उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सनातन हिंदू समाज की आस्था की रक्षा करने के लिए एक ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए प्रदेश में हलाल प्रमाणित उत्पादों की बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है। इसके बाद से ही प्रदेश की खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन की टीमें व एटीएस सक्रिय हो गई हैं, पूरे प्रदेश में छापामारी चल रही है और भारी मात्रा में अवैध रूप से प्रमाणित हलाल उत्पादों की जब्ती भी की जा चुकी है जिसके कारण अवैध रूप से हलाल प्रमाणन का गोरख धंधा करने वाले गिरोहों व संगठनों में खलबली मच गयी है वहीं समाजवादी पार्टी, बहुजन समाजवादी पार्टी और कांग्रेस सहित सभी विरोधी दल इसे मुस्लिम तुष्टिकरण नीति को धार देने के लिए प्रयोग करते दिख रहे हैं ।
एक अनुमान के अनुसार अवैध रूप से चल रहा हलाल प्रमाणन का गोरखधंधा लगभग 3000 करोड़ से अधिक का है और इस धन का दुरुपयोग राष्ट्रविरोधी गतिविधियों व आतंकवादी संगठनों की मदद करने के लिए किया जा रहा है। हलाल प्रमाणन का धंधा केवल उत्तर प्रदेश में ही नहीं अपितु संपूर्ण भारत में चल रहा है और इस धंधे का भारत में आगमन 1974 में एक घृणित साजिश के तहत हुआ था। हलाल प्रमाणन की प्रक्रिया एक देश दो विधानवाली तथा संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ है।
प्रदेश सरकार ने हलाल प्रमाणन के इस अवैध धंधे को पूरी तरह से रोकने के लिए लखनऊ की हजरतगंज कोतवाली में शैलेंद्र कुमार शर्मा की शिकायत पर विभिन्न संगठनों पर एक एफआईआर दर्ज कवाई है, जिनमें हलाल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड चेन्नई, जमीयत उलेमा हिंद हलाल ट्रस्ट दिल्ली व लखनऊ, हलाल काउंसिल ऑफ इंडिया मुंबई और कुछ अन्य कंपनियां शामिल हैं।
भारत से बड़ी मात्रा में खााद्य उत्पादों का निर्यात सिंगापुर, मलेशिया, सऊदी अरब, कतर आदि खाड़ी देशों और कई अंतरराष्ट्रीय बाजारों में होता है जहां बड़ी संख्या में इस्लामिक आबादी है। ऐसे में देश की अधिकांश कंपनियां अपने उत्पादों के लिए हलाल सार्टिफिकेशन करवाती हैं। दुर्भाग्यवश भारत में हलाल प्रमाणन के लिए कोई सरकारी कंपनी नहीं है जिसके कारण यह ठग कंपनियां अनुचित व अवैध धंधा करने में कामयाब हो रही हैं। ये अकूत धन कमा रही हैं और उसे देश के विरुद्ध इस्तेमाल कर रही हैं । इन कंपनियों के सम्बन्ध अलग अलग आतंकवादी संगठनों से होने की आशंका है।
उत्तर प्रदेश में हलाल प्रमाणित उत्पादों पर प्रतिंबध से इस बेहद गम्भीर व खतरनाक विषय पर राष्ट्रव्यापी बहस आरम्भ हो गयी है। हलाल उत्पादों पर प्रतिबन्ध का समर्थन करने वाले लोग कह रहे हैं कि इस अवैध धंधे पर संपूर्ण भारत में प्रतिबंध लगना चाहिए। यह बात सही भी है कि हलाल उत्पादों पर प्रतिबंध तभी प्रभावी होगा जब देश के सभी राज्यों में इस पर प्रतिबंध लगाया जाए और प्रमाणन पर एक कड़ा कानून बनाते हुए निर्यात की दृष्टि से प्रमाणन का यह कार्य किसी राष्ट्रीय संस्थान को दिया जाये।
