराहना की। मिश्रा ने अतीत को पुनर्जीवित करने में अभिलेखीय सामग्रियों के उपयोग के गहन प्रभाव पर प्रकाश डाला।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे आईजीएनसीए के अध्यक्ष श्री रामबहादुर राय ने प्रो. (डॉ.) रमेश गौड़ को बधाई देते हुए कहा कि उन्होंने बहुत ही सराहनीय  कार्य किया हैं। इस किताब में बहुत-सी अच्छी सूचनाएं हैं, इसको पढ़ना चाहिए। श्री रामबहादुर राय ने आगे कहा कि  पुस्तकालयों और अभिलेखागारों को सर्वसुलभ बनाये जाने की आवश्यकता है, ताकि नई पीढ़ी उसका रचनात्मक उपयोग कर सके। उन्होंने यह प्रश्न भी खड़ा किया कि क्या संग्रहालयों से सूचना प्राप्त कर पाना शोधार्थीयों के लिए सुलभ है? क्या लोगों को आसानी से सूचनाएं उपलब्ध हो पा रही हैं? उन्होंने कहा कि इस सम्बंध में एक आंदोलन खड़ा करने की जरूरत है।

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