राजा हो कर देश की समस्याएं नहीं सुलझा सकता कोई: नाना जी देशमुख

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दयानंद पांडेय

नाना जी देशमुख अब नहीं है। पर मेरा मानना है कि अगर देश में दस-बीस नाना जी देशमुख भी हो जाएं तो देश की सूरत और सीरत दोनों बदल जाएगी। नाना जी ने सत्ता और राजनीति का शहद चखने के बाद वनवासी जीवन चुना। एक समय वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्य थे। बाद में वह जनसंघ में आए। इमरजेंसी में वह जे पी के साथ आ गए। मुझे वह फ़ोटो अभी तक नहीं भूली जो इंडियन एक्सप्रेस ने छापी थी। उस फ़ोटो में पुलिस जे पी पर लाठियां बरसा रही है और नाना जी देशमुख उन लाठियों को अपने सीने पर ऐसे खा रहे हैं गोया वह जे पी की ढाल हों। जे पी नीचे हैं और उन के ऊपर सीना ताने लेटे नाना जी देशमुख। नाना जी जेल में भी गए जे पी के साथ। बाद में जब जनता पार्टी की सरकार बनी तब वह मोरार जी देसाई सरकार में कैबिनेट मंत्री बनने का प्रस्ताव ठुकरा बैठे। जल्दी ही वह राजनीति से भी छुट्टी ले बैठे। और समाज सेवा में लग गए। इस के लिए भी महाराष्ट्रियन होते हुए भी उन्हों ने उत्तर प्रदेश को ही चुना। पहले गोंडा में प्रभावती ग्राम बनाया। फिर चित्रकूट चले गए। यकीन मानिए चित्रकूट में नाना जी ने जो और जितना काम किया है वह अनूठा है। मैं समझता हूं कि आदिवासी बहुल इस क्षेत्र में अगर नाना जी न आए होते तो यह क्षेत्र दंतेवाड़ा से भी ज़्यादा खतरनाक इलाका हुआ होता नक्सल मूवमेंट के लिहाज़ से। नाना जी ने अपने कामों से यहां सामाजिक और आर्थिक खाई को बहुत हद तक पाटा। क्या तो काम किए हैं उन्हों ने इस क्षेत्र में। आदिवासी बच्चों के लिए नि:शुल्क आवासीय शिक्षा। उच्चतर सिक्षा भी। उन को रोजगार सिखाने के लिए कई उपक्रम। आयुर्वेद का एक बड़ा शोध संस्थान। जहां जड़ी-बूटी से ले कर सौ से अधिक किस्म की देसी गाय। और भी तमाम कुछ । नाना जी का एक किस्सा बहुत सुनता था कि एक बार वह लखनऊ में यशपाल जी के पास गए और उन से कहा कि आप पांचजन्य के लिए कुछ लिखिए। और आप का लिखा जस का तस छपेगा। यशपाल ने लिखा भी और वह छपा भी। जस का तस। जब नाना जी से मैं १९९७ में जून की गरमियों में चित्रकूट में मिला तो उन की वह सहिष्णुता भी देखी। उन की सरलता और शालीनता भी देखी। ज़मीन पर उन के साथ बैठ कर खाना भी खाया। उन्हों ने अपना पत्तल भी खुद उठाया। जब कि वृद्धावस्था के चलते उन का उठना बैठना बहुत सरल नहीं था। उन से पूछा कि आप ने चित्रकूट ही क्यों चुना सेवा के लिए तो वह बोले मुझे वनवासी राम की ही छवि अच्छी लगती है। राजा राम की नहीं।

