भारत के विकास की प्रेरणा स्वधर्म, स्वदेशी और स्वराज की ‘स्व’ त्रयी में निहित है, जिसमें समस्त समाज की सहभागिता रहे। स्वाधीनता के अमृत महोत्सव के पावन अवसर पर इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि हमें सुसंगठित, विजयशाली व समृद्ध राष्ट्र बनाने की प्रक्रिया में समाज के सभी वर्गों के लिए मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति, सर्वांगीण विकास के अवसर, तकनीक का विवेकपूर्ण उपयोग एवं पर्यावरणपूरक विकास सहित आधुनिकीकरण की भारतीय संकल्पना के आधार पर नए प्रतिमान खड़े करने जैसी चुनौतियों से पार पाना है
राष्ट्र के नवोत्थान के लिए हमें परिवार संस्था का दृढ़ीकरण, बंधुता पर आधारित समरस समाज का निर्माण तथा स्वदेशी भाव के साथ उद्यमिता का विकास आदि उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए विशेष प्रयास करना है। निश्चित तौर पर इस संकल्प को पूरा करना एक समाज के नाते हम सबके लिए आसान नहीं होगा। इस दृष्टि से समाज के सभी घटकों, विशेषकर युवा वर्ग को समन्वित प्रयास करने की आवश्यकता होगी। संघर्षकाल में विदेशी शासन से मुक्ति हेतु जिस प्रकार त्याग और बलिदान की आवश्यकता थी; उसी प्रकार वर्तमान समय में उपर्युक्त लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए नागरिक कर्तव्य के प्रति प्रतिबद्ध तथा औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्त समाज जीवन भी खड़ा करने की दिशा में काम करना होगा।
*जम रही है दुनिया में भारत की धाक*
स्वाधीनता प्राप्ति के उपरांत हमने अनेक क्षेत्रों में महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ प्राप्त की हैं। भारतवंशी प्रतिभाशाली युवाओं ने दुनिया भर में भारत के ज्ञान और मेधा का झंडा फहराया है। आज भारत की अर्थव्यवस्था विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक बनकर उभर रही है। भारत के सनातन मूल्यों के आधार पर होने वाले नवोत्थान को पूरी दुनिया स्वीकार कर रही है। विश्व शांति, विश्व बंधुत्व और मानव कल्याण के लिए भारत अपनी भूमिका निभाने के लिए भारत ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की नीति पर अग्रसर है।
विश्व कल्याण के उदात्त लक्ष्य को मूर्तरूप प्रदान करने हेतु भारत के ‘स्व’ की सुदीर्घ यात्रा हम सभी के लिए सदैव प्रेरणास्रोत रही है। जैसाकि हम जानते हैं, सैकड़ों सालों तक चले विदेशी आक्रमणों तथा संघर्ष के काल में भारतीय जनजीवन अस्त-व्यस्त हुआ तथा सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक व धार्मिक व्यवस्थाओं को गहरी चोट पहुँची। भारत की यात्रा इस कालखंड में बाधित हुई, बावजूद इसके पूज्य संतों व महापुरुषों के नेतृत्व में संपूर्ण समाज ने अपना संघर्ष का रास्ता नहीं छोड़ा और अपने ‘स्व’ को बचाए रखा। यह स्व था, जिसने हमें मिटने नहीं दिया। तमाम कठिनाइयों और विपरित परिस्थितियों में हमें बचाए रखा।
*आसान नहीं है आगे का रास्ता*
जहाँ अनेक देश भारत के प्रति सम्मान और सद्भाव रखते हैं, वहीं भारत के ‘स्व’ आधारित इस पुनरुत्थान को विश्व की कुछ शक्तियाँ स्वीकार नहीं कर पा रही हैं। हिंदुत्व के विचार का विरोध करने वाली देश के भीतर और बाहर की अनेक शक्तियाँ निहित स्वार्थों और भेदों को उभार कर समाज में परस्पर अविश्वास, राष्ट्र के प्रति अनास्था और अराजकता पैदा करने हेतु नए-नए षड्यंत्र रच रही हैं। हमें इन सबके प्रति जागरूक रहते हुए उनके मंतव्यों को भी विफल करना होगा। यह अमृतकाल हमें भारत को वैश्विक नेतृत्व प्राप्त कराने के लिए सामूहिक उद्यम करने का अवसर प्रदान कर रहा है।
भारत के अंदर और बाहर की ऐसी शक्तियों से भी हमें निश्चित तौर पर टकराना है, जो अलग अलग तरह से भारत के विकास में बाधा उत्पन्न करेंगी। वे शक्तियां भारत को बदनाम करने के लिए कोई भी अवसर नहीं छोड़ेंगी। इसके लिए वह आंदोलन और समाचार माध्यमों का भी सहारा लेंगी। सोशल मीडिया के माध्यम से वह अफवाह को सच की तरह फैलाएंगी। उनकी पहचान करना और उनके षडयंत्रों को सफल नहीं होने देना, आने वाले समय में हम सबके सामने एक बड़ी चुनौती बनने
वाली है।
*भारत के सामने आंतरिक—बाहरी शक्तियों से सुरक्षा की चुनौती*
संघर्षकाल में विदेशी शासन से मुक्ति हेतु जिस प्रकार त्याग और बलिदान की आवश्यकता थी, उसी प्रकार वर्तमान समय में उपर्युक्त लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए नागरिक कर्तव्य के प्रति प्रतिबद्ध तथा औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्त समाज जीवन भी खड़ा करना होगा। यह सब पढ़ने में आसान लग सकता है, लेकिन व्यवहार में उतारना आसान नहीं होगा। आज जहां दुनिया में भारत की धाक को महसूस किया जा रहा है। भारत के पासपोर्ट को अब दूसरे देशों में सम्मान से देखा जा रहा है। दूसरे देशों में कठीनाई में फंसे नागरिकों को निकालने के लिए दुनिया भर के देश भारत से संपर्क कर रहे हैं। आज जब पूरी दुनिया में भारत ने अपने लिए एक विशेष स्थान बनाया है। वहीं कई देश भारत की इस बढ़ती ताकत को पसंद नहीं कर रहे।
भारत के अंदर भी अर्बन नक्सल शक्तियां, टुकड़े टुकड़े गैंग, एफसीआरए से पैसा लेकर भारत विरोधी गतिविधियों में लगी एनजीओ जैसे कई समूह भारत के खिलाफ अपना एजेन्डा लेकर सक्रिय हैं। यह कभी किसानों के नाम पर, कभी सीएए के नाम पर, कभी एनआरसी के नाम पर दिल्ली में दंगा कराने में सफलता पा जाते हैं तो कभी दिल्ली को चारों तरफ से घेरने की योजना बना लेते हैं। ये ताकतें लाल किले पर चढ़ कर निशान साहब लहराकर देश का साम्प्रदायिक सदभाव बिगाड़ने की कोशिश भी करती हैं। यह हम सबके लिए सावधानी बरतते हुए, ना सिर्फ खुद इन बातों को लेकर जागरूक रहने का बल्कि अपने आस पास के समाज को भी जागरूक करने का समय है। यदि हम ऐसा कर पाते हैं तो इस तरह से भी हम देश के विकास में अपना योगदान दे सकते हैं।
यह बात हमें भूलनी नहीं है कि अमृतकाल भारत को वैश्विक नेतृत्व प्राप्त कराने के लिए सामूहिक उद्यम करने का हम सबको अवसर प्रदान कर रहा है। आइए, हम सबसे जितना बन पड़ता है, भारत को वैभवशाली देश बनाने में उतना अपना योगदान करें।