रोशनी के त्योहार के बीच शहरी चुनौतियों से निपटने के सबक

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(दीवाली का मुरब्बा: थोड़ा खट्टा थोड़ा मीठा)

घर-आँगन रोशन करने वाला त्योहार दीपावली पूरे भारत के करोड़ों घरों में खुशी और समृद्धि लाता है. रोशनी की चकाचौंध और उपहारों के आदान-प्रदान के बीच, इस प्रिय त्योहार और शहरी विकास के महत्वपूर्ण मुद्दों के बीच के गहरे संबंधों को आसानी से नजरअंदाज कर दिया जाता है. अक्सर इन संबंधों पर किसी का ध्यान नहीं जाता है. त्योहार के जश्न के बीच, दिवाली शहरी भारत की जटिल चुनौतियों के समाधान पर प्रकाश डालने वाली मूल्यवान अंतर्दृष्टि और आशा की किरण प्रदान करती है. यह लेख दिवाली और शहरी विकास के बीच के जटिल अंतरसंबंध का पता लगाता है. साथ ही बताता है कि उन्नत और बेहतर शहरी जीवन की हमारी आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए इस भव्य उत्सव से हम क्या सबक हासिल कर सकते हैं.

वायु प्रदूषण और स्वच्छ ऊर्जा

एक बार फिर वह समय आ गया है जब वायु प्रदूषण बहुत ज्यादा बढ़ जाता है. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के एक हालिया अध्ययन के अनुसार, दिवाली के दौरान कई अहम शहरों में वायु गुणवत्ता सूचकांक गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं पैदा करने वाले खतरनाक स्तर तक पहुँच जाता  है. इस जानलेवा आबो-हवा के कारण, स्वच्छ ऊर्जा विकल्पों को अपनाने की मांग करना और पर्यावरण-अनुकूल समारोहों का आयोजन पहले से कहीं अधिक जरूरी हो गया है. दिवाली स्वच्छ ऊर्जा और टिकाऊ व्यवहारों के बारे में सोचने-विचारने और इन्हें अपनाने के लिए पहल करने का सुनहरा मौका है. उत्सव मनाने के तरीके बदलकर और त्यौहार मनाने के रोमांचकारी लेकिन “नीरस” तरीकों को अपनाकर शहर इस दिशा में पहल कर सकते हैं. हमें कान-फोडू और अप्रिय आतिशबाजी की क्या ज़रूरत है जब हमारे पास शोर रहित और पर्यावरण-अनुकूल विकल्प मौजूद हैं? एक बार फिर से दिवाली आ गई है. यह वायु प्रदूषण कम करने और वायु गुणवत्ता में सुधार हेतु सांकेतिक प्रयास करने का समय भी है. ऐसा करते हुए मन-ही-मन यह यकीन बनाए रखना चाहिए कि धुंध से भरे उल्लास के उन खुशनुमा सुबहों को वापस लाया जा सकता है. दिवाली से हमें पर्यावरण संबंधी जिम्मेदारी के बारे में व्यवहारिक और बहुत खास सीख मिलती है.