हलाल का समर्थन करने वाले लोग संविधान की बार- बार दुहाई दे रहे हैं किंतु शायद इन लोगों को यह नहीं पता कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही भारत सरकार का अपना भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसआई) है। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने यूपी सरकार के कदमों का समर्थन करते हुए कहा कि सरकारी एजेंसियों को ही यह पता लगाना चाहिए कि खाद्य उत्पादों में किस तरह के रासायनिक संयोजक, कृत्रिम व हानिकारक तत्व मौजूद हैं।उन्होंने कहा कि सरकारी निकायों को यह प्रमाणित करने का अधिकार होना चाहिए कि लोगों के उपयोग के लिए कौन सा भोजन गुणवत्तापूर्ण है।
अवैध हलाल प्रमाणन के खिलाफ हो रही कार्यवाही का विरोध करने वाले बहसों के दौरान इस अवैध कृत्य को संवैधानिक बता रहे हैं, दावा कर रहे हैं कि हम जीएसटी दे रहे हैं और इनका मानना है कि हलाल प्रमाणित उत्पादों पर कार्यवाही करने से महंगाई बढ़ सकती है, बेरोजगारी बढ़ सकती है, बाजारों में खाद्य उत्पादों का संकट पैदा हो सकता है आदि -आदि । हलाल प्रामणित उत्पादों के पक्ष में यह भी दलील दी जा रही है कि यह मुस्लिम समाज के लिए धर्म व आस्था का विषय है।अगर यह मान भी लिया जाये कि हलाल प्रमाणन मुस्लिम समाज के लिए धर्म व आस्था का विषय है तो हिंदू समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग जो व्रत व उपवास के अवसर पर पूर्णरूप से शाकाहारी रहता है उसको हलाल प्रमाणन वाले खाद्य पदार्थ बेचकर उसकी आस्था पर क्यों चोट पहुंचाई जा रही है?
विभिन्न उत्पादों के हलाल प्रमाणन के गोरखधंधे में शामिल लोग धर्म – संविधान जैसे गलत तथ्यों की आड़ में कुतर्क कर रहे हैं, सनातन हिंदू सहित सिख, जैन, बौद्ध आदि विभिन्न मतावलंबियों की आस्था विश्वास और मान्यता से कोई सरोकार नहीं है । इन लोगों को केवल मजहब विशेष की ही आस्था दिखती है। हिंदू नवरात्र, हरितालिका , छठ, करवा चौथ जैसे पर्वों के अतिरिक्त नियमित व्रत जैसे सप्ताह के कोई एक दिन या कोई तिथि जैसे एकादशी, प्रदोष, पूर्णिमा आदि उपवास करते हैं और इन्हें हलाल प्रमाणित सेंधा नमक मिलता है। दूध व दुग्ध उत्पादों के पैकेटों पर हलाल लिखा जाने लगा है। साबुन शैम्पू तक का हलाल प्रमाणन हो रहा है ।
वास्तव में हलाल के दायरे में केवल मांसाहार आता है, हलाल मांस के लिए पशुवध की विशेष पीड़ादायक प्रक्रिया है किंतु प्रमाणन का धंधा करने वाले लोगों ने धीरे- धीरे सौंदर्य प्रसाधन सामग्री और दवाएं भी शामिल कर लीं जिनमें पशु रक्त, चर्बी, मांस, अल्कोहल आदि का उपयोग होता है। फिर लोगों को बेवक़ूफ़ बनाते हुए हलाल उत्पादों का दायरा शाकाहारी उत्पादों तक फैला दिया गया और दाल, चावल, आटा, मैदा, शहद, चायपत्ती, बिस्किट, मसाले, साबुन, टूथपेस्ट उत्पाद भी इसमें शामिल कर लिए गये। अब बस हवा, पानी को ही हलाल और हराम घोषित करना शेष रह गया है।उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में तो हद ही हो गयी है क्योंकि यहां पर तुलसी अर्क, धनिया पाउडर, एलोवेरा जूस और आईड्राप पैकिंग पर भी हलाल प्रिंट उत्पाद खूब बिक रहे हैं।
शिकायत कर्ता शैलेंद्र शर्मा का कहना है कि तुलसी जी हिंदू धर्म में माता के रूप में पूज्य हैं। अर्क की पैकिंग पर हलाल लिखा है इससे करोड़ों हिन्दुओं की आस्था पर चोट पहुंची हैं। आज विभिन्न चैनलों पर चल रही बहस के दौरान हलाल समर्थकों से सवाल पूछा जा रहा है कि आप लोग दूध, दाल, चावल सहित विभिन्न शाकाहारी वस्तुओं को हलाल कैसे करते हैं उसकी विधा क्या है तब उन लोगों के पास कोई जवाब नहीं रहता है।