कभी सक्रिय राजनीति करने वाले नाना जी देशमुख तब राजनीति के बारे में कोई बात नहीं करना चाहते थे। २० साल हो गए थे तब उन्हें राजनीति से संन्यास लिए हुए। नाना जी देशमुख उत्तर प्रदेश में तब की बसपा भाजपा की साझा सरकार के बारे में कहने लगे कि, ‘मैं इस सरकार के बारे में कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता। खास कर उस सरकार के बारे में जहां दोनों दल एक दूसरे को सांप कह रहे हों।’ वह कहने लगे, ‘इस चक्कर में एक दूसरे का मज़ाक उड़ाना तो राजनीति में आम बात हो गई है।’ पेश है नाना जी से देशमुख से खास बात-चीत :

क्या लोग आप से मिलने नहीं आते?
-मुझे क्या मतलब? कोई आए न आए।

कोई भी साथी नहीं आता?
-अभी तक तो नहीं आया। हां चंद्रशेखर आता है। एन. डी. तिवारी भी, पर इन से भी राजनीति पर बात नहीं होती।

आप के साथी आप से मिलने नहीं आते तो आप को तकलीफ़ नहीं होती?
-नहीं। लेकिन जब और कोई मिलने आता है वह कोई भी हो मैं सब से मिलता हूं, पर राजनीति पर बात नहीं करता। वैसे मुलायम भी मेरे मित्र हैं।

मुलायम जो जातिवादी राजनीति कर रहे हैं?
-तो मैं क्या कर सकता हूं?

वह इन दिनों हरिजन एक्ट खत्म करने की बात कर रहे हैं।
-वह चाहे जो करें- हम से क्या?

आप को नहीं लगता कि राजनीति में अच्छे लोगों को होना चाहिए?
-बिलकुल होना चाहिए। हर जगह अच्छे लोग रहने चाहिए।

तो फिर आप राजनीति क्यों छोड़ बैठे?
-मुझे रास नहीं आई। लगा कि यहां ज़्यादा अच्छा काम कर सकता हूं।

तो जितने समय आप ने राजनीति की वह समय आप का व्यर्थ गया?
-व्यर्थ क्यों गया? वह भी एक अनुभव था। वहीं रह कर जाना कि यह काम मैं ज़्यादा अच्छा कर सकता हूं।

यह काम राजनीति में रह कर भी कर सकते थे?
-इस दिशा में राजनीति में रह कर काम करना संभव नहीं था। उपेक्षित कामों को करने के लिए राजनीति छोड़ी।

आप को नहीं लगता कि राजनीति छोड़ कर गलती की?
-मुझे लगता है राजनीति छोड़ कर बहुत ठीक किया।

किस लिहाज़ से?
-मैं थोड़ा बहुत काम कर पा रहा हूं इस लिहाज़ से।

पर सरकार में रह कर आप इन योजनाओं के लिए बेहतर संसाधन जुटा सकते थे?
– यह आप का खयाल है। क्यों कि सरकार के भरोसे कुछ नहीं होता। सरकार के भरोसे अगर कुछ होता तो रुस फ़ेल नहीं होता। इस देश में ऐसे भी शासक रहे हैं जिन के शासनकाल में सूरज डूबता नहीं था। तो इन्हें भगाने वाले कौन सरकारी लोग थे? आप जानिए कि नौकरशाही में प्रेरणा नहीं होती, पर युवकों में होती है। कष्ट सह कर देश के लिए यह काम कर सकता है। राजा हो कर देश की समस्याएं नहीं सुलझा सकता कोई। राजा हो कर राम भी पराक्रमी नहीं बने। वह तो वनवासी हो कर ही पराक्रमी बने। तो समाज में काम करना ज़रुरी है, सरकार में काम करना ज़रुरी नहीं है।

संसाधन जुटाने में दिक्कत नहीं होती?
-संसाधन से तो लोग भाग रहे हैं। सारे प्राकृतिक संसाधन गांव में हैं। शहरों में न खेत हैं, न जंगल, न भूगर्भ पदार्थ, न पशु। इन संसाधनों को ले कर लोग गांवों में भी संपन्न ह्जो सकते हैं। पर लोग तो शहरों में भाग रहे हैं। झोपड़पट्टी जीवन जीने के लिए। कोई उन्हें बताने वाला नहीं।