अपशिष्ट प्रबंधन और पर्यावरण संबंधी जिम्मेदारी

दिवाली के बाद सडकों पर कूड़ा-कर्कट और इस्तेमाल किए गए पटाखों के रंगीन कचरे का ढेर लग जाता है. यह हमारे अपशिष्ट कुप्रबंधन का ‘आर्ट इंस्टालेशन’ जैसा है. इस समस्या की भयावहता इन आंकड़ों से स्पष्ट हो जाती है कि त्योहार के दौरान शहर अनुमानित 6 लाख मीट्रिक टन कचरा पैदा करते हैं. कचरे की इस विशाल मात्रा से नगर निगमों के अपशिष्ट प्रबंधन संबंधी संसाधनों पर काफी दबाव पड़ता है. जबकि दिवाली रोशनी और खुशियों का त्योहार है, लेकिन त्योहार के बाद सड़कें बिल्कुल भी खुशनुमा नहीं दिखाई देती हैं. दिवाली अपशिष्ट संग्रह और इसके निपटान के बारे में प्रशिक्षण देने वाला सबसे उपयुक्त क्रैश कोर्स है. यह बताता है कि हमें वास्तविक जीवन में क्या-क्या नहीं करना चाहिए. दिवाली हमें सामूहिक रूप से याद दिलाती है कि सड़कों की साफ़-सफाई जरूरी है और ऐसा जल्द-से-जल्द किया जाना चाहिए. इस मौके पर हम अनचाहे ही सही झाडू और कूड़ेदान को जब हाथ लगाते हैं तब हम कुशल और टिकाऊ अपशिष्ट प्रबंधन के अहमियत के बारे में सोचने से खुद को रोक नहीं पाते हैं. दिवाली के बाद के नजारे प्रभावी अपशिष्ट प्रबंधन रणनीतियों की तत्काल आवश्यकता और पर्यावरण से जुड़ी जिम्मेदारी की सख्ती से याद दिलाते हैं. अब समय आ गया है कि कचरा निपटान के पुराने तौर-तरीकों और उपायों की जगह अधिक ईमानदार दृष्टिकोण अपनाए जाएं. दिवाली का त्योहार हमें अपनी उन जरूरतों की याद दिलाता है जिनके बारे में हमें नहीं पता था. यह हमें दिखाता है कि सबसे खराब समय में आशा की किरण मौजूद होती है!

समावेशन और सामाजिक समानता

दिवाली समानता लाने वाला महान त्योहार है! रोशनी, मिठाइयों और फुलझड़ियों का त्योहार साल में एक बार याद दिलाता है कि हमें समावेशी होने पर विचार करना चाहिए और उन खतरनाक सामाजिक एवं आर्थिक असमानताओं को दूर करना चाहिए जो हमारे शहरी क्षेत्रों में साल भर समस्याएं पैदा करती हैं. दिवाली की सद्भावना का प्रकाश हमारे शहरी परिदृश्य के सामाजिक असमानताओं का मार्मिक प्रतिबिंब है. दिवाली वास्तव में विविध लोगों को एक साथ लाने का अद्भुत अवसर है. यह किसी परी कथा की तरह है जहां समुदाय अद्भुत तरीके से अपनी विविधता का जश्न मनाने का निर्णय लेते हैं और वस्तुतः समानता कायम होती है. आतिशबाजी और मनोहारी रोशनी की शक्ति को सलाम! विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक त्योहार के दौरान हाशिए के समुदाय अक्सर ज्यादा असुरक्षित हो जाते हैं, जिससे समावेशी नीतियां बनाने और समान संसाधन वितरण की आवश्यकता ज्यादा बढ़ जाती है. आइए दिवाली को सामाजिक एकता को बढ़ावा देने और हमारे शहरों में व्याप्त गहरी असमानताओं को दूर करने का अवसर बनाएं.

ऊर्जा दक्षता और टिकाऊ जीवन पद्धतियाँ

दिवाली के दौरान ऊर्जा की खपत आश्चर्यजनक स्तर तक बढ़ जाती है क्योंकि इस दौरान हम रात के अँधेरे को असाधारण रोशनी से चकाचौंध करते हैं. यह साल का वह समय है जब हम अपनी असाधारण प्रकाश व्यवस्था और सजावट से सितारों को भी मात देने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं! यह लगभग ब्रह्मांड के साथ प्रतिस्पर्धा करने जैसा है. मानो हमने यह साबित करने के लिए कमर कस ली हो कि कोई भी खगोलीय पिंड हमें उतना रोशन नहीं कर सकता जितना हम खुद को कर सकते हैं. जब आप एलईडी की असाधारण चमक का आनंद ले सकते हैं तो फीके, पुराने ढंग के और ऊर्जा की ज्यादा खपत करने वाली रोशनी की जरूरत किसे है? बिजली मंत्रालय के अनुसार, त्योहार के दौरान ऊर्जा की मांग में लगभग 3000 मेगावाट की अभूतपूर्व वृद्धि देखी गई. इस बहुत ज्यादा ऊर्जा उपभोग के बीच, लेकिन आकाशगंगा को उखाड़ फेंकने की हमारी निरंतर खोज में, हम अनजाने में ऊर्जा दक्षता के बारे में मूल्यवान सीख प्रदान करते हैं. दिवाली ऊर्जा दक्षता के मुद्दे को आगे बढ़ाने और टिकाऊ जीवन पद्धतियाँ अपनाने को बढ़ावा देने का उपयुक्त अवसर प्रस्तुत करती है. दिवाली के जश्न में, जब हम रात ऐसे रोशन करते हैं जैसे कि कल आने वाला ही न हो, हमें सौर ऊर्जा की अहमियत पर विचार करना चाहिए क्योंकि हम सभी जानते हैं कि पर्यावरण-अनुकूल तकनीक में निवेश करने से ज्यादा विवेकपूर्ण कुछ भी नहीं है. इस तरह, दिवाली वह त्योहार है जो हमें याद दिलाता है कि टिकाऊ जीवन पद्धतियाँ पर्यावरण के प्रति जिम्मेदार होती हैं और इनकी आर्थिक लागत बिल्कुल उपयुक्त होती हैं.