निजी संगठनों द्वारा अवैध हलाल प्रमाणपत्र बांटना पूरी तरह से गैरकानूनी और अवैध है। कर्नाटक विधानसभा में भी हलाल पर पूर्ण प्रतिबंध के लिए एक निजी विधेयक आया था किंतु वह पास न हो सका। सुप्रीम कोर्ट में वर्ष 2020 से हलाल प्रमाणपत्र के खिलाफ एक याचिका विचाराधीन है जिसमें कहा गया है कि देश के 15 फीसदी लोगों के लिए 85 फीसदी आबादी को उनकी इच्छा के विरुद्ध हलाल प्रमाणित वस्तुओं के इस्तेमाल के लिए मजबूर किया जा रहा है अतः इस पर प्रतिबंध लगना चाहिए। वंदे भारत एक्सप्रेस में पवित्र श्रावण माह एक यात्री को हलाल प्रमाणित चाय देने पर उसके विरोध का वीडिओ वायरल हो चुका है।
प्रदेश सरकार ने हलाल सार्टिफिकेशन देने वाली कंपनियों के लिए पंजीकरण अनिवार्य कर दिया है। हलाल के लिए राष्ट्रीय प्रमाणन निकाय प्रत्यायन बोर्ड (एनएबीसीबी) से मान्यता लेना अनिवार्य है। डीजीएफटी के निर्देशों के अनुसार मीट को हलाल सर्टिफिकेट मिलने के बाद ही उसके उत्पादक को निर्यात करने की अनुमति दी जाती है किंतु अभी तक यह कंपनियां किसी भी नियम का पालन ही नहीं कर रही थी जबकि हलाल समर्थक प्रवक्ता बड़ी ही बेशर्मी से हलाल प्रमाणन को वैध धंघा बता रहे हैं। यहां पर यह सवाल उठना स्वाभाविक ही है कि दूध व उससे बने सभी उत्पादों को हलाल कैसे किया जाता है। आटा, दाल, चावल आदि को हलाल कैसे किया जा सकता है।
केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह का कहना है कि जिन चीजों का इस्लाम से कोई सम्बंध नहीं है उनका कारोबारी इस्लामीकरण हो रहा है। उन्होंने बिहार में भी हलाल प्रमाणित उत्पादों पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है। उत्तर प्रदेश सरकार ने हलाल प्रमाणित उत्पादों पर प्रतिबंध लगाकर सनातन हिंदू समाज की आस्था व संस्कृति को बचाने के लिए एक अत्यंत सराहनीय कार्य किया है और इस विषय पर हर हिंदू समाज के घर -घर में जागरूक गृहणियों ने उपयोग में आने वाले उत्पादों के पैकेट की जांच प्रारम्भ कर दी है कि कहीं उसमें हलाल तो नहीं लिखा है।यह जनजागरण का एक बड़ा महत्वपूर्ण विषय है जिसके माध्यम से मुसिलम संगठनों के नापाक मंसूबो को ध्वास्त किया जा सकता है।
हलाल एक अरबी शब्द है जो ऐसी प्रक्रिया को इंगित करता है जिसमें पशु का वध धीरे -धीरे अत्यंत पीड़ा देकर किया जाता है। इसका अर्थ होता है कानून सम्मत या जिसकी इजाजत शरिया कानून में दी गई है। ये शब्द खाने- पीने की मांसाहारी चीजों, कॉस्मेटिक्स, दवाइयों आदि पर लागू होता है। भारत देश का अपना एक संविधान है जो पशु संरक्षण भी करता है। भारत में हलाल प्रक्रिया अवैध है क्योंकि यहां पर शरीया कानून नहीं लागू है। अगर हिंदू समाज हलाल प्रमाणित उत्पादों का संपूर्ण बहिष्कार करना प्रारम्भ कर दे तो लाखों की संख्या में हमारा जो गोवंश काटा जा रहा है वह सुरक्षित हो जाएगा। हलाल का समर्थन करने वाले लोग हिंदू सनातन विरोधी और आतंकवाद का समर्थन करने वाले लोग हैं और यही लोग अभी हमास का समर्थन करते हुए भी दिखाई पड़ रहे थे। अतः हिंदू समाज जागृत होकर अपनी रसोई में अगर हलाल प्रमाणित पैकेट रखा हो तो उसे बाहर फेंक दे और अगला पैकेट वही ख़रीदे जिस पर हलाल प्रमाणित न लिखा हो।