अनुपम के सिंह
दिल्ली । जज: FIR की कॉपी ला कर दीजिए।
सरकारी वकील: हमारी जानकारी में कोई FIR नहीं है।
जज: फिर मैं लिख देता हूँ कि उक्त व्यक्तियों पर राज्य में कोई FIR नहीं है।
वकील: नहीं-नहीं… हो सकता है हो भी! लेकिन इतना बड़ा राज्य है, हमें कैसे पता होगा…
जज: तो पता कीजिए… सप्ताह भर बाद हमें FIR (यदि हुई है) की कॉपी चाहिए।
वकील: जी!
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पत्रकारों को धमकाने के लिए राज्य सरकारें किस स्तर तक जाती हैं, उसका यह एक उदाहरण मात्र है। FIR की बातें सोशल मीडिया पर डाल दो कि हमने सैकड़ों लोगों पर FIR कर दी है। बड़े नेताओं से पोस्ट करवाओ कि अब तो इनकी खैर नहीं।
राजनैतिक रोटी सेंकने के लिए पत्रकार तवा बन जाते हैं। दो दिन का हो-हल्ला होता है, बात दब जाती है। उनका लक्ष्य सध जाता है कि हम फलाँ समूह के लिए बहुत चिंतित हैं। उनको नया विषय मिल जाता है।
एक पत्रकार के समक्ष दो विकल्प होते हैं। डर कर बोलना-लिखना छोड़ दे, यह स्वीकार ले कि सरकार से आप नहीं भाग सकते। या यह कि, चाहे जो हो जाए हम जो कर रहे हैं, वो करते रहेंगे।
मेरे जैसे व्यक्ति के लिए तो स्थिति और विचित्र होती है। हमें न्याय भी वहीं से माँगना होता है, जिस संस्था की आलोचना हम करते रहे हैं। यह भी सत्य है कि पूरी संस्था में हर कोई यशवंत वर्मा ही नहीं होता, कुछ कर्तव्यनिष्ठ लोग भी होते हैं।
आप आशा की वही डोर पकड़ कर इस युद्ध में उतरते हैं।