सुना है आप अपने प्रोजेक्टस के लिए विदेशी एजेंसियों से अनुदान नहीं लेते?
-विदेशी धन से आत्म-निर्भरता हम प्राप्त नहीं कर सकते। दूसरे यह हमारी स्वतंत्रता पर चोट करता है। हम देश को स्वावलंबन और स्वाभिमान के आधार पर खड़ा करना चाहते हैं। हां विदेशों से आर्तिक सहायता की जगह तकनीकी सहायता लेना उपयोगी हो सकता है।

आप को नहीं लगता कि आप ने बहुत कठिन रास्ता चुन लिया?
-कठिन क्यों मस्ती भरा है। वैसे तो ज़िंदगी भी कठिन है।

देश के वर्तमान हालात पर कुछ कहेंगे?
-देश के हालात अखबारों से पता चलता है। पर अखबार तथ्यों से कम सनसनीखेज खबरों में ज़्यादा विश्वास करते हैं। इस का कारण है कि जो राजनीति चल रही है, वह जनहित का विचार कम कर रही है। राजनीतिज्ञ दूसरों की विफलता और बदनामी कर अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाना चाहता है। देश में विषमता दिन प्रतिदिन बढ़ रही है। बेकारी और प्रदूषण बढ़ रहा है। पर्यावरण बिगड़ रहा है। प्राकृतिक संसाधन घट रहे हैं। हर एक दल सदस्यता अभियान चलाता है, मतदाताओं को अपने अनुकूल बनाता है, पर इन समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए कोई दल कुछ नहीं कर रहा है। अब बताइए लालू आरोप लगा रहे हैं कि देवगौड़ा उन के यहां छापे डलवा रहे हैं तो देवगौड़ा कुछ कह रहे हैं। दोनों एक दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं। देश की हालत यह है तो क्या कहें?

एक बात और इन तमाम कमों के लिए आप को कभी फंड आदि की दिक्कत नहीं होती?
-कभी नहीं। तमाम लोग फंड ले कर खुद मेरे पास आते हैं। जितना उचित समझता हूं, रख लेता हूं। बाकी वापस दे देता हूं।

यह कौन लोग हैं आप को फंड करने वाले?
-तमाम लोग। बहुत सारे उद्योगपति। राजनीतिक लोग भी। आम लोग भी। लेकिन मैं कभी किसी के पास पैसा मांगने नहीं जाता। जिस को देना होता है खुद आता है यहां चित्रकूट में। यह मुलायम और चंद्रशेखर जैसे लोग कहते हैं कि हमारे इटावा भी चलिए, बलिया चलिए। ऐसा ही कोई काम अपनी स्वतंत्रता से करिए। कोई दिक्कत नहीं होगी। ऐसे और भी बहुत से लोग हैं। हर जगह बुलाते रहते हैं।

तो आप क्यों नहीं चले जाते?
-अब उम्र हो गई है। इतनी क्षमता नहीं रह गई है। यही जो शुरु किया है, निभा ले जाऊं तो बहुत है। अपने ऊपर दाग भी नहीं लगाना चाहता।

एक व्यक्तिगत सवाल पूछना चाहता हूं।
-पूछिए। नि:संकोच पूछिए।

आप को क्या लगता है कि विवाह न कर के आप ने ठीक किया किया कि गलत?
-अब इस सवाल का कोई महत्व नहीं रह गया है।

फिर भी?
– हां यह सच है कि अगर विवाह किए होता तो जीवन में ज़्यादा ऊर्जा होती। जीवन ज़्यादा बेहतर होता। समाज में और बेहतर काम करना संभव बन पाया होता।

तो विवाह न कर के पछताते हैं आप?
ऐसा भी नहीं है। कह कर वह मुसकुराते हैं। अब जो हो गया है , हो गया है। अब जो आगे वही सत्य है, सुंदर है।

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