आर्थिक विकास और रोजगार सृजन

यह साल का वह समय है जब हमारी अर्थव्यवस्था तेजी से आगे बढ़ती है! यह लगभग वैसा ही है जैसे हमने हमेशा बनी रहने वाली समृद्धि का रहस्य खोज लिया हो. मेरे दोस्तों, वह रहस्य रोशनी का त्योहार है. दिवाली बाजार के फलने-फूलने का मंच है, जो स्थानीय व्यवसायों और कारीगरों को मौका देती है. भारतीय उद्योग परिसंघ के अनुसार, विभिन्न क्षेत्रों की वार्षिक बिक्री की लगभग 30% बिक्री त्योहार के दौरान होती है, जिससे अर्थव्यवस्था को काफी बढ़ावा मिलता है और अनगिनत व्यक्तियों के लिए रोजगार के अवसर पैदा होते हैं. यह माननीय प्रधानमंत्री के “लोकल द वोकल” के विज़न को साकार करने का मौका है. छोटे व्यवसायों, स्टार्टअप और स्थानीय कारीगरों को बढ़ावा देकर हमारे शहरों को समृद्ध बनाने के सपने को साकार करने का यह सही अवसर है. दिवाली साल का वह समय है जब हम अविश्वसनीय तरीके से आर्थिक जादूगरों में बदल जाते हैं!

शहरी नियोजन और बुनियादी ढाँचा विकास

दिवाली वह त्योहार है जो हमें सुनियोजित शहरी विकास के महत्व के प्रति हर साल जागरूक करती है. यह नए बुनियादी ढांचे और रियल एस्टेट परियोजनाओं के भव्य उद्धघाटन के साथ मेल खाता है! यह लगभग वैसा ही है मानो निर्माण उद्योग और त्योहार के मौसम का कैलेंडर एक साथ तैयार किया गया हो. दीवाली के भारी ट्रैफिक में फंसे होने पर या अपने अपर्याप्त आवास में रहते हुए या फिर सार्वजनिक परिवहन के दुःस्वप्न पर विचार करते हुए, हम प्रभावी शहरी नियोजन के ज़रूरत पर विचार करने के अलावा कुछ नहीं कर सकते हैं. उत्सवों की हलचल के बीच, शहरी नियोजन और बुनियादी ढांचे के विकास की कमियाँ पूरी तरह सामने आ जाती हैं. हम सभी दिवाली के दौरान पर्याप्त आवास और सुव्यवस्थित परिवहन व्यवस्था उपलब्ध कराने में लगातार पेश आने वाली चुनौतियों के बारे में जानते हैं, जो रणनीतिक शहरी नियोजन की तात्कालिक ज़रूरत को सामने लाता है. दिवाली हमें मजबूत शहरी बुनियादी ढांचे में निवेश करने, संपर्क के लिए निर्बाध परिवहन को बढ़ावा देने और सभी के लिए टिकाऊ जीवन पद्धतियाँ उपलब्ध कराने की दिशा में मार्गदर्शन करने वाला आकाशदीप हो सकता है.

