2014 और 2004 के चुनाव परिणामों और चुनाव आयोग की भूमिका पर विश्लेषण

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2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस केवल 44 सीटों पर सिमट गई थी। उस समय केंद्र में यूपीए सरकार थी, जिसका नेतृत्व कांग्रेस कर रही थी। चुनाव आयोग भी यूपीए द्वारा नियुक्त था, और मुख्य चुनाव आयुक्त वी.एस. संपत थे। प्रशासन, पुलिस और अन्य संस्थाएं भी यूपीए के नियंत्रण में थीं। इसके बावजूद, भाजपा ने 282 सीटें जीतकर स्पष्ट बहुमत हासिल किया। यह दर्शाता है कि चुनावी जीत केवल सरकारी नियंत्रण पर निर्भर नहीं होती। जनता का मूड और नेतृत्व की लोकप्रियता निर्णायक होती है।

2004 में अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार थी। चुनाव आयोग और प्रशासन उनके नियंत्रण में था। फिर भी, एनडीए हार गई और कांग्रेस ने 145 सीटें जीतकर सरकार बनाई। यह हार दर्शाती है कि सत्ता में होने के बावजूद जनता का विश्वास खोने पर हार निश्चित है।

2024 में भाजपा 240 सीटों पर रुकी, जबकि एनडीए को 292 सीटें मिलीं। वाराणसी में नरेंद्र मोदी की जीत का अंतर 1.5 लाख वोटों का रहा, जो पहले की तुलना में कम था। यह जनता की बदलती राय को दर्शाता है। चुनाव आयोग पर नियंत्रण के दावे तथ्यहीन हैं। जनता ही अंततः जीत और हार तय करती है। राहुल गांधी जैसे नेताओं को यह समझना होगा कि जनादेश को स्वीकार करना और रणनीति में सुधार करना ही राजनीतिक सफलता का आधार है।

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