12 वर्ष पूर्व पुनर्जीवित हुई थी सिमरिया कुंभ की परंपरा

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सिमरिया अर्धकुंभ का पहला पर्व (शाही) स्नान एकादशी तिथि बुधवार 25 अक्टूबर को सफलता पूर्वक संपन्न हो गया। प्रथम पर्व स्नान के अवसर पर सिमरिया कुंभ पुनर्जागरण प्रेरणा पुरुष राष्ट्र संत करपात्री अग्निहोत्री परमहंस स्वामी चिदात्मन जी महाराज की अगुवाई में निकली पर्व यात्रा। केन्द्रीय मंत्री अश्विनी कुमार चौबे अर्धकुंभ के प्रथम स्नान (अभिषेक) में शामिल हुए। पहले स्नान में कई पीठाधीश्वर, नागा साधु और देशभर से संत-महात्मा पधारे।

केन्द्रीय मंत्री ने सिमरिया कुंभ को पुनर्जीवित किए जाने को ऐतिहासिक करार दिया। उन्होंने मंदार पर्वत और बासुकीनाथ धाम के महत्व को भी रेखांकित किया‌। समुद्र मंथन से निकले चौदह रत्नों की विशेषता बताते हुए उन्होंने सिमरिया को विश्व के पर्यटन मानचित्र पर लाने की बात भी कही।‌

सिमरिया के ऐतिहासिक रामघाट की दलदल वाली खतरनाक स्थिति को देखते हुई अभिषेक स्नान का निर्णय लिया गया जो अतीव सफल रहा। बिहार प्रशासन की तरफ से सिमरिया के ऐतिहासिक रामघाट पर समुचित व्यवस्था नहीं कराए जाने को लेकर श्रद्धालुओं ने प्रतिक्रिया भी व्यक्त की।

ज्ञात को कि ठीक 12 वर्ष पूर्व बिहार की धरती पर एक सांस्कृतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक धारा की कड़ी प्रारंभ हुई। समुद्र मंथन की केन्द्रीय स्थली के रूप में मिथिलांचल की भूमि और मंथन के पश्चात निकाले अमृत के वितरण की स्थली के रूप में कल्पवास की पौराणिक भूमि सिमरिया की पुनर्प्रतिष्ठा हुई।

सिमरियाधाम गंगा नदी के पावन तट पर स्थित एक छोटा गांव है। बिहार के बेगूसराय जिले का हिस्सा। यहां का कण-कण भारत के प्राचीन गौरव की महिमा गाथा गाता है। प्रतापी राजा कर्ण ने इसी स्थान पर अपने दाह संस्कार की इच्छा जताई थी। वह पूरी भी हुई। सहस्त्रों वर्षों से यह कल्पवास की स्थली रही है। कल्पवास को कुंभ का अवशेष भी मानते हैं। यह स्थान महान कवि विद्यापति से भी जुड़ता है। कहते हैं माता सीता को विदाई दी जा रही थी तो मिथिला की सीमा होने के नाते जनकपुर के वासी उन्हें यहां तक छोड़ने आए थे। वर्तमान में यह स्थान राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर की जन्मस्थली के रूप में अधिक प्रसिद्ध है।‌

साक्ष्य और प्रमाण उद्घोष करते हैं कि समुद्र मंथन के पश्चात इसी स्थान पर भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर अमृत का वितरण किया था। 12 वर्ष पूर्व सिमरिया के पावन गंगा तट पर पिछले चार दशक से धुनि रमाए एक संत ने इस स्थान की महिमा का वर्णन किया। विद्वानों ने विचार मंथन कर इस तर्क की सहर्ष संस्तुति की। जनसामान्य ने उत्साह से कुंभ का आयोजन किया। देखते-देखते सिमरिया अर्धकुंभ भारत के प्राचीन गौरव का मानदंड लिए अध्यात्म – संस्कृति के क्षितिज पर दीपशिखा सम आलोकित हो उठा।

क्रम आगे बढ़ा, ठीक छह वर्ष बाद 2017 में महाकुंभ का अवसर आया। लोगों के उत्साह के आगे नतमस्तक बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कुंभ का ध्वजारोहण किया। भारतीय संस्कृति के संरक्षक अखाड़ों से निशान लेकर संत-महात्मा पधारे। नागा साधुओं ने अपनी साधना से वातावरण में ऊर्जा का संचार किया। लाखों की संख्या में स्नान-दान कर कुंभ की महिमा को स्थायी रूप दिया।

यह समय सनातन के जागरण का है। यह समय धर्म संस्कृति के प्रति हमारे कर्तव्य की पूर्ति का है। आशा है देशभर से श्रद्धालु सिमरिया के पावन गंगा तट पर पधारेंगे। अगला पर्व स्नान 9 नवंबर और 23 नवंबर को होना तय है। इस बीच 31 अक्टूबर, 8 नवंबर और 16 नवंबर को तीन परिक्रमा भी होनी है।

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