1983 में घटे असम के नेली नरसंहार की सच्चाई सार्वजनिक की जाए — PPFA की मांग

Himanta-PTI-1761415868464.jpg

नव ठाकुरिया

गुवाहाटी: देशभक्त नागरिकों के संगठन पैट्रियोटिक पीपल्स फ्रंट असम (PPFA) ने असम सरकार द्वारा विधानसभा में नेली नरसंहार से जुड़ी रिपोर्ट पेश किए जाने के निर्णय का स्वागत करते हुए कहा है कि 1983 में घटित इस भयावह घटना की वास्तविक सच्चाई अब देश के सामने आनी चाहिए।
संगठन ने यह भी कहा कि असमिया समाज को ‘मुस्लिम-विरोधी’ बताने की किसी भी साजिश को नाकाम किया जाए और तथ्यों के आधार पर वर्षों से गढ़ी जा रही नकारात्मक छवि को मिटाया जाए।

ज्ञात हो कि 18 फरवरी 1983 को राज्य की नेली क्षेत्र में हुआ यह नरसंहार दुनिया के सबसे भीषण जनसंहारों में गिना जाता है। रिपोर्टों के अनुसार, इसमें 2,000 से अधिक बांग्लादेश मूल के मुस्लिम बसने वालों की मौत हुई थी। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने इस त्रासदी को मुख्य रूप से महिलाओं और बच्चों की हत्या के रूप में प्रस्तुत किया, लेकिन शायद ही किसी रिपोर्ट में यह उल्लेख हुआ कि इस हिंसा के दौरान हमलावर (स्थानीय जनजातीय और असमिया समुदाय के लोग सहित) भी जवाबी कार्रवाई में मारे गए थे।

PPFA ने अपने बयान में कई बुनियादी प्रश्न उठाए हैं —

“इन हत्याओं में कौन-से हथियार इस्तेमाल किए गए थे? क्या बिना किसी आधुनिक हथियार के स्थानीय लोग इतनी बड़ी संख्या में लोगों को कुछ घंटों में मार सकते थे? यदि मृतक मुस्लिम समुदाय से थे, तो उन्हें कहाँ दफनाया गया? क्या नेली क्षेत्र में सामूहिक कब्रों के कोई संकेत या प्रमाण मिले हैं?”
संगठन का मानना है कि तेवारी आयोग की रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाना इस पूरे घटनाक्रम की वास्तविकता को समझने की दिशा में अहम कदम होगा। इससे न केवल ऐतिहासिक सच्चाई सामने आएगी, बल्कि उन भ्रांतियों और राजनीतिक कथाओं का भी अंत होगा, जिनके जरिए असमिया समाज को दोषी ठहराने की कोशिशें की जाती रही हैं।

PPFA का कहना है कि रिपोर्ट सार्वजनिक होने से न सिर्फ पीड़ितों और उनके परिजनों के सवालों के जवाब मिल सकेंगे, बल्कि असम और असमिया समाज के प्रति फैलाई गई गलत धारणाओं का भी तथ्यात्मक और निष्पक्ष रूप से खंडन हो सकेगा।

Share this post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

scroll to top