रोशनी का त्योहार एक विशाल नियॉन साइन बोर्ड की तरह है जो याद दिलाता है कि “स्मार्ट शहरी बुनियादी ढांचे में निवेश करें!” सुगम यातायात, किफायती आवास और कुशल परिवहन की आकांक्षाओं के साथ कौन छुट्टियाँ नहीं मनाना चाहेगा? तो, दिवाली वह त्योहार जो हमें रणनीतिक शहरी नियोजन की फायदों की याद दिलाता है.

इस तरह, दिवाली भारत का सबसे बड़े त्योहार है जिसका जश्न मनाने से हम खुद को रोक नहीं सकते हैं लेकिन यह चिंताजनक स्वास्थ्य समस्याएं पैदा करने का एक मौका भी बन जाता है. ऐसे में समाधान उत्सव और समृद्धि के बीच नाजुक संतुलन स्थापित करने में है, जो केवल विवेकपूर्ण और कुशल शहरी नियोजन से ही हासिल किया जा सकता है. यदि शहरी बुनियादी ढांचा पर्याप्त और तैयार है, तो दिवाली की आर्थिक गतिविधियों का लाभ उठाकर टिकाऊ विकास के रास्ते पर आगे बढ़ा जा सकता है और हमारे शहरों के भीतर जीवट उद्यमशीलता को बढ़ावा दिया जा सकता है.

संक्षेप में, दिवाली एक उत्सव और सम्मोहक कहानी है जो हमें शहरी विकास की जटिल वास्तविकताओं का सामना करने के लिए प्रेरित करती है. यह हमें अपने शहरों को फिर से ऐसे संपन्न केंद्रों के रूप में कल्पना करने के लिए प्रेरित करता है जो टिकाऊ, समावेशी और जीवट हों. जहां रोशनी का त्योहार समग्र परिवर्तन के लिए उत्प्रेरक और उज्जवल एवं सेहतमंद भविष्य के लिए आशा की किरण बन जाता है. एकता, समृद्धि और स्थिरता के सुंदर मूल्यों को बढ़ावा देने वाला यह त्योहार दोस्ताना संकेत है, जो हमारे शहरी क्षेत्रों को प्रेरित और प्रोत्साहित करता है. आइए दिवाली से सीखें और पूरे यकीन से उज्जवल, अधिक समावेशी और टिकाऊ भविष्य की ओर बढ़ें.

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हितेश वैद्य

हितेश वैद्य

श्री हितेश वैद्य नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ अर्बन अफेयर्स के निदेशक रह चुके हैं। उनके पास शहरी प्रबंधन, शहरी प्रशासन और क्षमता निर्माण के क्षेत्र में 20 वर्षों से अधिक का अनुभव है। वह कई शहरी स्थानीय निकायों को तकनीकी सहायता और क्षमता निर्माण सहायता प्रदान करने और स्थानीय स्तर पर महत्वपूर्ण शहरी सुधार स्थापित करने में शामिल रहे हैं। वह कार्यक्रम के परिणाम देने में सहायता के लिए रणनीति विकसित करने सहित संस्थागत क्षमताओं में सुधार करने का मजबूत प्रदर्शनात्मक अनुभव अपने साथ लाते हैं। वह संयुक्त राष्ट्र, विश्व बैंक, यूएस एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (यूएसएआईडी) के कार्यों के साथ शहरी विकास, शहरी प्रशासन और शहरी बुनियादी ढांचा प्रबंधन के क्षेत्रों से जुड़े रहे हैं। उनके सभी कार्यों में गरीबी उन्मूलन एक अभिन्न अंग रहा है। एनआईयूए में शामिल होने से पहले, वह भारत में यूएन-हैबिटेट के देश प्रतिनिधि थे। वह सतत विकास लक्ष्यों को स्थानीयकृत करने सहित शहरी कार्यक्रमों को डिजाइन करने और लागू करने के लिए एक इको-सिस्टम का समर्थन करने में गहनता से शामिल थे।

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